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75 साल पुराना कब्जा व मालिकी साबित नहीं कर पाये कब्जेदार,

टीबी अस्पताल के लिये अधिग्रहित बड़ा बांगड़दा की बेशकीमती जमीन की सरकार ही मालिक रहेगी। सिविल कोर्ट ने 75 साल पुराना कब्जा व मालिकी साबित नहीं कर पाने के कारण कब्जेदारों की अपील भी खारिज कर दी है। सूत्रों के अनुसार बड़ा बांगड़दा की कुल 9.73 एकड़ की जमीन हेतु 1999 में कालूराम दर्जी के गांधीनगर, इंदौर में रहनेवाले वारिसों ने दावा पेश किया था। उनका कहना था कि उनके पूर्वज शोभाराम को 1925-26 में होलकर स्टेट ने खेती हेतु दी थी। तब से वे इस पर कृषि कार्य कर जीवन यापन कर रहे है खसरे में भी बतौर मालिक उनका नाम दर्ज है और उनका कब्जा है। मप्र के सृजन के बाद प्रदेश में मप्र भू-राजस्व संहिता लागू हुई तो सरकार ने उक्त जमीन टीबी अस्पताल हेतु अधिग्रहित कर ली थी जो कि बाद में राऊ में बन गया, किंतु फिर भी सरकार ने जमीन नहीं छोड़ी और कब्जा कर लिया।इसके एवज में उन्हें मुआवजा भी नहीं दिया और न अधिग्रहण कर कोई अवार्ड पारित किया गया जबकि उनका 1925 से कब्जा था और वे 12 साल से अधिक का कब्जा होने से विरोधी आधिपत्य के आधार पर जमीन के मालिक बन चुके थे। इसके बाद भी सरकार ने धारा 248 के तहत उन्हें अतिक्रमणकारी घोषित कर जमीन से बेदखल कर दिया है। पहले 18वें व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-एक के यहां से उन्हें वर्ष 2015 में राहत नहीं मिली थी और दावा खारिज हो गया था। इसके बाद उन्होंने सिविल कोर्ट इंदौर में अपील पेश कर कहा था कि उन्हें 75 साल से अधिक पुराने कब्जे वाली जमीन दिलाई जाएं क्योंकि सरकार ने उन्हें पैसा दिये बिना बेदखल कर दिया है, जबकि वे मालिक होकर भूमि पर लंबे समय से कब्जेधारी है। इसके विपरीत सरकार का कहना था कि अपीलार्थीगण अतिक्रमणधारी है। टीबी अस्पताल के लिये जमीन सरकार ने भू-राजस्व संहिता लागू होने के पूर्व ही ले ली थी और खसरों में भी टीबी अस्पताल का नाम मालिक के तौर पर दर्ज है। अलबत्ता कब्जेधारियों के पूर्वज सीताबाई को सरकार ने बड़ा बांगड़दा की जगह छोटा बांगड़दा में जमीन थी, जिस पर वर्तमान में सीताबाई का नाम दर्ज है। बड़ा बांगड़दा की पूर्व में अस्पताल हेतु अधिग्रहित जमीन पर अब देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को देकर वहां चिकित्सा महाविद्यालय का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। उसने टीबी अस्पताल से यह जमीन अदला-बदला कर ली है और वादग्रस्त भूमि पर सरकार का ही आधिपत्य है। उस पर दर्जी परिवार का कोई स्वामित्व व आधिपत्य नहीं है, ऐसे में भी अपील चलने लायक नहीं है।साबित नहीं कर पाए कि खुद की संपत्ति के लिए दावा लगायाज्अपीलार्थी दर्जी परिवार के लोगों ने खुद की संपत्ति के लिये दावा लगाना बताया था, किंतु केस चलने पर सरकार ने बताया कि वादग्रस्त जमीन के बदले सीताबाई को काफी पहले ही छोटा बांगड़दा में जमीन दी गई थी। अपीलार्थी दर्जी परिवार की खुद की बड़ा बांगड़दा में कोई संपत्ति नहीं है वे सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किए हुए थे, इसलिये बेदखल हुए है। 20वें जिला न्यायाधीश कमलेश सनोडिय़ा ने माना कि अपीलार्थीगण ने खुद की संपत्ति बताते हुए दावा लगाया था, किंतु वे यह साबित नहीं कर पायें है कि सीताबाई की संपत्ति उन्हें कहां से मिली है, जबकि दावा लगाने का अधिकार केवल उत्तराधिकारी को ही रहता है, ऐसे में वे उत्तराधिकारी के तौर पर भी मालिकी साबित नहीं कर पाए हैं और न बरसों पुराने कब्जे के आधार पर मालिक साबित हो सके थे। ऐसे में कोर्ट ने दर्जी परिवार की अपील खारिज कर दी है। इसके बाद बड़ा बांगड़दा की जमीन पर सरकार की मालिकी पुख्ता हो गई है।