Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

बेच दी करोड़ों की सरकारी जमीन – Lagatar

गोड्डा जिले के महगामा अंचल के बसुआ मौजा का है मामला, 169 बीघा जमीन का सौदा
विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से पूरे खेल को दिया गया अंजाम

महगामा से लौटकर प्रवीण कुमार\अमित सिंह की रिपोर्ट

Ranchi :  गोड्डा जिले के महगामा अंचल में भू-माफिया ने करोड़ों रुपये मूल्य की सरकारी जमीनों का सौदा कर दिया है. कई भूखंडों पर इमारतें भी खड़ी हो चुकी हैं. इन सरकारी जमीनों का कहीं व्यावसायिक तो कहीं आवासीय इस्तेमाल किया जा रहा है. ताजा मामला बसुआ मौजा की 169 बीघा (लगभग 3 हजार 3080 डिसमिल) जमीन का है. यह पूरी जमीन सरकारी है. भूमाफिया ने विभागीय अधिकारियों की कथित तौर पर मिलीभगत से उक्त जमीन की बंदोबस्ती करा ली है. यह जमीन परती कदीम नेचर की है. नियमों की अनदेखी कर जमीन की बंदोबस्ती कराई गई है. बसुआ मौजा की पंजी टू में दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा कर एक ही परिवार के कई लोगों के नाम पर बंदोबस्ती करायी गई है. साथ ही एक ही व्यक्ति का नाम, टाइटल और पता बदलकर कई बार बंदोबस्ती कराई गई है. सरकारी जमीनों की खरीद-बिक्री का यह खेल अब भी जारी है. इस खेल में कुछ नेता और अधिकारी भी शामिल हैं. इस जमीन पर अपना मालिकाना हक होने का दावा करने वालों का कहना है कि यह भूमि जमींदार द्वारा बंदोबस्त की गई है. वहीं, सरकार के पास बसुआ मौजा की जमीन से संबंधित जमींदारी रिटर्न का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है. स्पष्ट है कि बसुआ मौजा की इन सरकारी जमीनों की बंदोबस्ती जमींदारी प्रथा उन्मूलन के पहले नहीं की गई है. ऐसे में रिकॉर्ड के अनुसार यह पूरी जमीन सरकारी है.

क्या कहता है नियम

राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1967 में एक आदेश जारी किया गया था. इसके तहत समुचित छानबीन के उपरांत ही अनुमंडल पदाधिकारी जमाबंदी खोल सकते हैं. इस आदेश में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अनिबंधित सादा पट्टा के आधार पर जमाबंदी नहीं की जा सकती. नियमानुसार, छानबीन के बाद जिनके नाम पर जमीन की बंदोबस्ती होती है, वह बंदोबस्त की गई जमीन की खरीद बिक्री नहीं कर सकते हैं.

कैसे हुआ अवैध बंदोबस्ती का खेल

सादे हुक्मनामा के आधार पर जमींदार से प्राप्त की गई भूमि दिखाकर अंचल कार्यालय के अधिकारियों की मिलीभगत से जमीन का जमाबंदी कायम की गई. इसके बाद पंजी टू में छेड़छाड़ कर सरकारी जमीन को हथिया लिया गया.

जमीन के खेल में कौन-कौन हैं शामिल

कैलाश कुमार टिबड़ेवाल जमीन पर मालिकाना हक के दावेदार हैं. टिबड़ेवाल परिवार के नाम पर सरकारी जमीन की बंदोबस्ती की गई है. कैलाश मूल रूप से कोलकाता के रहने वाले हैं. वह एक लगान रसीद के आधार पर खुद को जमींदार का वंशज बताते हुए उक्त सरकारी जमीन पर मालिकाना हक का दावा जताते हैं. यह लगान रसीद फर्जी है. इस फर्जी रसीद को वर्ष 1940-50 के दशक का बताया जाता है. बाबू द्वारिका प्रसाद टिबड़ेवाल, बहादुर वंशीधर ढंढनिया, बाबू रवि कुमार ढंढनिया, बाबू हरीश प्रसाद ढंढनिया, बाबू शिव कुमार ढंढनिया, बाबू शंकर प्रसाद ढंढनिया, छोटा लाल ढंढनिया, राम अवतार ढंढनिया, मडवाड़ी बाबू महली, गोपी नाथ मडवाड़ी, सरस्वती देवी, बृजमोहन प्रसाद आदि भी उक्त सरकारी जमीन के हिस्सेदार बताए गए हैं. उनका दावा है कि सादा हुक्मनामा द्वारा जमींदारी प्रथा उन्मूलन के पूर्व उक्त लोगों के नाम पर जमीन की बंदोबस्ती की गई थी. लेकिन जमींदारी रिटर्न में इस जमीन की बंदोबस्ती का कोई आधार न तो सरकार के पास है और न ही जमीन के दावेदारों के पास.

जानें जमीन का इतिहास

महागामा के बसुआ मौजा की जमीन परसंडा स्टेट की थी. स्टेट के जमींदार वंशीधर ढंढनिया थे. इन्हें राय बहादुर की उपाधि भी मिली थी. इनके पास जमीन का हुक्मनामा जारी करने का अधिकार था. लेकिन जमींदारी प्रथा उन्मूलन के उपरांत जमींदारों द्वारा जारी हुक्मनामे को एसडीओ द्वारा अप्रूव कराया जाना था. बसुआ मौजा की विवादित जमीन परती कदीम नेचर की है. लेकिन आज तक एसडीओ ने हुक्मनामे को अप्रूव नहीं किया. बिना अप्रूवल कराए पंजी टू में नाम दर्ज कर दिया गया. साथ ही पंजी टू में जिस केस नंबर से जमाबंदी दर्ज की गई है, उससे संबंधित साक्ष्य (केस नंबर 04/1960-61) सरकार के पास भी नहीं हैं. जिनके नाम पर करोड़ों की जमीन बंदोबस्त की गई, उनके पास भी बंदोबस्ती के साक्ष्य नहीं हैं. सरकार द्वारा मांगे जाने के बाद भी बंदोबस्त से संबंधित दस्तावेज संबंधित लोगों द्वारा उपलब्ध नहीं कराए गए.

इसे भी पढ़ें : शुभम संदेश एक्सक्लूसिव-1: बेच डाली 300 बीघा सरकारी जमीन