Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

मत खेलिए बच्चों के भविष्य से

Ranchi : बच्चों को स्कूल भेजे जाने का उद्देश्य शिक्षा ग्रहण कर एक अच्छा नागरिक बनना तो है ही, शिक्षा विकोपार्जन में भी प्रमुख भूमिका निभाती है. लेकिन मौजूदा समय में ज्यादातर स्कूल प्रबंधन इसे एक व्यवसाय के रुप में देखने लगे हैं. यही वजह है कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को उनकी छोटी-मोटी शरारतों या फिर अभिभावकों द्वारा समय पर फीस जमा नहीं करने के कारण उन्हें स्कूल से निकालने की घटनाएं सामने आ रही है. पिछले दिन जमशेदपुर के साकची स्थित टैगोर सोसाइटी हाई स्कूल की घटना ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर स्कूल का दायित्व क्या है. स्कूल प्रबंधन ने फेल होने पर 83 बच्चों को स्कूल से निकाल दिया. ये वे बच्चे हैं जो अभी मानसिक तौर पर पूरी तरह परिपक्व नहीं हैं. स्कूल के शिक्षक और अभिभावक पर उनका भविष्य निर्भर है. बच्चों में बचपना स्वाभाविक है. इसलिए वे गलती या शरारत करेंगे ही. इसलिए यह स्कूल का ही दायित्व है कि उनकी पढ़ाई कैसे हो, उनकी समझ कैसे परिपक्व हो. स्कूल प्रबंधन इस दायित्व से नहीं भाग सकता है. परीक्षा में फेल होने पर स्कूल से निकाले जाने की कार्रवाई पर लगातार सवाल उठाये जा रहे हैं. बुद्धिजीवियों, प्राचार्यों, अभिभावकों ने ऐसी कार्रवाई को निरर्थक व द्वेषपूर्ण कहा है. सभी का कहना है कि बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने का हक किसा का नहीं है. शिक्षक,अभिभावक, स्कूल प्रबंधक सभी का दायित्व है कि ऐसे छात्रों के भविष्य के बारे में सोचे और उसका निकाले. शुभम संदेश की टीम ने जिलों के स्कूल प्रबंधक, प्राचार्य, शिक्षक और अभिभावकों से बातचीत की है. पेश है रिपोर्ट.

किसी छात्र को रिजल्ट के आधार पर निकाला नहीं जा सकता है : एस प्रकाश

लोयला कॉन्वेंट स्कूल के डायरेक्टर एस प्रकाश ने कहा कि बच्चों को रिजल्ट के ग्राउंड पर निकाला नहीं जा सकता है. उन्हें केवल अनुशासनहीनता के लिए निकाला जा सकता है, लेकिन उसके लिए भी बच्चों को सुधारने का मौका दिया जाता है. अगर बच्चे लगातार इस तरह की हरकतें करते हैं जिससे पूरा स्कूल का माहौल खराब हो रहा है तो उस पर विचार किया जा सकता है. लेकिन बच्चे अगर फेल हो रहे हैं या छोटी मोटी शरारत हैं तो उसे निकाला नहीं जा सकता है.

जो बच्चे प्रमोट करने लायक नहीं हैं तो निकाला जा सकता है : संध्या सिंह

सरस्वती शिशु विद्या मंदिर, रांची के प्रिंसिपल संध्या सिंह ने कहा कि जो बच्चे सही अर्थों में प्रमोट करने लायक नहीं हैं. अगर वैसे बच्चों को निकाला जाए तो कोई बात नहीं. यह स्कूल का निजी मामला है, लेकिन मेरे ख्याल में आठवीं तक के बच्चों को पास कर देना चाहिए.अगर किसी को निकाला जाता है तो यह स्कूल प्रबंधन का मामला है कि उन्होंने किस परिस्थिति में बच्चों को निकाला है.

स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों को आपस में सहयोग करने की जरूरत है : आशु तिवारी

मोतीलाल नेहरु पब्लिक स्कूल (एमएनपीएस) की प्राचार्य आशु तिवारी का कहना है कि बच्चों के विकास के लिए स्कूलों और अभिभावकों को आपस में सहयोग करने की आवश्यकता है. दोनों का एक ही लक्ष्य है, बच्चों का संपूर्ण विकास और इसके लिए दोनों का आपस में तालमेल होना बहुत जरुरी है. स्कूल प्रबंधन को चाहिए कि प्रत्येक माह पैरेंट्स टीचर मीटिंग आयोजित करें. अभिभावकों के साथ उनके बच्चों की प्रोग्रेस रिपोर्ट की चर्चा करें, ताकि अभिभावकों को अपने बच्चों की वास्तविक स्थिति की जानकारी हो.

