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यहां घर-घर विराजते हैं राम-सीता, यूं ही नहीं चुंदी कहलाता ‘रामलीला वाला गांव’, कलाकारों की है भरमार

नवरात्र का त्‍योहार चल रहा है। चारों ओर दुर्गा पूजा की धूम है। जगह-जगह रामलीला का मंचन हो रहा है। ऐसे में यहां उस गांव की बात की जा रही है जो रामलीला वाला गांव के नाम से मशहूर है। यहां के हर घर में कलाकार हैं। यह गांव है रमना प्रखंड का चुंदी। इस गांव में 100 से अधिक कलाकार हैं.

19 Oct 2023

रमना (गढ़वा) : गढ़वा जिला का एक ऐसा गांव, जहां घर-घर प्रभु श्रीराम का गुणगान है। यहां की जीवनशैली में प्रभु की लीला व्याप्त है। गांव के हर घर में राम, लक्ष्मण और सीता से लेकर रावण, कुंभकरण, मेघनाथ व अन्य की भूमिका निभाने वाले कलाकार हैं। इनकी कलाकारी और संवाद में प्रवाह इस कदर है कि निभाए गए पात्रों का चरित्र और उनका अभिनयन एकरूप हो जाता है।

‘रामलीला वाला गांव’ के नाम से है चुंदी मशहूर

यह गांव है रमना प्रखंड के चुंदी। लगभग ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में 100 से अधिक कलाकार हैं। आसपास के इलाकों में इसे ‘रामलीला वाला गांव’ कहा जाता है। साल 2005 से ही ये लोग अपने गांव में रामलीला का मंचन कर रहे हैं। साल 2005 में गांव के चंद्रदेव प्रजापति, अकलू साह, कालिचरण साह, रामप्यारी प्रजापति, विनोद कुमार सहित कई ग्रामीणों ने रामलीला मंडली की स्थापना की थी। एक-एक कर इसमें ग्रामीण जुड़ते गए और गांव में ही रामलीला के सभी कलाकार तैयार हो गए। अब तो नई पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है।

सालों से गांव में होता आ रहा रामलीला का मंचन

व्यवस्थापक शंभू यादव कहना है कि शारदीय नवरात्र में साल 2005 से ही रामलीला का आयोजन होता है। गांव के लोग पूरे उमंग से रामलीला देखते हैं। इसमें महेद्र पाल राम, मुकेश विश्वकर्मा भरत, राकेश विश्वकर्मा अहीरावन, कृष्ण कुमार यादव हनुमान, विरेंद्र पाल रावण तथा अरविंद साह सुमित्रा के पात्र का निर्वह्न करते हैं।इसके अलावे गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य किसी न किसी का पात्र की जिम्मेवारी का निर्वह्न कुशलता पुर्वक करता है।

बुजुर्ग कलाकार नई पीढ़ी को सिखाते संवाद कला

रामलीला मंडली के संस्थापक व बुजुर्ग कलाकारों में शामिल रामप्यारी प्रजापति, शंभू यादव, चंद्रदेव प्रजापति सहित अन्य सदस्य नई पीढ़ी को प्रशिक्षण देते हैं। संवाद से लेकर भाव-भंगिमा तक की बारीकियां बताते हैं। घर में भी कला का माहौल रहता है, तो बच्चे देखकर भी बहुत कुछ सीख जाते हैं। आमतौर पर एक कलाकार को एक ही पात्र की भूमिका निभानी रहती है इसलिए बार-बार के अभिनय से उनके संवाद प्रवाह में सहजता आ जाती है।

कोलकाता और वाराणसी से मंगाया जाता परिधान व प्रसाधन

रामलीला के लिए पहले गदा, धनुष, मुकुट, माला, साड़ी, रंगीन वस्त्र, महिलाओं व पुरुषों के बाल, मुखौटा, हल्दी, रोली, चंदन आदि का गांव मे ही जैसे-तैसे व्यवस्था कर लिया जात था या कलाकार स्वयं बनाते थे,लेकिन कुछ साल गुजर जाने तथा लोगों का आकर्षण बढ़ने के बाद गढ़वा से खरीदारी किया जाने लगा। अब यह सामान कोलकाता और वाराणसी से मंगवाया जाता है ताकि पहनावे को आकर्षक और मंच को भव्य बनाया जा सके। चुंदी का रामलीला मंडली चुंदी के साथ-साथ भागोडीह और डंडई के सोनेहार और इससे सटे इलाकों में काफी लोकप्रिय है।