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चीन से टकराव के 2 मौके और मोदी सरकार की रणनीति

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भारत-चीन के बीच जारी तनातनी में कुछ नरमी दिख रही है. चीनी सेना अब गलवान घाटी से 1-2 किलोमीटर पीछे हट गई है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने रविवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात की थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच ये सहमति बनी है. इस मसले को सुलझाने के लिए दोनों देशों की ओर से प्रतिनिधि तय किए गए हैं. भारत की ओर से अजित डोभाल ही स्थाई प्रतिनिधि हैं, जिनकी बात चीनी विदेश मंत्री से हुई है.

चीनी सेना अगर पीछे हटी है तो इसके पीछे भारत के कई रणनीतिक-राजनीतिक और राजनयिक कदम जिम्मेदार हैं जो पिछले कई दिनों से निरंतर आगे बढ़ाए जा रहे थे. सिलसिलेवार देखें तो इसमें कई अहम फैक्टर शामिल हैं, मसलन भारत ने कैसे बॉर्डर पर फौज बढ़ाई, फाइटर प्लेन तैयार किए, चीन के खिलाफ दुनिया भर में माहौल बना, अमेरिका सहित कई देशों के बयान आए, खुद प्रधानमंत्री लद्दाख गए. पहले आर्मी चीफ गए दूसरी तरफ वार्ता जारी रही.

भरपूर उकसावे के बावजूद प्रधानमंत्री ने चीन का सीधा नाम नहीं लिया. इससे बातचीत की खिड़की खुली रही. कई ऐप बैन कर और चीनी कंपनियों के टेंडर निरस्त कर बताया कि भारत इस मामले में झुकेगा नहीं, नतीजा यह हुआ कि चीन को मामला आगे बढ़ाने में कोई फायदा नहीं दिखा.

यह दूसरा मौका है जब टकराव की स्थिति से मोदी सरकार ऐसे निपट रही है. लद्दाख में गलवान घाटी में चीन से हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था. लेकिन चीनी सेना अब गलवान घाटी से 1-2 किलोमीटर पीछे हट गई है.

डोकलाम मामले में मोदी सरकार की कूटनीति

इससे पहले डोकलाम मामले में भी मोदी सरकार ने कूटनीतिक तरीके से मामले को सुलझाया था. डोकलाम गतिरोध के बाद 2017 में भारत-चीन के संबंधों में खटास काफी बढ़ गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अप्रैल 2018 में वुहान में हुई बैठक के बाद स्थिति में सुधार हुआ. दोनों देशों की सेनाओं के लिए रणनीतिक दिशानिर्देश तैयार किए गए और वो अपने ट्रैक पर लौट गईं.

दोनों नेता 2019 में भारत में मिले और दोनों में फिर इस मुद्दे पर बात हुई. दोनों पक्ष 2017 में डोकलाम गतिरोध के बाद आपसी संबंधों में आई खटास को कम करने के लिए प्रतिबद्धता जता चुके हैं.

वुहान में दोनों नेताओं के बीच गर्मजोशी वाली बैठक का असर जमीन पर भी देखा गया. जब दोनों देशों के सैनिकों ने कोई अप्रिय स्थिति ना आने देने के लिए रणनीतिक दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया.

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ऐसा नहीं था उसके बाद टकराव जैसी घटनाएं नहीं हुईं. लेकिन कुछ भी ऐसा होने पर ज़मीनी स्तर पर उनका समाधान निकाल लिया जाता जिससे कि रिश्तों में खटास आने की फिर नौबत ना आए.

जानकारों का कहना है कि डोकलाम की घटना के बाद रणनीतिक बातचीत का ज़मीन पर अच्छा असर दिखा था. शीघ्र समाधान से डोकलाम जैसी बड़े टकराव वाली स्थिति नहीं बनने दी जा रही. डोकलाम गतिरोध के दौरान दूसरे क्षेत्रों में भी टकराव की घटनाएं बढ़ने लगी थीं.

डोकलाम के बाद 400 मीटिंग्स

डोकलाम के बाद दोनों देशों के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए फ्लैग मीटिंग्स में भी काफी बढोतरी हुई. डोकलाम के बाद 400 ऐसी मीटिंग्स हुई थीं. स्थिति सुधरने के बाद 2018 और 2019 में ऐसी मीटिंग्स में कमी आई.

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बहरहाल, ये ऐसे कई फैक्टर हैं, जिसका असर भारत-चीन सीमा पर जारी तनावों को कम करने में देखा गया. प्रधानमंत्री पहले ही साफ कर चुके हैं कि गलवान घाटी हमारी है. इसलिए चीन को यह स्पष्ट संकेत है कि उसके पास पीछे जाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है.