फेल होने पर बच्चों को स्कूल से निकालना गलत : रीना पांडेय

सुरेखा प्रकाश भाई पब्लिक स्कूल बहेरा आश्रम, चौपारण की प्रिंसिपल रीना पांडेय का कहना है कि फेल होने पर बच्चों को स्कूल से निकालना गलत है. उनके स्कूल में जो बच्चे कमजोर हैं, उनके लिए विशेष क्लास आयोजित किया जाता है. नौनिहाल तो देश के भविष्य हैं. उनका नाम काटकर उनके करियर से खिलवाड़ करना होगा. अभिभावक भी अपने बच्चों पर ध्यान दें.

फीस नहीं देने पर बच्चे को निकालना कहीं से भी उचित नहीं : शैलेश कुमार

आईलेक्स पब्लिक स्कूल पंचमाधव, बरही के निदेशक सह प्राचार्य शैलेश कुमार ने कहा कि फेल होने या समय पर फीस जमा नहीं करने पर बच्चों को स्कूल से निकालना उचित नहीं है. बच्चों की छोटी-मोटी गलतियों पर उन्हें समझाने की जरूरत है. विद्यालय से निकालना सही नहीं है. इसके लिए उनके विद्यालय में बच्चों को विशेष समय देकर उनमें सुधार लाने का प्रयास किया जाता है. इस दिशा में सभी स्कूल प्रबंधकों को सोचने की जरुरत है. अभिभावकों को भी इसमें सहयोग करना चाहिए.

अगर बच्चों को ठीक से पढ़ाएंगे तो वे फेल कैसे होंगे : रामचंद्र यादव

स्वामी विवेकानंद स्कूल चार माइल, बरही के निदेशक रामचंद्र यादव कहते हैं कि बच्चों को ठीक से पढ़ाने पर फेल कैसे होंगे. फीस के लिए अभिभावकों से बात करने की जरूरत है. इसके लिए बच्चों को प्रताड़ित नहीं करना चाहिए. इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. छोटी-मोटी गलतियों को समझाकर दूर किया जा सकता है. इसके लिए बच्चों को स्कूल से टीसी थमाना कहीं से भी उचित नहीं है.

बच्चों के मन को पीड़ा नहीं पहुंचाएं सुधार का मौका दें : काजल कुमारी

लॉर्ड कृष्णा पब्लिक स्कूल हजारीबाग की प्राचार्या काजल कुमारी ने कहा कि किसी कारणवश बच्चों को स्कूल से निकाल कर उनके मन को पीड़ा नहीं पहुंचाएं. उन्हें खुद में सुधार का मौका दें. अगर फेल हो गए हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में फिर से कामयाब होने का मौका दें. उनकी छोटी-मोटी गलतियों को बड़ा मुद्दा नहीं बनाएं. समय पर फीस नहीं मिले, तो अभिभावकों से वार्तालाप कर मामले का निष्पादन करें. अगर हम ऐसा करेंगे तो समस्या का हल निकल आएगा. किसी बच्चे की गलती पर उसको स्कूल से निकालने जैसी सजा देना ठीक नहीं है.

समस्या से भागना नहीं, बल्कि उसका हल निकालना चाहिए : अनामिका कुमारी

कोयलांचल पब्लिक स्कूल ब्रांच 2 की प्राचार्या अनामिका कुमारी ने बताया कि हमें समस्या से भागने की बजाय उसका हल निकालना चाहिए. चाहे वह समस्या बच्चों की शरारत या अनुशासन भंग से जुड़ा हो या फिर फीस का हो. क्योंकि बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना स्कूल की जिम्मेदारी है. जहां तक फीस की बात है तो अधिक परेशानी होने पर अभिभावक प्राचार्य से मिल सकते हैं. कई मामलों में स्कूल बीच का रास्ता निकालते हैं. इससे बच्चे की पढ़ाई ठीक होती है. साथ ही उनका मनोबल भी ऊंचा रहता है.

स्कूल ने माफ की है आर्थिक रूप से अक्षम अभिभावकों की फीस : आशुतोष कुमार

डीएवी स्कूल सिंदरी के प्राचार्य आशुतोष कुमार ने कहा कि फेल होने वाले बच्चों को स्कूल से बाहर करना गलत है. उनको एक्स्ट्रा क्लास देकर स्पेशल परीक्षा ली जानी चाहिए. जहां तक फीस का सवाल है, कभी कहीं से ऐसी सूचनाएं सामने आती हैं कि बच्चों को परीक्षा से रोका गया है, जो गलत है. कई मौकों पर स्कूल ने फीस जमा करने में अक्षम कई अभिभावकों की फीस माफ भी की गई है. सबसे अच्छा तरीका यह है कि बच्चे की किसी भी समस्या के लिए स्कूल प्रबंधन और अभिभावक आपस में बात करे और समस्या का निराकरण करे. क्योंकि बच्चे स्कूल में पढ़ाई के लिए आते हैं. उनकी पढ़ाई जारी रहनी चाहिए.

