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यूपी में I.N.D.I.A. के लिए टिकट बंटवारे की सबसे बड़ी चुनौती, जयंत चौधरी ने 25 लोकसभा सीटों से नेताओं की बुलाई मीटिंग

मेरठ: उत्तर प्रदेश में क्या राजनीतिक धारा बदलने वाली है? यह सवाल उस समय से तेज हुए हैं, जब से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. आकार लेता दिख रहा है। हालांकि, यूपी के राजनीतिक मैदान में I.N.D.I.A. कितना कारगर है, यह देखना दिलचस्प होगा। दरअसल, अभी यूपी के दो मुख्य राजनीतिक दल I.N.D.I.A. का भाग बनते दिख रहे हैं। ये समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल हैं। तीसरी कांग्रेस राष्ट्रीय फलक की पार्टी है। ऐसे में यूपी के विपक्षी गठबंधन में सीटों का बंटवारा किस प्रकार होगा? यह सवाल सबसे बड़ा बन गया है। एक तरफ अखिलेश यादव अपने नेताओं को नाराज करने के मूड में नहीं हैं। यूपी के पिछले चुनावों में अखिलेश यादव को बाहरी से अधिक विरोध भीतरी से झेलना पड़ा है। यूपी चुनाव 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन हो या फिर 2019 में सपा-बसपा गठबंधन, अखिलेश को सबसे अधिक सीटें साथियों के लिए छोड़नी पड़ी थी। इसका खामियाजा पार्टी के संगठन को निचले स्तर पर मजबूत रखने में होता रहा है। इस कारण यूपी चुनाव 2022 में जब सपा ने किसी भी बड़े दल से गठबंधन नहीं किया। पार्टी फायदे में रही। संगठन के लोगों ने जमकर प्रयास किया और समाजवादी पार्टी ऑल टाइम हाई वोट बैंक लेकर आई। लेकिन, अब 2024 की बारी है। इसकी तैयारी कर रहे राजनीतिक दलों की अपनी महत्वाकांक्षा है। कांग्रेस राष्ट्रीय दल की हैसियत दिखा रही है। वहीं, जाटलैंड में अब जयंत चौधरी अपनी राजनीति चमकाने में जुट गए हैं। पिछले कुछ दिनों से उनके बदले मिजाज अखिलेश की ही टेंशन बढ़ा रहे हैं।जयंत चौधरी ने दिए हैं बड़े संकेत
जयंत चौधरी ने लोकसभा चुनाव की तैयारियों को पूरा कराना शुरू कर दिया है। वे लगातार पश्चिमी यूपी में सक्रिय हैं। अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट कर रहे हैं। पश्चिमी यूपी और जाटलैंड में जयंत खुद को मजबूत बनाने की कोशिश में है। राष्ट्रीय लोक दल ने 11 सितंबर को एक अहम बैठक बुलाई है। आरएलडी प्रमुख ने लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के संगठन को मजबूत करने की कवायद के बैठक का निर्णय लिया है। रालोद अपने पांव पांच मंडलों मुरादाबाद, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर और आगरा में जमाने की कोशिश में है। यहां पर जाट वोटरों की अधिकता है। इनके जरिए पार्टी करीब 25 जिलों में पार्टी के संगठन को मजबूत कर इलेक्शन रेडी करने की तैयारी में है।वेस्ट यूपी की अधिकांश सीटों पर RLD का दावा
आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी कहते हैं कि पश्चिम यूपी क्षेत्र के सभी क्षेत्रीय और जिला अध्यक्षों को बैठक में भाग लेने और मौजूदा जमीनी स्तर की राजनीतिक स्थिति के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए कहा गया है। उन्होंने कहा कि विचार यह है कि पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए। इस घटनाक्रम को खुद को मजबूती से स्थापित करने के लिए आरएलडी के नए रुख के रूप में देखा जा रहा है। विपक्षी गठबंधन भाजपा से मुकाबला करने के लिए सीट बंटवारे के फार्मूले पर चर्चा करने के लिए तैयार है। सूत्रों का कहना है कि आरएलडी ने पहले ही पश्चिम यूपी क्षेत्र में अधिकतम लोकसभा सीटों के लिए दावा करना शुरू कर दिया है। इससे संबंधित संदेश लगातार भेजे जा रहे हैं। जाट और गुर्जरों की आबादी वाले क्षेत्र में पार्टी अपना अधिकार चाहती है।

आरएलडी के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम मिश्र का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद से पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है। हम सपा के लिए सही गठबंधन सहायक साबित हुए हैं। कांग्रेस के साथ भी हमारे अच्छे संबंध हैं। बड़े विपक्षी गठबंधन का हिस्सा होने के नाते हमें अच्छी वापसी की उम्मीद है। विशेषज्ञों का कहना है कि विपक्षी दल भाजपा के साथ आमने-सामने की लड़ाई की रणनीति तैयार कर रहे हैं।

बेहतर तालमेल की बताई जा रही जरूरत
आरएलडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भगवा इलेक्शन मशीनरी को हराने के लिए पूरे विपक्ष को अच्छा तालमेल बनाना होगा। हमें एक साथ आने की जरूरत है। सूत्रों ने कहा कि आरएलडी की ओर से मंगलवार को संसद भवन में कांग्रेस अध्यक्ष और भारत के संयोजक मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से बुलाई गई बैठक के दौरान अपना व्यू साफ कर सकती है। सूत्रों की मानें तो विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाया जा सकता है। आरएलडी के उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी को I.N.D.I.A. की अभियान समिति में जगह मिली है। वहीं, रोहित जाखड़ और प्रशांत कन्नौजिया जैसे अन्य नेताओं को सोशल मीडिया अभियान समिति और मीडिया अभियान समिति में शामिल किया गया है।जयंत की तैयारी से राजनीतिक हलचल
जयंत चौधरी की तैयारी से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सबसे अधिक टेंशन अखिलेश यादव की बढ़ने वाली है। गठबंधन को लेकर वे पहले ही तमाम सहयोगियों को संदेश दे चुके हैं। इतना तो तय माना जा रहा है कि यूपी की 80 लोकसभा सीटों में 50 से कम पर इस बार समाजवादी पार्टी नहीं उतरने वाली है। ऐसी स्थिति में बची 30 सीटें ही अन्य सहयोगियों को मिलेंगी। कांग्रेस पहले से 25 सीटों पर दावा कर रही है। वहीं, जयंत चौधरी भी 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जाने की दावेदारी पेश कर चुके हैं। ऐसे में सीट बंटवारे का फॉर्मूला कैसे तय होगा? कौन दल अधिक समझौता करता है, यह भी देखना दिलचस्प होगा।

अखिलेश यादव अभी किसी भी स्थिति में पश्चिमी यूपी के भरोसेमंद सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल को बाइपास करने में मूड में नहीं दिख रहे हैं। पूर्वांचल में उन्हें ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान वाला झटका लग चुका है। ऐसे में पार्टी पश्चिमी यूपी में खुद को मजबूत बनाए रखने और पूरब तक संदेश भेजने की योजना में है। ऐसे में जयंत के साथ-साथ अखिलेश के अगले पैंतरे पर हर किसी की नजर होगी।