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रांची विवि… अपनों पर कृपा बरसाई

पदभार संभालते ही कुलपति ने चहेतों को मलाईदार पदों पर बैठाया
वीसी डॉ. अजीत सिन्हा ने चुप्पी साधी, चहेते की अजब-गजब सफाई

Amit Singh

Ranchi :   रांची विवि झारखंड के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों में से एक है. एक समय कम संसाधन के बावजूद विवि छात्रों को बेहतर शिक्षा देने के लिए जाना जाता था. लेकिन अब रांची विवि की पहचान यूजीसी गाइडलाइन की अनदेखी और नियम विरुद्ध काम करने वाले शैक्षणिक संस्थान के रूप में बन गयी है. विवि के सिस्टम पर कुलपति डाॅ. अजीत कुमार सिन्हा के चहेतों ने कब्जा जमा लिया है. कुलपति का पदभार संभालते ही डॉ. अजीत सिन्हा ने नियमों को ताख पर रखकर अपने चहेतों को मलाईदार पदों पर बैठा दिया है. अब उनके चहेते, विवि को आर्थिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं. लेकिन पूछने पर सभी कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं हैं. कुलपति के चहेते एक साहब तो कहते हैं कि उन्हें तीन महीने से तनख्वाह ही नहीं मिली है. कहते हैं- दिनभर तो खटते ही रहते हैं. व्यवस्था ठीक रखने में जुटे रहते हैं. अह ई उम्र में कुछ उलटा-पलटा छप जाएगा तो बदनामिए न होगा. कहां-कहां सफाई देते फिरेंगे.

बिनोद सिन्हा ने रेडियो खांची का पैसा अपने अकाउंट में ट्रांसफर किया

कुलपति के पहले करीबी हैं बिनोद कुमार सिन्हा. 74 वर्ष की उम्र में विवि के रेडियो खांची की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. उन्होंने रेडियो खांची के अकाउंट से लाखों रुपये अपने निजी खाते में ट्रांसफर करा लिया. विवि के वित्त परामर्शी ने लाखों की हेराफेरी पकड़ी. वेतन पर रोक लगा दी. कुलपति सहित वित्त विभाग को गडबड़ी की जानकारी दी. लेकिन सइयां भये कोतवाल तो डर काहे का. आज भी बिनोद बाबू रेडियो खांची का कामकाज देख रहे हैं. रेडियो खांची के साथ-साथ विवि के मास काॅम डिपार्टमेंट हेड की जिम्मेवारी भी संभला रहे थे.11 माह के अनुबंध पर नियुक्ति हुई थी. अनुबंध समाप्त होते ही कुलपति डॉ. अजीत कुमार सिन्हा ने उन पर कृपा बरसायी, रेडियो खांची की जिम्मेवारी सौंप दी.

सिन्हा साहब ने दी सफाई, कहा- मैंने गलत काम नहीं किया

वित्त परामर्शी द्वारा हेराफेरी पकड़ने और वेतन रोके जाने के संबंध पूछा गया तो बिनोद कुमार सिन्हा ने सफाई दी. कहा- मैंने कोई गलत काम नहीं किया है. मेरी नियुक्ति इंटरव्यू देने के बाद हुई है. जहां तक रेडियो खांची के अकाउंट से अपने अकाउंट में पैसा मंगाने की बात है, तो मैंने पैसा अकाउंट में ट्रांसफर किया है. लेकिन वह पैसा मेरे वेतन का है. वेतन का भुगतान विवि प्रशासन करता है, तब आपने अपने पावर का इस्तेमाल करते हुए पैसा क्यों ट्रांसफर किया? यह सवाल सुनते ही चुप हो गये. कहने लगे- मैं कोई गलत काम नहीं करता हूं. वित्त परामर्शी ने क्या गडबड़ी पकड़ी है, इस संबंध में मैं नहीं बोल सकता.

शिक्षण कार्य का महत्व नहीं, ओएसडी और पीआरओ का काम है जरूरी

रांची विवि के कुलपति डॉ. अजीत सिन्हा ने अजब-गजब कारनामा कर रखा है. नियम विरुद्ध एक सहायक प्रोफेसर डॉ स्मृति सिंह को ओएसडी बना दिया. इनकी नियुक्ति 2008 में सहायक प्राध्यापक के रूप में हुई थी. पीजी केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में सहायक प्राध्यापक हैं. जिस बैच में नियुक्ति हुई थी, उसकी जांच सीबीआई कर रही है. यूजीसी रेगुलेशन के अनुसार सहायक अध्यापक को कार्य दिवस में 6 घंटे क्लास में गुजारने हैं. यानी पढ़ाना है. इसकी इंट्री सेवा पुस्तिका में होती है. मूल काम यही है. मगर कुलपति का पद संभालते ही डाॅ. अजीत सिन्हा ने डॉ. स्मृति सिंह को विवि का ओएसडी बना दिया. विवि के पीआरओ का काम भी डॉ. स्मृति ही देखती हैं. वोकेशनल कोर्स की डिप्टी को-ऑर्डिनेटर की जिम्मेवारी भी सौंप दी गयी है. पूर्व में मैडम को स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन और इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडी में भी पद मिला था. पर अभी वहां से फ्री हैं. मजेदार बात यह है कि विवि में ओएसडी का कोई पद नहीं है. झारखंड विवि अधिनियम एवं परिनियम के अंतर्गत कुलपति को विवि में कोई भी पद सृजित करने का अधिकार नहीं है. पद सृजन के लिए प्रस्ताव तैयार कर सिंडिकेट और सीनेट की बैठक में स्वीकृत कराना होता है. मगर ऐसा नहीं किया गया.