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झारखंड : सरकार गलत आधार पर बना रही पेसा नियमावली

आदिवासी संगठनों को नहीं भा रहा पेसा नियमावली का प्रारूप

– नियमावली के सरकार के आधार को बताया गलत

– परंपरागत स्वशासन व्यवस्था को नहीं दिया गया स्थान

pravin Kumar 

Ranchi : पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) की नियमावली पर आदिवासी संगठनों ने आपत्ति जतायी है. उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा तैयार की जा रही नियमावली के आधार को ही गलत ठहराया है. उनका कहना है कि पेसा नियमावली के औपबंधिक प्रारूप में आदिवासियों की परंपरागत स्वशासन व्यवस्था को ही स्थान नहीं दिया गया है.

नियमावली झारखंड पंचायती राज अधिनियम के आधार पर बनायी गयी है

पेसा कानून लागू करने को लेकर वर्ष 2021 में जनहित याचिका (संख्या 49/2021) दायर करने वाले वाल्टर कंडुलना ने कहा कि झारखंड सरकार के पंचायती राज विभाग ने पेसा नियमावली का औपबंधिक प्रारूप जारी किया है. यह पूरी नियमावली झारखंड पंचायती राज अधिनियम के आधार पर बनायी गयी है. जो पेसा कानून-1996 और संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत पांचवीं अनुसूची के खिलाफ है. संविधान का IX अध्याय (पंचायत) के समकक्ष अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा कानून-96 बनाया गया था.

पेसा कानून को, जेपीआरए का विस्तारीकरण समझ लिया है

दूसरे शब्दों में अध्याय IX को अपवादों और रूपांतरणों के अधीन, अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित किया गया है. पेसा कानून मूलत: इन्हीं अपवादों और रूपांतरण के तहत 23 प्रावधानों का संकलन है. यही 23 प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों की पंचायत व्यवस्था को, सामान्य क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा स्वशासी बनाते हैं. वहीं, झारखंड पंचायती राज अधिनियम -01 सिर्फ ग्राम सभा को महत्व देता है. पेसा-96 की धारा 4 (ए) में आदिवासियों की सम्पूर्ण पारंपरिक सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था को संवैधानिक स्तर पर मान्यता देती है. लेकिन सरकार ने पेसा कानून को, जेपीआरए का विस्तारीकरण समझ लिया है. जो पूरी तरह गलत है. पेसा कानून की धारा-3 के अनुसार, पेसा 96 झारखंड राज्य के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है. लेकिन झारखंड पंचायती राज अधिनियम के तहत कुछ अनुसूचित क्षेत्रों को नगर निगम या नगरपालिका के दायरे में रखा गया है जो पूरी तरह गलत है.

सरकार ने मांगी थी आपत्ति

पेसा नियमावली को लेकर जारी औपबंधिक प्रारूप पर आपत्तियां एवं सुझाव पंचायती राज विभाग, झारखंड सरकार द्वारा मांगे गए थे. इसके तहत दो दर्जन से अधिक आपत्तियां दर्ज की गई हैं. विभाग उन आपत्तियों एवं सुझावों को लेकर अंतिम नियमावली तैयार कर विधि विभाग को भेजेगा. इसके बाद कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जायेगा. लेकिन विभाग के पेसा नियमावली के औपबंधिक प्रारूप में आदिवासियों की परंपरागत स्वशासन व्यवस्था को स्थान नहीं दिए जाने पर आदिवासी संगठन भी आपत्ति दर्ज करा चुके हैं. दो दर्जन से अधिक संगठनों ने नियमावली के आधार को गलत करार देते हुए इसका विरोध किया है.

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