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पीएम अवार्डी जिले के आदिवासी गांव का हाल बेहाल, पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Pravin Kumar

Ranchi : नक्सल प्रभावित गुमला जिले को विगत 21 अप्रैल को सिविल सर्विस डे के अवसर पर ”प्रधानमंत्री अवॉर्ड ऑफ एक्सीलेंस इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन” से नवाजा गया. इतिहास में पहली बार झारखंड के किसी जिले के हिस्से में यह उपलब्धि आई है. लेकिन शिक्षा, टीबी उन्मूलन, पंचायतों के डिजिटाइजेशन और विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए इस अवॉर्ड को हासिल करने वाले गुमला जिले के आदिवासी बहुल गांव राजाडेरा की तस्वीर बेहद खौफनाक है. यह गांव चैनपुर प्रखंड की जनावल पंचायत के अंतर्गत पड़ता है. लगभग 133 राशनकार्डधारकों वाला यह गांव माइनिंग प्रभावित एरिया में आता है. यहां से लगभग पांच किमी दूर बिरला समूह की बाक्साइट माइंस हैं. यह क्षेत्र कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के दायरे में भी आता है. इसके बावजूद इस गांव के किसी भी बच्चे या गर्भवती का टीकाकरण नहीं किया गया.

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आंगनबाड़ी केंद्र सिर्फ कागजों पर

गांव के बच्चों के लिए स्वीकृत आंगनबाड़ी केंद्र सिर्फ कागजों में ही चल रहा है. गांव में कभी एक स्कूल संचालित होता था लेकिन अब वह धराशायी हो चुका है. मनरेगा योजना के तहत सरकार की ओर से यहां के निवासियों को कागजों में काम भी दिया जा चुका है और उनका भुगतान भी किया जा चुका है लेकिन ग्रामीणों को इसकी कोई जानकारी नहीं है. इस गांव के बाशिंदों को पांच किलो कटौती के साथ राशन मिलता है. जिला मुख्यालय से करीब सौ किलोमीटर और प्रखंड मुख्यालय से लगभग 28 किमी दूर स्थित इस गांव में पहुंचने से पहले ही सरकारी योजनाएं दम तोड़ देती हैं. गांव तक जाने वाली सड़क कभी बनी ही नहीं. इसी रास्ते से खनन में लगे वाहन भी आवागमन करते हैं. बहरहाल, पीएम अवॉर्ड से सम्मानित इस गांव की बदहाली प्रशासनिक व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर रही है.

सिर्फ आदिवासी ही रहते हैं इस गांव में

राजाडेरा गांव में भुइहर मुंडा, उरांव और असुर समुदाय के लोग निवास करते हैं. यह गांव पाठ क्षेत्र में पड़ता है. पाठ क्षेत्र का मतलब होता है पठारों के ऊपर बसे गांव. गांव तक पहुंचने के लिए डोका पाठ होते हुए ग्रामीण सड़क बनी है लेकिन सामान्य दिनों में प्रखंड मुख्यालय तक कोई साधन नहीं मिलता है. गांव के चारों ओर घने जंगल हैं. यह क्षेत्र डूमरपाठ बाक्साइट खनन क्षेत्र का प्रभावित इलाका है. विलुप्त होती आदिम जनजाति असुर के साथ मुंडा, उरांव के करीब सवा सौ से भी अधिक परिवार यहां रहते हैं.

टीकाकरण होता नहीं, एएनएम भी नहीं आती

स्थानीय ग्रामीण निर्मला असुर सात माह के गर्भ से हैं. उनकी 15 माह की एक बेटी भी है. निर्मला कहती हैं, ”सरकारी टीकाकरण का लाभ न तो मुझे मिल रहा है और न ही गांव की किसी अन्य महिला एवं बच्चे को. 21 साल की सुखमनी असुर के भी तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं. सुखमनी कहती हैं, ”मेरे किसी भी बच्चे का टीकाकरण नहीं हुआ है. गांव में टीका देने के लिए एएनएम नहीं आती. विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों और तंत्र की अनदेखी के कारण गांव की महिलाओं को असहनीय प्रसव पीड़ा सहने को मजबूर होना पड़ता है.

