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2000 रुपए किलो है ये सब्जी, सिर्फ मानसून के शुरुआती दिनों में मिलती है

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राज शार्दुल, कोंडागांव Chhattisgarh Vegetable  बोड़ा जंगलों में मिलने वाली ऐसी सब्जी है, जिसके लिए लोगों को मानसून का इंतजार करना पड़ता है। यह सिर्फ मानसून के शुरुआती दिनों में ही मिलती है। इन दिनों यह बाजार इसकी आवक शुरू तो हुई है, लेकिन दाम आसमान पर है। इस समय यह 1500 से 2000 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है। यही वजह है कि यह आम लोगों की पहुंच से दूर है। हालांकि आवक बढ़ने से इसकी कीमत गिरकर 400 से 500 रुपये किलो तक पहुंच जाती है।

बोड़ा एक प्रकार का मशरूम है, जो साल के जंगलों में जमीन से गांठ के रूप में निकलता है। जब यह निकलता है तो वहां जमीन में दरारें पड़ जाती हैं। ग्रामीण मिट्टी को हटाकर बोड़ा को एकत्र करते हैं। कोंडागांव जिले के बोड़ा की धमक राजधानी रायपुर से लेकर ओडिशा, तेलंगाना समेत अन्य प्रांतों तक है। वैसे तो पूरे बस्तर के जंगलों में बोड़ा निकलता है, लेकिन कोंडागांव के जंगलों में निकलने वाला बोड़ा आकार में बड़ा और अधिक स्वादिष्ट होता है।

बोड़ा के स्वाद ने मांसाहारी व शाकाहारी सभी को अपना दीवाना बना रखा है। यही कारण है कि इसकी खूब मांग रहती है। हालांकि यह आम लोगों की पहुंच से दूर रहता है। रिटायर्ड रेंजर आरएस वेदव्यास का कहना है कि साल के वनों में गिरे पत्तों पर आग लगाने से बोड़ा की फसल अधिक होती है, क्योंकि इससे जमीन साफ हो जाती है। यह बोड़ा के निकलने में सहायक होता है।

पायली और सोली से वजन

पायली और सोली अनाज का वजन करने के लिए आदिवासियों का बनाया हुआ पात्र होता है। पायली में एक किलो 800 ग्राम चावल और एक किलो 500 ग्राम धान आता है। इसी प्रकार सोली में 350 ग्राम चावल और करीब 300 ग्राम धान आता है। इसी पात्र ने बोड़ा का भी वजन किया जाता है। पायली में करीब एक किलो और सोली में 250 ग्राम बोड़ा आता है।

प्रोटीन की होती है अधिकता

बोड़ा में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन व फाइबर पाया जाता है। कैलोरी कम पाई जाती है इसलिए स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहने वाले भी इसे इत्मीनान से खाते हैं। इसमें औषधीय गुण भी होते हैं। बस्तर के आदिवासी भी यह बात जानते हैं। यहां माना जाता है कि कुपोषित बच्चों को बोड़ा उबालकर पिलाने से वह जल्द ही सुपोषित हो जाता है।

ऐसे बनाते हैं सब्जी

बोड़ा को पानी में थोड़ी देर तक डुबोकर रखा जाता है, ताकि इसकी मिट्टी निकल जाए। इसके बाद इसे दो हिस्से में काट लिया जाता है। आम सब्जियों के मुकाबले थोड़ा ज्यादा तेल में लहसून व बोड़ा को सुनहरा होने तक भूना जाता है। इसके बाद अदरक, प्याज और लहसून का पेस्ट डालकर थोड़ी देर इन सबको भूनते हैं। तत्पश्चात पानी डालकर हल्का उबाल आने तक गर्म किया जाता है। सबसे आखिर में कटी धनिया डाली जाती है ताकि उसका स्वाद भी मिल सके। यह सब्जी रोटी व चावल के साथ चाव से खाई जाती है।