बच्चों को फेल होने के कारण स्कूल से निकालना बिल्कुल गलत : जगबंधु दास

चाईबासा के अभिभावक जगबंधु दास ने कहा कि विद्यालय बच्चों से चलता है और यदि विद्यालय से बच्चों को शिक्षण शुल्क न देने या देरी होने या फेल होने के कारण निष्कासित कर दिया जाता है तो यह सरासर गलत है. इस मामले में तुरंत ही जिला के शिक्षा विभाग और प्रशासन को पहल करनी चाहिए. बच्चों को स्कूल पढ़ाई के लिए भेजा जाता है ताकि वे पढ़लिख कर अच्छा नागरिक बने. इसलिए स्कूल प्रबंधन और अभिभावक की कोशिश यह होनी चाहिए कि किसी भी सूरत में उसकी पढ़ाई बाधित नहीं होनी चाहिए.समस्या हो तो स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों से बात करनी चाहिए.

बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की स्कूल प्रबंधन करता है पूरी कोशिश : गिरधारी दास

चक्रधरपुर के दिल्ली पब्लिक स्कूल के प्राचार्य गिरधारी दास ने कहा कि स्कूल प्रबंधन बच्चों को बेहतर व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की पूरी कोशिश करता है, लेकिन अभिभावकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि बच्चें पढ़ाई कर रहे या नहीं इस पर ध्यान दिया जाएं. जितनी जिम्मेदारी पढ़ाई को लेकर स्कूल की होती है उतनी जिम्मेदारी अभिभावकों की भी होती है. इसे लेकर अभिभावकों की बैठक बुलाकर बताया भी गया है. बच्चों का रिजल्ट बेहतर हो इसके लिए अभिभवकों व स्कूल प्रबंधन का बेहतर तालमेल होना जरुरी है. अगर अभिभावक आर्थिक रुप से कमजोर है और किसी कारणवश फीस जमा नहीं कर पा रहें तो ऐसी स्थिति में बच्चों का नाम नहीं काटा जाना चाहिए.

बच्चों को निकालने वाले प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई हो : सुमित नियोगी

अभिभावक सुमित नियोगी ने कहा कि किसी बच्चे के फेल हो जाने पर उसे स्कूल से नहीं निकाला जाना चाहिए.अगर ऐसा होता है तो स्कूल प्रबंधन द्वारा किया जा रहा कार्य गलत है और उस पर यथाशीघ्र कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में वह ऐसी कोई गलती न कर सके. न ही कोई स्कूल इस तरह के कदम उठाने के लिए सोचे. बच्चों को स्कूल पढ़ाई के लिए भेजा जाता है. ऐसी स्थिति में हर हाल में बच्चे की पढ़ाई किस तरह जारी रहे इस पर विचार करना चाहिए. जरुरत हो तो स्कूूल प्रबंधन और अभिभावक मिल बैठक इस समस्या का हल निकाल सकते हैं.

फीस जमा नहीं करने की स्कूल को दी जानी चाहिए जानकारी : असद अनीश

चक्रधरपुर के किड्स जोन स्कूल के प्राचार्य असद अनीश ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में स्कूल प्रबंधन पर कई प्रकार की जिम्मेदारियां होती है, इसलिए अभिभावकों की कोशिश होनी चाहिए कि समय पर बच्चों की फीस जमा हो.अगर किसी कारणवश अभिभावक फीस जमा नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें स्कूल आकर इस बारे में जानकारी दी जानी चाहिए. स्कूल प्रबंधन यह कभी नहीं चाहता कि किसी बच्चें का स्कूल से नाम काटा जाएं. साथ ही अभिभावकों को भी अपने बच्चों पर पढ़ाई संबंधित ध्यान देना चाहिए. इससे बच्चे की पढ़ाई बाधित नहीं होती है.

अगर छात्र फेल होते हैं,तो शिक्षक को भी फेल माना जाए : मनोज सिंह

चांडिल चांडिल निवासी अभिभावक मनोज सिंह ने कहा कि अगर छात्र फेल करें तो इसका मतलब शिक्षक भी फेल हुए हैं. ऐसे में स्कूल से अगर बच्चों को निकाला जाता है तो शिक्षकों को भी निकाला जाना चाहिए. स्कूल में बच्चे शिक्षकों की देखरेख में ही सारा साल बिताते है. बच्चों के फेल करने में क्या उनकी जवाबदेही नहीं है. बच्चों को स्कूल से निकलना उनके देश से निकालने से कम नहीं है. ऐसे में बच्चे ना घर का रहेगा ना समाज का, ना ही कही उन्हें उचित स्थान मिलेगा. इसे स्कूल प्रबंधन को समझना जरुरी है.

