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बिना योग्यता बने वीसी!

झारखंड के चार विश्वविद्यालयों के कुलपति पद की अर्हता पूरी नहीं करते

किसी भी वीसी ने राजभवन को नहीं दिया विजिलेंस क्लियरेंस सर्टिफिकेट

किसी के पास नहीं प्रोफेसर पद पर 10 वर्ष का कार्यानुभव

Amit Singh

Ranchi : झारखंड के चार विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति पर सवाल उठ रहे हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा नहीं उतरने के बावजूद इन कुलपतियों की नियुक्ति कर दी गई. इसकी शिकायत राजभवन सहित प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, गृह मंत्रालय और झारखंड सरकार से की गई है. दस्तावेजों के अनुसार, नियमों की अनदेखी कर जिन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति हुई है उनमें रांची यूनिवर्सिटी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी, बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिवर्सिटी और झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी शामिल हैं. नियमानुसार, कुलपति पद के लिए प्रोफेसर पद का 10 वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है. नियुक्ति के संबंध में 23 फरवरी 2018 को जारी विज्ञापन में भी स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख किया गया था. लेकिन उक्त विश्वविद्यालयों के किसी भी कुलपति के पास प्रोफेसर पद पर 10 वर्ष तक काम करने का अनुभव नहीं है. वीसी पद पर नियुक्त होने के बाद भी किसी ने अपनी सेवा से संबंधित विजिलेंस क्लियरेंस सर्टिफिकेट राजभवन को अब तक नहीं सौपा है.

डॉ. टीएन साहू, वीसी, झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी

झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं डॉ. टीएन साहू. वर्ष 2021 में प्रोफेसर का नोटिफिकेशन हुआ. नोटिफिकेशन का एक साल भी नहीं हुआ था कि डॉ. साहू वर्ष 2022-23 में वीसी बन गए. इनके पास 10 साल प्रोफेसर के पद पर रहने का अनुभव नहीं था. इतना ही नहीं, पीएन साहू झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) में सदस्य थे. सदस्य रहते हुए उन्होंने प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार दिया. इन पर जेपीएससी सदस्य रहते हुए अनुचित लाभ लेने का आरोप लगा, जिसकी वजह से इन्हें जेपीएससी से इस्तीफा देना पड़ा था.

डॉ. तपन कुमार शांडिल्य, वीसी, डीएसपीएमयू

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं डॉ. तपन कुमार शांडिल्य. ये 2016 में प्रोफेसर बने. बतौर प्रोफेसर 10 वर्ष पूरे भी नहीं हुए. सात साल बाद ही कुलपति बन गए. मगध यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर से संबंधित अधिसूचना जारी हुई थी. दस्तावेज बता रहे हैं कि तपन कुमार शांडिल्य कुलपति पद के लिए निर्धारित अर्हता को पूरा नहीं करते हैं. इसके बाद भी इनकी नियुक्ति हुई. डॉ. शांडिल्य इससे पहले कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस पटना के प्रिंसिपल थे.

डॉ अजीत कुमार सिन्हा, कुलपति, रांची विश्वविद्यालय

ये 10 वर्षों का प्रोफेसर या समतुल्य पद पर कार्य करने की योग्यता नहीं रखते हैं. 27 मार्च 2014 को इंटरनेशनल सेरीकल्चर कमिशन, भारत सरकार को अजित कुमार सिन्हा की ओर से प्रेषित स्वहस्ताक्षित बायोडाटा में साइंटिस्ट डी के रूप में पदस्थापित होने की पुष्टि की गई है. डॉ. सिन्हा को साइंटिस्ट डी के रूप में सरकार की ओर से निर्धारित अधिकतम वेतनमान 15600-39100, पे बैंड ग्रेड पे- 8700 है. सेवानिवृत्ति के समय उनका स्वप्रमाणित अधिकतम वेतनमान लेवल 13 तक ही रहा. प्रोफेसर के लिए निर्धारित वेतनमान लेवल 14 का कार्यानुभव उन्हें नहीं है. कुलपति पद के लिए जारी विज्ञापन में 10 वर्षों का प्रोफेसर या समतुल्य पद पर कार्यानुभव वांछित है, जो इनके अभिलेखों से पुष्ट नहीं होता है.

डॉ. सुखदेव भोई, बीबीएमकेयू

डॉ. सुखदेव भोई बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के कुलपति हैं. यह दिल्ली में किसी कॉलेज में कार्यरत थे. अचानक कुलपति बन गए. मिली जानकारी के अनुसार यह भी कई अर्हताओं को पूरा नहीं करते. कुलपति बनने के बाद से ही चर्चा में बने हुए हैं. इन पर बिना निविदा आमंत्रित किए सिर्फ कोटेशन के आधार पर कार्य का आवंटन, वित्तीय अनियमितता, प्रक्रिया का पालन किए बगैर कैंपस में मैन पावर सप्लाई, बिना प्रक्रिया अपनाए बड़े पैमाने पर वस्तुओं की खरीद, प्रक्रिया पूरी किए बिना उत्तर पुस्तिका बाजार में बेचने, सिटी क्लैप कंपनी को राज्य सरकार से अनुमति लिए बगैर सुरक्षा गार्ड उपलब्ध कराने का लाइसेंस जारी करना, टुंडी, सिंदरी, पीके राय मेमोरियल कॉलेज, गोमिया समेत कुछ अन्य कॉलेजों के प्राचार्य, एचओडी और पीजी विभाग के डीन से रुपये लेने, 10 महीने की अवधि में कुल 46 तबादले समेत कई आरोपों की जांच चल रही है.

फोन नहीं उठाया, वाट्सएप देखा, जवाब नहीं दिया

दैनिक शुभम संदेश ने उक्त कुलपतियों से संपर्क करने की कोशिश की गई. मगर किसी भी वीसी ने फोन नहीं उठाया. तब उनके वाट्सएप नंबर पर संपर्क किया गया. उनका पक्ष जानने का प्रयास किया, मगर तीनों में से किसी भी वीसी ने कोई जवाब नहीं दिया. हालांकि, तीनों ने वॉट्सएप संदेश देख लिया है

एक ही सर्च कमेटी ने नियुक्त किए चार कुलपति

राज्यपाल सह कुलाधिपति द्वारा कुलपति का चयन किया जाता है. राज्य सरकार से भी सहमति ली जाती है. नियम है कि कुलपति के जितने पद रिक्त हैं, उन सभी पर कुलपति का चयन सर्च कमेटी के सहयोग से किया जाता है. एक पद पर जितनी संख्या में नियुक्ति होनी होती है, उतनी ही संख्या में सर्च कमेटी गठित होती हैं. बिहार में अभी आधा दर्जन यूनिवर्सिटी में कुलपति के पद पर नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है. जितने पद पर नियुक्ति होनी है, उतनी सर्च कमेटी का गठन किया गया है. मगर झारखंड में एक ही सर्च कमेटी ने चार कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर दी.

क्या है नियम

यूजीसी एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार रामतवक्या सिंह बनाम बिहार सरकार सीडब्ल्यूजेसी, नंबर 16680-2014 में आदेशानुसार किसी भी विवि के कुलपति नियुक्ति के पूर्व उसकी योग्यता नोटिफिकेशन के बाद से कुल 10 वर्ष का यूनिवर्सिटी प्रोफेसर पद का कार्यानुभव या समकक्ष पद पर रहने का पूरा अनुभव होना आवश्यक है.

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