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राजाडेरा गांव में सरकारी योजनाओं की स्थिति

समेकित बाल विकास योजना

गांव में आज तक आंगनबाड़ी भवन नहीं बन सका है. ग्रामीण बताते हैं कि सेविका सलोमी तिर्की गांव में नहीं रहती हैं. छह माह में एक-दो बार ही आती हैं. सहायिका के भरोसे किसी तरह केंद्र चलता था. लेकिन एक माह पहले उनका देहांत होने के कारण अब केंद्र पूरी तरह बंद है. कुछ ऐसा ही हाल एएनएम सरोज बाड़ा का है. वह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के लिए यहां नहीं आती हैं. गांव के 3 साल तक के दर्जनों बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पाया है. इस गांव की महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री मातृत्व योजना का लाभ हासिल करना किसी नामुमकिन सपने सरीखा है. यहां मनरेगा और समाज कल्याण विभाग के अभिसरण से वित्तीय वर्ष 2021-22 से ही आंगनबाड़ी केंद्र बनाया जाना था लेकिन डोर स्तर तक बनाकर इसे लावारिस छोड़ दिया गया है.

कोरोना काल में बंद हो गया एकमात्र विद्यालय

ग्रामीणों ने बताया कि गांव का राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय वर्ष 2018 में लचर अवस्था में चल रहा था. पारा शिक्षक महीने में एक-दो दिन आकर महीने भर की हाजिरी बना लेते थे. वर्ष 2020 से उनका आना भी बंद हो गया. कोरोना काल से गांव का विद्यालय पूरी तरह बंद है. गांव के बच्चे शिक्षा और मध्याह्न भोजन दोनों से पूरी तरह वंचित हैं. कुछ अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ने के 2 किलोमीटर दूर हसुआ टोली भेजते हैं. घना जंगल और पहाड़ी रास्ता होने के कारण सभी लोगों के लिए यह जोखिम उठाना आसान नहीं है. कुछ बच्चे डूमरपाठ मिशन स्कूल में पढ़ने जाते हैं. यह गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर है. दूरी की वजह से ज्यादातर बच्चे यहां तक नहीं पहुंच पाते.

जन वितरण प्रणाली

ग्रामीण बताते हैं कि गांव में करीब 133 राशन कार्डधारक हैं. यहां की पीडीएस डीलर अंजेला केरकेट्टा हैं. ग्रामीणों को कोरोना काल में दो वर्षों तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत भी राशन नहीं दिया गया. सिर्फ जून 2021 में महज एक महीने का राशन दिया गया. डाकिया योजना के तहत आदिम जनजातियों को उनके घरों तक या घर के बिल्कुल नजदीकी स्थान तक खाद्यान्न पहुंचाना है. लेकिन राजाडेरा के आदिवासियों को राशन लेने हर माह लगभग 15 किमी दूर स्थित दूसरे गांव जाना पड़ता है.

मनरेगा

मनरेगा का हाल बेहद हैरान करने वाला है. गांव के मनिता मुंडा, दिव्या मुंडा और अन्य लोगों ने बताया कि छह माह पर गांव में कुछ लोग आते हैं. मशीन में अंगूठा लगवाते हैं. बदले में 500 रुपये देते हैं. यह मनरेगा योजना की राशि का बिना काम किए फर्जी तरीके से दी जाती है. इसकी पुष्टि मनरेगा की वेबसाइट करती है. वेबसाइट में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि राजाडेरा गांव के लिए दर्जनों योजनाएं स्वीकृत हैं. इन योजनाओं में मजदूर नियमित रूप से काम भी कर रहे हैं. उनके नाम से अकाउंट भी बना है. उक्त अकाउंट में भुगतान भी किया जा रहा है चालू वित्तीय वर्ष में गांव के एक भी मजदूर ने अब तक मनरेगा में काम नहीं किया है. यह दावा स्थानीय ग्रामीणों ने किया है.

गांव में नहीं दिखता सरकारी सिस्टम : हेरेंज

सर्वोच्च न्यायालय के आयुक्त के पूर्व राज्य सलाहकार सदस्य बलराम एवं झारखंड नरेगा वाॅच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि हमने भी गांव का दौरा किया था. यहां रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ किसी को नहीं मिल रहा. केंद्र और राज्य सरकार का कोई सिस्टम यहां नजर नहीं आता. यह राज्य और देश के लिए बेहद शर्मनाक है.

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ऐसी स्थिति काफी दुखद एवं गंभीर : डीसी

इस संबंध में उपायुक्त सुशांत गौरव ने कहा कि अगर इस तरह का स्थिति है तो यह काफी गंभीर और दुखद है. संभवतः दूसरे गांवों में भी ऐसा हो रहा होगा. पूरे मामले की जांच करने के बाद जिम्मेवार पदाधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी.

डीसी को दिए है कार्रवाई के निर्देश : एसीएस

स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने कहा कि हमने इस संबंध में गुमला उपायुक्त को कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं. ग्रामीण इलाकों के लिए मोबाइल क्लिनिक की शुरुआत की है. सुदूरवर्ती गांवों के लोग इसका लाभ उठा सकते हैं.