छात्रों को निकालना स्कूल प्रबंधन का निंदनीय कृत्य है: मोहन सरावगी

चाईबासा के अभिभावक मोहन सरावगी ने कहा कि स्कूल प्रबंधन द्वारा इस तरह का किया गया कृत्य निंदनीय है. उसे इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कैसे और किन परिस्थितियों में बच्चा फेल हो गया या फिर उसके अभिभावक स्कूल की फीस जमा नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि इन कारणों से बच्चों को स्कूल से निष्कासित किया जाता है उसे खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. स्कूल प्रबंधन की कोशिश हर हाल में यह होनी चाहिए कि बच्चे की पढ़ाई कैसे हो. अगर बच्चा स्कूल नहीं जाएगा तो उसकी पढ़ाई कैसे होगी. हर स्कूल का यह दायित्व है कि वह बच्चे की पढ़ाई के लिए संवेदनशील रहे. उसे किसी गलती के लिए बड़ी सजा की कार्रवाई से बचे.

स्कूल की मनमानी पर शिक्षा विभाग त्वरित कार्रवाई करे : लग्नदेव

अभिभावक लग्नदेव कुमार का कहना है कि स्कूल प्रबंधन कई बार अपनी मनमानी पर उतर आता है.वह जो कदम उठाता है वह उसके एकाधिकार को दर्शाता है. इसे खत्म करने के लिए शिक्षा विभाग को कदम उठाना चाहिए, क्योंकि शिक्षा विभाग ही उस स्कूल को स्कूल संचालन के लिए सहमति पत्र देता है. शिक्षा विभाग को इस पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए. इसलिए बहुत जरुरी है कि स्कूल प्रबंधन इस दिशा में ध्यान दे. तभी बच्चों की पढ़ाई का उद्देश्य सार्थक हो सकेगा. अभिभावकों को भी अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए सोचने की जरुरत है.

किसी भी हाल में बच्चों पर कुठाराघात ठीक नहीं कहा जा सकता : दशरथ कुमार

बड़कागांव निवासी दशरथ कुमार कहते हैं कि स्कूल कोई ऐसा कदम नहीं उठाए कि बच्चों पर कुठाराघात हो. बच्चों का मन बड़ा ही निर्मल होता है. एक सजा पर उनका निश्छल मन तार-तार हो जाता है. बच्चों की उस मनोवृत्ति को समझने के लिए ही सरकार ने भी उन्हें खेल-खेल में पढ़ाने का फरमान जारी कर रखा है. फेल होने पर स्कूल से निकालने पर रोक है. जो भी स्कूल प्रबंधन ऐसा करता है, तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए. इसलिए बहुत जरुरी है कि स्कूल प्रबंधन इस दिशा में ध्यान दे. तभी बच्चों की पढ़ाई का उद्देश्य सार्थक हो सकेगा. अभिभावकों को भी अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए सोचने की जरुरत है. इसलिए उनकी कोशिश समय पर फीस जामा करने की होनी चाहिए.

नाम काटकर स्कूल अपनी जिम्मेवारी से नहीं भाग सकता : विनय मिश्र

हजारीबाग को-ऑपरेटिव कॉलोनी निवासी विनय मिश्र कहते हैं कि फेल होने पर बच्चों का नाम काटकर स्कूल अपनी जिम्मेवारी से नहीं भाग सकता. बच्चों को सुधारकर उन्हें सही मार्ग पर चलना सिखाना स्कूल की जिम्मेवारी है. बच्चे हैं, तो शरारत करेंगे ही. इसके लिए उन्हें सजा देने की बजाय, उन्हें समझाने की जरूरत है. फीस के लिए बच्चों का नाम काटना भी जायज नहीं है. स्कूल शिक्षण संस्थान के साथ-साथ एक परिवार जैसा होता है. अभिभावकों की पीड़ा को समझने की जरूरत है. इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले स्कूल प्रबंधन को सोचने विचारने की जरुरत है. जरुरत हो तो उसे बच्चे के अभिभावक से भी बात करनी चाहिए.

सजा देने से उनकी मन:स्थिति पर व्यापक असर पड़ता है : पवित्र सिंह

अभिभावक पवित्र सिंह ने कहा कि बच्चों को फेल करने पर स्कूल से निकालना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है. स्कूल काल में ही बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास होता है. ऐसे में छोटी सी उम्र में उन्हें बड़ी सजा देने से उनके मनस्थिति में व्यापक असर डालता है. ऐसे में बच्चों को सृजनात्मक पाठ पढाया जाना चाहिए न कि उनके मन मस्तिष्क पर असर डालने वाले दौर से उन्हें गुजरने के लिए मजबूर करना चाहिए. अगर बच्चा गलती करे तो उसे उतनी ही सजा दी जाए ताकि गलती का एहसास हो. उसे समझाया जाना चाहिए. उन्हें निकाला नहीं जाना चाहिए.

