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‘तनखइयों से जूते साफ कराने’ वाले आजम का वर्चस्व ‘बुलडोज’ हो गया, अब रामपुर के इस नेता का फ्यूचर क्या है?

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लखनऊ: बात 2017 के विधानसभा चुनाव की है। तत्कालीन नगर विकास मंत्री और एसपी के कद्दावर नेता आजम खां ने कहा था, ‘यह कलेक्टर-फलेक्टर से मत डरियो, यह तनखईया है…इनसे जूते साफ कराऊंगा।’ इन तनखइयों से ‘लड़ाई’ में फिलहाल आजम खां और उनके परिवार का सियासी रसूख ‘बुलडोज’ होने की ओर बढ़ रहा है। आजम खां के बाद बेटे अब्दुल्लाह आजम खां के भी सजायाफ्ता होने और विधायकी रद होने के बाद यह सवाल गहरा गया है कि आजम परिवार का रामपुर में सियासी भविष्य अब क्या है?

राजनीति में ढाई दशक तक राज करने वाले एसपी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां के सितारे फिलहाल गर्दिश में हैं। यूपी की सियासत में जिस आजम का सिक्का चलता था, उनके पिछले पांच साल राजधानी लखनऊ से ज्यादा अधिक जेल, कोर्ट-कचहरी में हाजिरी और बिगड़ती सेहत के चलते अस्पताल में गुजरे हैं। हेट स्पीच में उनकी सदस्यता रद्द हो चुकी है। आजम की पत्नी और पूर्व राज्यसभा सांसद तंजीन फात्मा के ऊपर भी दर्जनों मुकदमे हैं और सजा की तलवार लटक रही है। स्वार से विधायक उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को भी मुरादाबाद कोर्ट ने सोमवार को सरकारी काम में बाधा डालने का दोष सिद्ध होने के बाद दो साल की सजा सुना दी है। उनकी भी विधानसभा सदस्यता रद्द होने का आदेश जारी हो गया है। ऐसे में तीन दशक में पहली बार है जब आजम के परिवार को कोई भी सदस्य किसी सदन का हिस्सा नहीं रह गया है।

सियासी पूंजी कौन संभालेगा?
आजम खां के चुनाव लड़ने पर छह साल की रोक लग चुकी है। बेटे अब्दुल्ला आजम भी छह साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। पत्नी तंजीन फात्मा भी खराब सेहत और मुकदमे से जूझ रही हैं। ऐसे में आजम खां की सियासी पूंजी का ‘वारिस’ तलाशने का संकट खड़ा हो गया है। आजम के बड़े बेटे अदीब और बहू सिदरा सियासी तौर पर सक्रिय नहीं है। हालांकि, आजम के जेल में रहने के दौरान सिदरा अदीब की अखिलेश से मुलाकात की तस्वीरें जरूर वायरल हुई थीं। सोशल मीडिया पर भी वह सक्रिय रहती हैं। लेकिन, जिस तरह से परिवार के सदस्य एक-एक जेल जा रहे हैं और सजायाफ्ता हो रहे हैं, चुनाव में आजम परिवार से और चेहरों को उतारेंगे इसको लेकर भी संशय बना हुआ है। सवाल यह भी है कि लगातार घटती सियासी सक्रियता व बढ़ते संकट के बीच आजम क्या परिवार के दूसरे सदस्यों को चुनाव में उतर कर उसी तरह सदन पहुंचा पाएंगे, जैसा पहले उनके ‘इशारे’ पर हुआ करता था।

परिवार के बाहर की कवायद भी ‘फेल’
रामपुर में अपनी सियासी पूंजी व विरासत बचाने के लिए परिवार से बाहर दांव लगाने की आजम खां की रणनीति में अब तक फेल रही है। 2022 में रामपुर में विधायक चुने जाने के बाद आजम ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। पिछले साल जून में हुए उपचुनाव में उन्होंने अपने नजदीकी आसिम राजा को उम्मीदवार बनाया लेकिन सीट बीजेपी ने छीन ली। हेट स्पीच में सदस्यता रद्द होने के बाद रामपुर विधानसभा उपचुनाव में भी भी आसिम राजा पर दांव लगाना काम नहीं आया। जिस सीट पर 1980 से एक चुनाव छोड़कर लगातार आजम व उसके परिवार का कब्जा था, उस सीट पर भी बीजेपी काबिज हो गई। इससे साफ है कि आजम के परिवार और बाहर से लड़ रहे चेहरों में सियासी असर का अंतर साफ दिखता है।

स्वार से कौन लड़ेगा?
अब्दुल्ला आजम की स्वार सीट रिक्त घोषित कर दी गई है। अब इस सीट पर उपचुनाव होना तय है। यहां आजम किसको लड़ाएंगे इसको लेकर भी रामपुर में कयास जारी है। अब्दुल्लाह यहां दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। 2020 में भी उसकी सदस्यता रद्द हुई थी, लेकिन पिछली विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर एकतरफा जीत हासिल की थी। पिछले दो उपचुनाव में आजम ने जिस तरह से परिवार के सदस्यों को चुनाव से बाहर रखा है ऐसे में स्वार में भी नए चेहरे पर ही दांव लगाए जाने की उम्मीदें अधिक हैं। 2022 में यह सीट बीजेपी ने अपना दल के खाते में दी थी, उपचुनाव में उनकी रणनीति पर भी नजर रहेगी। फिलहाल, इस सारी कवायद में दांव पर आजम की सियासी ‘बादशाहत’ है जो हर दिन ध्वस्त होती जा रही है और इससे उबरने का फिलहाल कोई रास्ता भी उनको नजर नहीं आ रहा है।