Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

सरकार सशक्त है लेकिन विपक्ष ही लापता

संसद की कार्यवाही के दौरान आए दिन कुछ न कुछ बवाल होता रहता है किंतु इसमें नया क्या है, बवाल तो पहले भी होता था। अब अंतर बस इतना हो गया है कि पहले बवाल मुद्दों पर होता था और विपक्ष सरकार का विरोध करते हुए देश हित को ध्यान में रखता था, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है क्योंकि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। किसी भी साधारण सी बात को बढ़ा-चढ़ाकर ऐसे पेश किया जाता है मानों देश बर्बाद हो गया। अहम बात यह भी है कि संसद में विमर्श की जगह अब बदतमीजी ने ले ली है जिसके चलते आवश्यक है कि संसद में नौटंकी करने वाले नेताओं के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।

कुछ इसी तरह हाल ही में लोकसभा की कार्रवाई के दौरान टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सदन की मर्यादा भंग की थी और गाली तक का प्रयोग कर दिया था जो कि आलोचनात्मक था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सदन में ये विपक्षी नेता यह भूल चुके हैं कि वे अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, बल्कि उनकी नौटंकियां ऐसी हैं मानों कोई अपनी निजी लड़ाई कर रहा है। इसके चलते विपक्ष की  प्रासंगिकता पर अब खतरा मंडराने लगा है क्योंकि लोकतंत्र के लिए सशक्त और सजग विपक्ष का होना अत्यंत आवश्यक है।

एक वक्त था जब पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपयी विपक्ष में थे तब सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह विपक्ष की मजबूत आवाज माने जाते थे लेकिन अब यदि विपक्ष के सशक्त नेता की बात की जाए तो लोगों को नाम याद ही नहीं आएगा।

मोदी सरकार जनहित को लेकर सबसे अधिक सजग रहती है ऐसे में विपक्ष का सशक्त न होना इतना नहीं खल रहा है लेकिन सोचिए कि यदि किसी और दल की सरकार के वक्त विपक्ष का रवैया कुछ ऐसा ही होता तो कैसे देश तानाशाही की ओर चल पड़ता था। विपक्षी दलों की दिक्कत केवल यह है कि उन्हें पता ही नहीं है कि आखिर उनका रोल क्या है क्योंकि लगभग 60 सालों में उनकी सक्रिय भूमिका सत्ता में रही है और अब सत्ता जाने के 9 सालों में ही उनकी फडफ़ड़ाह़ट बौखलाहट में परिवर्तित हो गई है।