फीस जमा नहीं करने पर बच्चों का स्कूल से नाम काटना सही नहीं : एकता चौरसिया

चक्रधरपुर निवासी अभिभावक एकता चौरसिया का कहना है कि अगर किसी कारणवश समय पर स्कूल की फीस जमा नहीं कर पाते हैं तो ऐसी स्थिति में स्कूल से बच्चों का नाम काटना सही नहीं है. बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होनी चाहिए. वहीं अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजते हैं, कई ऐसे अभिभावक होते हैं जो स्वयं शिक्षित नहीं होने के कारण किसी कारणवश बच्चों की पढ़ाई संबंधित ध्यान नहीं दे पाते हैं,ऐसी स्थिति में स्कूल के शिक्षकों की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान की जाएं ताकि बच्चें फेल न करें.

ऐसा नहीं है कि निकालने से वे फिर फेल नहीं होंगे : अवदेश ठाकुर

रांची निवासी अवदेश ठाकुर का कहना है कि फेल होने पर बच्चों को निकालने से ऐसा नहीं है कि वे फेल नहीं होंगे. जरुरत इस बात की है कि उन्हें अच्छी तरह से गाइड कर पढ़ाना चाहिए. यह देखने की जरुरत है कि बच्चों को पढ़ाई करने में क्या दिक्कत आ रहीं है.उन दिक्कतों का सामाधान करना जरुरी है. बच्चें शरारती होते ही हैं. उनको समझाना चाहिए. बताना चाहिए कि कभी ऐसा नहीं करे. यह गलत है. स्कूल और अभिभावक मिलकर बच्चों को अनुशासित कर सकते हैं.

बच्चों के फेल हो जाने से स्कूल से निकालना नहीं चाहिए : त्रिभुवन शाही

रांची निवासी त्रिभुवन शाही का कहना है कि बच्चों को किसी तरह की गलती या फेल हो जाने से स्कूल से निकालना नहीं चाहिए. बच्चें अगर फैल कर रहे हैं तो यह स्कूल और शिक्षक की जवाबदेही है. बच्चे अगर फैल कर गए हैं तो उसमें क्या कमी है, उस कमी को हमें दूर करने की जरुरत है. तभी बच्चें आगे बढ़ पाएंगे. फेल होते हैं या शरारत करते हैं ऐसे में उनके साथ मिल कर बात करनी जाहिए और समाधान निकालना चाहिए.

निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाना जरुरी : छवि विश्वकर्मा

अभिभावक छवि विश्वकर्मा का कहना है कि निजी स्कूलों की लगातार बढ़ती मनमानी पर रोक लगनी चाहिए. प्रत्येक वर्ष एडमिशन फीस के नाम पर हजारों रुपए वसूले जाते हैं. वहीं हर बार स्कूलों द्वारा फीस में मनमानी तरीके से वृद्धि की जाती है, जबकि सरकार का नियम है कि स्कूल फीस में वृद्धि के लिए स्कूल कमिटी की बैठक कर अभिभावकों से चर्चा के बाद ही फीस बढ़ाई जा सकती है, लेकिन स्कूल प्रबंधन नियमों को ताक पर रख कर अपनी मनमानी करते हैं.

निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यापार बना दिया है, रोक जरुरी : राकेश चौबे

अभिभावक राकेश चौबे का कहना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर खत्म हो गया है, जिसके कारण निजी स्कूलों की मनमानी बढ़ गई है. आज गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है, जिसका फायदा अंग्रेजी स्कूल उठाते हैं. वर्तमान समय में अंग्रेजी स्कूल प्रबंधन द्वारा शिक्षा को व्यापार में बना दिया गया है. हम लोग सरकारी स्कूलों से ही पढ़े हैं. आज के समय में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी भी सरकारी स्कूलों से ही पढ़े हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर समाप्त हो गया है.

निजी स्कूलों पर नियमों के पालन के लिए दबाव बनाए सरकार : कुमुद शर्मा

अभिभावक कुमुद शर्मा का कहना है कि सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुपालन के लिए निजी स्कूल प्रबंधन पर दबाव बनाया जाना चाहिए. कोई भी संस्थान नियमों से ऊपर तो नहीं हो सकता. यदि निजी स्कूल सरकारी नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है तो इसका साफ मतलब है कि सरकार और निजी स्कूल प्रबंधन के बीच कुछ तो सांठ-गांठ है. झारखंड शिक्षा प्राधिकरण के नियमों के अनुसार स्कूल फीस बढ़ाने से पहले अभिभावकों से चर्चा करना जरुरी है, लेकिन ऐसा होता नही है.

