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19 साल सरकार में रह कर आजसू लागू नहीं करवा पाई अपना

1932 खतियान, विशेष राज्य, ओबीसी आरक्षण पर सिर्फ दिखावे का आंदोलन
कैबिनेट और विधानसभा में नीतियां पास कर बाहर विरोध का दिखावा करती रही है आजसू

Pravin Kumar./ Satya Sharan Mishra

Ranchi : झारखंड में क्षेत्रीय पार्टियों में दो दलों का वर्चस्व है. इनमें एक झामुमो और दूसरी आजसू पार्टी है. झारखंड गठन के बाद जन्मी सुदेश महतो की आजसू पार्टी ने कम समय में राज्य में खुद को मजबूती के साथ स्थापित किया. हर विधानसभा चुनाव में सिर्फ 2-4 विधानसभा सीटें जीतने वाली आजसू पार्टी शुरुआती दौर में राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभाती रही है. जब भी राज्य में कोई सरकार अल्पमत में आई तब-तब सत्ताधारियों और विपक्षी नेताओं की गाड़ियां आजसू चीफ सुदेश महतो के घर के बाहर लगी. राज्य में अबतक भाजपा, झामुमो और कांग्रेस के सहयोग से निर्दलीय मधु कोड़ा की सरकार बनी है, लेकिन राज्य में सत्ता का सुख सबसे अधिक आजसू पार्टी ने भोगा. 2019 के पहले सरकार किसी की भी रही हो. उसमें आजसू को मंत्री पद जरूर मिला है. झारखंड आंदोलन, झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने, सीएनटी एक्ट, जातिगत जनगणना, 1932 का खतियान, स्टैच्यू ऑफ उलगुलान, झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मान जैसे कई मुद्दों को लेकर आजसू पार्टी राजनीति करती है. वह सत्ता में भी सबसे अधिक समय तक रही है, लेकिन वह अपने घोषणापत्रों के एक भी एजेंडे सरकार से लागू नहीं करा पाई.

1932 पर पलटी मार दी थी

आजसू पार्टी शुरू से 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने की मांग करती रही है, लेकिन 2016 में जब रघुवर दास की सरकार थी तब कैबिनेट में 1985 के खतियान के आधार पर नियोजन नीति बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. उस कैबिनेट की बैठक में आजसू कोटे के मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी और अन्य विधायक भी थे. इसके बाद जब विधानसभा से इस विधेयक को पारित किया गया उस वक्त भी चंद्रप्रकाश चौधरी इस विधेयक के पक्ष में थे. विपक्ष के भारी विरोध के बीच विधेयक सदन में पारित हुआ. इसके बाद आजसू पार्टी की नींद खुली. कैबिनेट और विधानसभा में नियोजन नीति को समर्थन देने के बाद जनता के बीच आजसू पार्टी ने पलटी मार दी. सुदेश महतो अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े हो गये. आंदोलन, प्रदर्शन शुरू हो गया और फिर धीरे-धीरे मामला शांत हुआ. भाजपा और आजसू फिर से एक हो गये.

विशेष राज्य के मुद्दे का क्या हुआ

2013-14 के आसपास आजसू पार्टी ने झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग तेज की थी. राज्यभर में आंदोलन शुरू हुआ था. सुदेश महतो के नेतृत्व में हजारों आजसू कार्यकर्ता इस मांग को लेकर दिल्ली पहुंचे. कहा देश का 40 फीसदी खनिज झारखंड में है फिर भी राज्य पिछड़ा है. राज्य में बीपीएल की संख्या बढ़ी है. बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. 24 में से 21 जिले उग्रवाद-नक्सलवाद प्रभावित हैं. राज्य सिंचाई, स्वास्थ्य के मामले में पिछड़ा है इसलिए इसे विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. चुनाव के पहले मांग तेज हुई, लेकिन 2014 का चुनाव खत्म होने के बाद आजसू को भाजपा की सरकार में एक कैबिनेट मंत्री का पद मिल गया. उसके बाद यह मुद्दा खत्म हो गया. फिर आजसू ने कभी विशेष राज्य के दर्जे की मांग नहीं उठाई.

सीएनटी एक्ट पर सदन में हां बाहर ना

2016 में रघुवर सरकार में सीएनटी एक्ट में संशोधन किया गया था. मामले को लेकर विपक्ष ने खूब हंगामा किया. सड़क से सदन तक विपक्ष का हंगामा हुआ. आजसू ने सीएनटी एक्ट संसोधन मामले में भी वही खेला किया जो 1985 के स्थानीय नीति में किया था. पहले कैबिनेट और फिर विधानसभा में समर्थन दे दिया उसके बाद सदन के बाद विरोध शुरू कर दिया. आजसू ने जब देखा इस मुद्दे पर भाजपा पूरी तरह घिर चुकी है. तब अपना आदिवासी-मूलवासी वोटबैंक बचाने के लिए उनसे विरोध शुरू कर दिया. सरकार में धरना-प्रदर्शन और सरकार को चेतावनी देने का दौर लंबे समय तक चला. फिर बाद में सबकुछ शांत. ऐसे कई मुद्दे हैं जो आजसू पार्टी के एजेंडे में हैं, जिसपर उसका स्टैंड क्लियर ही नहीं है.

फिर भाजपा-आजसू की जोड़ी है तैयार

2019 के बाद से आजसू पार्टी झारखंड में सत्ता सुख से वंचित है. 2019 में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने पर उसे तीन सीट का नुकसान झेलना पड़ा है. उधर भाजपा को भी आजसू से अलग होकर 12 सीटों का नुकसान हुआ है. आजसू और भाजपा फिर से एक हो गये हैं। 2024 में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, लेकिन इस बार भी भाजपा और आजसू के एजेंडे अलग-अलग होंगे. भाजपा मुख्य रूप से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर फोकस करेगी और आजसू का इस बार भी वही 1932, विशेष राज्य, ओबीसी आरक्षण जैसे मुद्दे लेकर उतरेगी. अगर भाजपा-आजसू की सरकार बन भी गई तो फिर से वही अंदर समर्थन और बाहर विरोध जैसी चीजें देखने को मिलेंगी.

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