कोरोना संक्रमण के कारण 23 मार्च से न्यायालय का कामकाज ठप है। जिला सहित अधीनस्थ न्यायालयों का ताला नहीं खुला है। वकील आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। दूसरी तरफ वकील चाह कर भी दूसरा व्यवसाय नहीं कर सकते।
एडवोकेट एक्ट 1969 के तहत खीचीं गई लक्ष्मण रेखा उनके के लिए परेशानी का कारण बन गई है। इसे लेकर ही छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में दो वकीलों ने जनहित याचिका दायर की है। अब कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। एक्ट के घेरे में प्रदेश के 26 हजार वकील फंसे हुए हैं।
वकालत के लिए लाइसेंस जारी करते वक्त बार काउंसिल ऑफ इंडिया की शर्त होती है कि व्यक्ति वकालत के अलावा कोई दूसरा व्यवसाय नहीं कर सकेंगे। वर्तमान दौर में वकीलों को न्याय दिलाने के लिए राजेश केशरवानी ने हाई कोर्ट के वकील संदीप दुबे के जरिए जनहित याचिका दायर की है।
दायर याचिका में बताया गया है कि कोर्ट बंद होने के कारण वकीलों से सामने आर्थिक संकट गंभीर हो गया है। ऐसे में वकीलों को आर्थिक मदद की जरूरत है। इसके साथ ही जरूरी है कि वकीलों अन्य व्यवसाय की अनुमति भी दी जाए। चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की नोटिस के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्टेट बार कौंसिल के बैंक अकाउंट में 45 लाख रुपये जमा कर वकीलों को आर्थिक मदद देने के निर्देश दिए थे। स्टेट बार कौंसिल ने अब तक 1500 वकीलों को उनके बैंक में प्रति वकील तीन से पांच हजार रुपये जमा किए हैं। आर्थिक मदद के लिए स्टेट बार काउंसिल के पास वकीलों की अर्जी अब भी आ रही है।
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