भविष्य की बात हो तो स्कूल प्रबंधक को संवेदनशील होना चाहिए : मनोज यादव

रामगढ़ निवासी मनोज यादव कहते हैं कि जब बच्चों की भविष्य की बात हो तो ऐसी परिस्थिति में स्कूल प्रबंधक को संवेदनशील होना चाहिए. बच्चे अगर फेल करते है तो उन्हें स्कूल से नहीं निकालना चाहिए. बल्कि उनके कमजोर विषयों पर स्कूल प्रबंधक को खास ध्यान देते हुए आगे उस बच्चे को मोटिवेट करना चाहिए. इससे पढ़ने वाले छात्र हरास नहीं होंगे . पढ़ने वाले छात्रों को फेल करने या शरारत करने पर स्कूल से निकालना कहीं से भी जायज नहीं है .बच्चे अगर स्कूल में फेल करते हैं तो इसकी सारी जवाबदेही सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक की भी होती हैं.

निजी स्कूलों का ध्यान बच्चों की पढ़ाई पर कम फीस पर ज्यादा : विक्की खान

रामगढ़ निवासी विक्की खान कहते हैं कि निजी स्कूलों का ध्यान बच्चों की पढ़ाई पर कम और फीस पर ज्यादा रहता है. बच्चों की फीस अगर किसी कारण जमा नहीं होता है तो स्कूल प्रबंधन की ओर से कई बार अभिभावकों को परेशान किया जाता है. बच्चे अगर पढ़ाई में फेल करेंगे तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. सरकार को एक नियम बनाना चाहिए किसी क्लास में अगर बच्चे फेल करेंगे, तो उसके साल भर की फीस अभिभावक को लौटाने की होगी. तब जाकर स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलेगी और बच्चे फिर कभी फेल नहीं करेंगे.

शिक्षकों की भी जिम्मेदारी कि बच्चों को सही गाइडलाइन दे : मुनव्वर जमाल

रामगढ़ निवासी मुनव्वर जमाल कहते हैं कि विद्यालय में बच्चों को अभिभावक शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं. बच्चे ज्यादा समय स्कूलों में बिताते हैं. ऐसे में उस स्कूल प्रबंधक और शिक्षकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों को सही गाइडलाइन कर शिक्षा दें. बच्चे अगर फेल होते हैं तो इसकी जवाबदेही स्कूल के शिक्षकों पर भी बनती है . एक साथ फेल हुए इतने बच्चों को स्कूल से निकालना कहीं से भी जायज नहीं है. स्कूल प्रबंधक को चाहिए की बच्चों के लिए री एग्जाम की व्यवस्था करें न कि बच्चों का साल बर्बाद करें .

बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना स्कूल का दायित्व : नितेश तिवारी

चांडिल के अभिभवक नितेश तिवारी ने कहा कि बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना स्कूल का दायित्व है. किसी गलती की सजा को लेकर यदि बच्चे को स्कूल से निकाल दिया जाता है तो यह सरसर स्कूल प्रबंधन की गलती है. स्कूल प्रबंध को बच्चे को निकालने से पहले काफी सोच-विचार कर लेना चाहिए. इस तरह का निर्णय बच्चों के मानसिक विकास को अवरूद्ध करता है. ऐसे कठिन निर्णय लेने से पहले स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों के साथ बैठक करना चाहिए. स्कूल प्रबंधन के इस प्रकार के कदम से समाज में स्कूल की भी बदनामी होती है.

स्कूल में शरारत करने पर बच्चों का नाम काटा जाना गलत: कमल केशरी

चक्रधरपुर निवासी कमल केशरी ने कहा कि बच्चें अगर स्कूल में शरारत करते हैं और इस स्थिति में स्कूल से नाम काटा जाता है तो गलत है. बच्चों को स्कूल अभिभावक इसलिए भेजते हैं ताकि अच्छी शिक्षा मिल सकें. बच्चों को स्कूल में सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं दी जानी चाहिए. बच्चें मिट्टी की तरह होते हैं उन्हें हम जैसा आकार देंगे वे वैसा बनेंगे. इसलिए बच्चों में छोटी-छोटी गलतियां निकालकर स्कूल से नाम काटकर टीसी थमा दिया जाना उचित नहीं है.बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होनी चाहिए. अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजते हैं स्कूल प्रबंधन को इस दायित्व का पालन करना चाहिए.

बच्चे को स्कूल से निकाला जाना प्रबंधन का गलत कदम : राकेश वर्मा

अभिभावक राकेश वर्मा ने कहा कि बच्चे को स्कूल से किसी कारणवश निकाला जाना स्कूल प्रबंधन का गलत कदम होता है. बच्चों के बुरी आदतों को सुधारने और बच्चों को अनुशासन का पाठ स्कूल में ही पढ़ाया जाता है. बच्चों में किसी भी प्रकार की कमी को स्कूल में सुधारने की कोशिश की जानी चाहिए. बच्चों को स्कूल से निकालना उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने जैसा है. बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है, यहां तक कि उनके अभिभावकों को भी नहीं. बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए कई बार स्कूल प्रबंधन अभिभावकों के निर्णय को भी बदल देते हैं.

