‘’वो ही शहर है वो ही रास्ते, वो ही घर है और वो ही लान भी, मगर उस दरीचे से पूछना, वो दरख्त अनार का क्या हुआ‘’ बशीर बद्र की इस गजल में वो पीड़ा छिपी है जो निजी रूप से पेड़ों के हमारे जीवन में घटती जगह की चिंता दिखाती है। अपने घरों को हमने कांक्रीट में बदल दिया है और इस तरह सारे शहर कांक्रीट के जंगल में बदल रहे हैं। पौधारोपण का अभियान बहुत कुछ शासकीय स्तर पर हो रहा है अथवा उन लोगों द्वारा किया जा रहा है, जो पर्यावरण प्रेमी हैं। यह अभियान इससे भी आगे जाए। इस व्यापक उद्देश्य से जिला प्रशासन दुर्ग ने 6 जुलाई को पौधरोपण महाभियान का आह्वान जिले के नागरिकों से किया है।
प्रकृति को सहेजने की इस लड़ाई में जब तक आम आदमी की व्यापक भागीदारी नहीं होगी, तब तक हरियाली के विस्तृत दायरे की कल्पना करना भी कठिन है। घरों में जब पौधे पहुंचेंगे और हर नागरिक इसे बचाने और सहेजने की शपथ लेगा तो निश्चित ही आने वाली पीढ़ी को हरीतिमा से भरे शहर का तोहफा मिलेगा। पौधारोपण को लेकर पिछले साल भी वन विभाग ने एक पहल की थी। जिसमें पौधों के इच्छुक नागरिकों को घर पहुंचाकर पौधे दिये गए थे। इस बार भी यह कार्य किया जा रहा है। कोई कार्य मिशन के रूप में और उत्सव के रूप में होता है तो इसके और भी बड़े और शुभ परिणाम सामने आते हैं। छह जुलाई को ऐसे ही परिणाम आने की उम्मीद है। घरों के लिए फलदार पौधे वितरित किये जाने की योजना है। कहीं आम के पौधे दिये जाएंगे। कहीं अमरूद के पौधे और कहीं जामुन के पौधे। कोई अच्छा कार्य होता है, तो उसे अंग्रेजी में फ्रूटफुल कहते हैं। हिंदी में कहते हैं कि यह फलदायी कार्य हुआ। जो लोग पौधे ले जाएंगे, उन्हें न केवल अपने परिवार के लिए कुछ ही सालों में फलदायी पेड़ों से फल मिलेंगे अपितु उससे भी बढ़कर उनका घर हरीतिमा से पूर्ण और सुंदर होगा। किसी घर को सुंदर दिखाना है तो सबसे न्यूनतम निवेश में होने वाला कार्य यही है कि कोई सुंदर सा पेड़ लगा दो। अगर आप आम का पेड़ लगा देंगे तो आम्रमंजरियों की खूबसूरती और खुशबू से आपका घर महक उठेगा। अगर आप गुलमोहर का पेड़ घर में लगा देंगे तो इसकी सुंदरता से घर गुलजार हो जाएगा।
शहरों में तो अब यह भी देखने को मिलता है कि घर का विस्तार करना है और कोई पेड़ आ गया तो इसके लिए पैसेज खोल देते हैं, लेकिन पेड़ नहीं काटते। मुख्य सचिव श्री आर.पी. मंडल रजिस्ट्री कार्यालय दुर्ग के भवन के लिए जमीन चिन्हांकित करने अभी हाल ही में वहां गए थे। उन्हें उस भूमि में एक पेड़ दिखा। उन्होंने कहा कि भवन बने, लेकिन ये पेड़ न कटे। क्योंकि हम लोग यहां पेड़ सहेजने के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ को ग्लास के माध्यम से पैसेज दिया जाए। ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए मनुष्यता को बचाने के लिए असाधारण कदम उठाने का वक्त है और शासन के साथ ही आम जनता को भी बराबरी से इस दिशा में कार्य करना होगा। बशीर बद्र की यह गजल फिर याद आती है। ‘’कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ वो गजल का लहजा नया नया, न सुना हुआ न कहा हुआ।‘’ इस सुंदरता को सहेजना है और रोज अपने दरीचों से देखना है, तो 6 जुलाई को एक पौधा अवश्य लगायें।
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