असल में इनकी उम्र 67 साल है। रोजाना सुबह-शाम 4 घंटे बच्चों को मुफ्त हॉकी की कोचिंग देना इनका जुनून है और इसे पूरा करने के लिए ये 40 किमी दूर गांव से राउरकेला साइकिल से आते-जाते हैं। बच्चों के खेल का सामान जुटाने के लिए इन्होंने अपनी 14 एकड़ जमीन सिर्फ 70 हजार रुपए में गिरवी रख दी है। अब पास सिर्फ 1 एकड़ जमीन बची है।
उन्होंने कहा, ‘‘सपना था कि बड़ा खिलाड़ी बनूं, लेकिन किसी ने रास्ता नहीं बताया। क्लास-11 ड्रॉपआउट हूं। उन दिनों राउरकेला के पानपोश में साई का हॉस्टल खुला था, उसे देखकर तय किया कि ऐसे खिलाड़ी तैयार करना है, जो देश के लिए खेलें।’’
बच्चों को सफल देखकर संकल्प और मजबूत होता है
आज डॉमिनिक के तैयार किए हुए 139 बच्चे राज्य स्तर, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट खेल चुके हैं। डॉमिनिक कहते हैं, ‘जो बच्चे आगे बढ़ गए उनसे मैं मिलने जाता हूं। उन्हें सफल देखकर संकल्प और मजबूत होता है। इनमें लिलिमा मिंज, पूनम टोप्पो, सुदीप चरमाको जैसे नामी खिलाड़ी हैं। डॉमिनिक अभी 60 लड़के-लड़कियों को हॉकी सिखा रहे हैं।
जब तक सांस है, तब तक हॉकी खेलता रहूंगा
डॉमिनिक बताते हैं कि हॉकी के चलते ही पत्नी इसाबेला से प्यार हुआ था। शादी के पहले वह खेल के सामान के लिए अपनी बुआ से पैसे लाकर देती थी। शादी के बाद बीमारी से वह गुजर गई। मेरा खेलना उसे पसंद था, सो जब तक सांस है, खेलता रहूंगा।
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