स्कूल प्रबंधन को भी समझने की आवश्यकता है : पवन गुप्ता

चक्रधरपुर निवासी पवन गुप्ता ने कहा कि कई ऐसे अभिभावक होते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति खराब रहने के बावजूद वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं, कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है कि अभिभावक एक-दो महीने फीस जमा नहीं कर पाते हैं, ऐसे हालत में स्कूल प्रबंधन को भी समझने की आवश्यकता है, न कि नोटिस भेजकर स्कूल से बच्चों का नाम काट दिया जाए. अभिभावक अगर अपने बच्चें को स्कूल में पढ़ाई कराते हैं तो फीस भी जरुर ही जमा करेंगे.कभी किसी वजह से इसमें देरी हो सकती है. इसके लिए अभिभावक को स्कूल प्रबंधन के पास अपनी समस्या रखनी चाहिए. ताकि उसका समाधन हो सके.

स्कूल व अभिभावक मिलकर बच्चों को कर सकते हैं अनुशासित : मदन तिवारी

जेसी मल्लिक रोड हीरापुर निवासी मदन कुमार तिवारी बताते हैं कि अच्छी शिक्षा के लिए अभिभावक बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों में कराते हैं. स्कूल द्वारा बच्चों को फीस के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है, जो गलत है. शरारत करने पर बच्चों को दंड देना चाहिए. स्कूल और अभिभावक मिलकर बच्चों को अनुशासित कर सकते हैं. फीस के लिए बच्चों को परीक्षा से रोकना और शरारत करने पर स्कूल से बाहर निकालना गलत है. इस दिशा में सभी स्कूल के प्रबंधकों को सोचने की जरुरत है. बच्चे स्कूल पढ़ाई के लिए आते हैं. इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि हर स्थिति में बच्चों की पढ़ाई किस तरह जारी रहे.

बच्चा फेल करता है तो स्कूल प्रबंधन की भी जवाबदेही बनती : भीम विश्वकर्मा

चक्रधरपुर निवासी अभिभावक भीम विश्वकर्मा ने कहा कि अगर प्राइवेट स्कूल में बच्चा फेल करता है तो इसमें स्कूल प्रबंधन की भी जवाबदेही बनती है. प्राइवेट स्कूल में महंगे फीस जमा कर अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाई कराते हैं. ऐसी स्थिति में स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों पर बेहतर तरीके से ध्यान दिया जाएं. साथ ही स्कूल में समय-समय पर अभिभावकों की बैठक बुलायी जानी चाहिए, ताकि बच्चों की पढ़ाई संबंधित जानकारी अभिभावकों को मिल सकें.ऐसे करने से बच्चे से जुड़ी समस्याओं का हल निकल जाएगा. किसी भी बच्चे के फेल होने पर उसे स्कूल से निकालना समस्या का समाधान नहीं है.

बच्चों के भविष्य का सवाल है, इसलिए निकालना गलत : अविनाश सिन्हा

चौपारण प्रखंड की दादपुर पंचायत के अविनाश सिन्हा कहते हैं बच्चों को स्कूल से निकालना यह तो बहुत गलत ही बात है. सवाल बच्चों के भविष्य का है. ऐसी स्थिति में उनकी पढ़ाई कैसे हो, इस पर हम अभिभावक और शिक्षकों दोनों को गंभीरता से सोचने की जरूरत है. बच्चों पर किसी भी तरह की कार्रवाई उनकी मन:स्थिति और मनोबल पर गलत प्रभाव पड़ता है. कुछ पब्लिक स्कूल शिक्षा को व्यवसाय बना कर रख दिया हैं. कभी-कभी वह अपनी मनमानी पर उतर जाते हैं जो कि बहुत गलत है. बच्चों से स्कूल की पहचान होती है. बच्चे स्कूल में अगर शरारत करते हैं, तो उन्हें प्यार से समझाना चाहिए, न कि उन्हें स्कूल से निकालना चाहिए.

प्रत्येक वर्ष फीस बढ़ा देता है स्कूल प्रबंधन, यह ठीक नहीं है : संदीप रवानी

गोधर निवासी संदीप कुमार रवानी बताते हैं कि निजी स्कूलों का पूरा ध्यान फीस पर रहता है. बच्चों का वार्षिक रिजल्ट कैसा भी आए, प्रत्येक वर्ष फीस में अप्रत्याशित वृद्धि जरूर कर दी जाती है. बढ़ी फीस वहन करना सभी अभिभावकों के वश की बात नहीं होती. ऐसे में फीस जमा करने में कभी-कभी देरी हो जाती है. स्कूल प्रबंधन को यह बात समझनी चाहिए और बच्चों को परीक्षा देने से नहीं रोकना चाहिए. स्कूल प्रबंधन हर साल बच्चों की फीस में बढ़ोतरी कर देता है. जो अभिभावकों के लिए कभी कभी समस्या बन जाती है. वैसे भी फीस की वृद्धि को लेकर भी स्कूल प्रबंधन को अभिभावकोंं से बात करनी चाहिए.

अभिभावक और स्कूल प्रबंधन दोनों का दायित्व बनता है : बापी साव

बहरागोड़ा के अभिभावक बापी साव ने कहा कि स्कूल में विद्यार्थी फेल होने तथा शरारत करने में अभिभावक के साथ साथ स्कूल प्रबंधक का भी दायित्व बनता है. क्योंकि विद्यार्थी घर पर छोटे परिवार के साथ रहते हैं. जब वे स्कूल पहुंचते हैं तो उनका परिवार बड़ा हो जाता है. इससे वे अपना मानसिक नियंत्रण से आगे बढ़ जाते हैं और कोई ना कोई शरारत करते हैं. स्कूल प्रबंधन पर जिम्मेदार होती है कि कैसे नियंत्रण किया जाए. उन्होंने कहा कि बच्चों को स्कूल से निकाल देना उचित नहीं है. इस मसले पर बच्चों के अभिभावकों से बातचीत करनी चाहिए.

बच्चों की पढ़ाई की पूरी जिम्मेवारी स्कूल की होती है : संदीप सिन्हा

हजारीबाग नुरा निवासी एक बच्ची के पिता संदीप सिन्हा कहते हैं कि बच्चों की पढ़ाई की पूरी जिम्मेवारी स्कूल प्रबंधन की है. स्कूल में ही उनका काफी वक्त गुजरता है और शिक्षक उनके आइकॉन होते हैं. अभिभावक से ज्यादा वह शिक्षकों की बताई बातों को सही मानते हैं. ऐसे में बच्चे अगर फेल होते हैं, तो पूरी तरह स्कूल जिम्मेवार है. बच्चों को सही ढंग से पढ़ाएं, उसे बेहतर इंसान बनाएं, इसीलिए अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजते हैं. फेल होने या छोटी-मोटी शरारत करने पर बच्चों को स्कूल से निकालना निहायत गलत कदम है.इस ओर स्कूल प्रबंधन को सोचने की जरुरत है.

विद्यार्थी के फेल होने के दोषी अभिभावक भी होते हैं : अमितांशु बेरा

बहरागोड़ा के अभिभावक अमितांशु बेरा ने कहा कि स्कूल में विद्यार्थी के फेल होने पर उसकी पूरी जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की नहीं, बल्कि अभिभावक की भी होती है. विद्यार्थी का पहला शिक्षक अभिभावक ही होते हैं. अभिभावक इस ओर ध्यान दें तो यह मसला आसानी से सुलझाया जा सकता है. फिर भी विद्यार्थियों को फीस नहीं देने या फिर फेल होने पर स्कूल से निकालना उचित नहीं है.इसका हल निकाला जाना चाहिए. जरुरत हो तो स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों से बात करनी चाहिए. बच्चों को स्कूल भेजने का उद्देश्य उसकी पढ़ाई से है. इसलिए हर हाल में बच्चे की पढ़ाई जारी रहनी चाहिए. यह कोशिश होनी चाहिए.

स्कूल प्रबंधन समय-समय पर अभिभावकों से संपर्क करे : संतन मुर्मू

बहरागोड़ा के अभिभावक संतन मुर्मू ने कहा कि विद्यालय प्रबंधन तथा अभिभावक के बीच उचित सामंजस्य स्थापित ना होने के कारण ही विद्यार्थी विद्यालय में शरारत करते हैं. उनके फेल होने का मुख्य वजह भी यह है. इसलिए स्कूल प्रबंधन को समय-समय पर अभिभावकों से संपर्क करना जरूरी है. जिससे बच्चे की क्रियाकलाप तथा शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा सके. उन्होंने कहा कि शरारत करने या स्कूल में फेल करने या फिर फीस जमा नहीं कर पाने के कारण बच्चे को स्कूल से निकाल देना उचित नहीं है.

विद्यालय बच्चों को नैतिक शिक्षा दे तो बच्चे शरारत नहीं करेंगे : रंजीत साव

बहरागोड़ा के अभिभावक रंजीत साव ने कहा कि विद्यालय प्रबंधन यदि बच्चों को नैतिक शिक्षा दे तो कोई बच्चा शरारत नहीं करेगा. इसके लिए विद्यालय शिक्षकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ सामाजिकता की भी शिक्षा देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि विद्यार्थी अगर फेल होता है या फिर शरारत करता है तो उसे स्कूल से निकाल देना कतई उचित नहीं है. इस विषय पर विद्यालय प्रबंधन अभिभावकों से गंभीरता से बातचीत करे. ताकि बच्चे का भविष्य बर्बाद न हो. इस दिशा में स्कूल प्रबंधन को पहल करने की जरुरत है. ताकि बच्चों की पढ़ाई से जुड़ी समस्याओं का निराकरण हो.

You may have missed