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 सक्रिय राजनीति से रघुवर दास की विदाई के मायने

Ranchi : ओड़िशा का राज्यपाल बनाये जाने के साथ ही झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश में भाजपा के चाणक्य रघुवर दास झारखंड की सक्रिय राजनीति से विदाई हो गई है. रघुवर झारखंड में भाजपा का बड़ा चेहरा हैं. संगठन में उनकी मजबूत पकड़ है. कूटनीति और जोड़-तोड़ के दांव-पेंच में माहिर हैं. उम्मीद थी कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देगी. चर्चा थी कि उन्हें रांची या चतरा से लोकसभा का चुनाव लड़वाया जा सकता है, लेकिन राज्यपाल बनाये जाने के बाद इन सभी संभावनाओं पर विराम लग चुका है. झारखंड में भाजपा के पास नेताओं और कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या है, लेकिन प्रदेश स्तर के चेहरे सिर्फ तीन (बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास) हैं. चुनाव से पहले जब भाजपा को रघुवर के दांव-पेंच की जरूरत है, ऐसे वक्त में उन्हें झारखंड से विदा करने का केंद्रीय नेतृत्व का फैसला बहुत बड़ा कदम है. हालांकि 2019 का चुनाव भाजपा ने रघुवर के नेतृत्व में ही लड़ा था और सत्ता से बाहर हो गई थी. अब बाबूलाल मरांडी राज्य में भाजपा के सर्वमान्य नेता नजर आ रहे हैं, क्योंकि अर्जुन मुंडा भी केंद्र में मंत्री हैं और रघुवर को राजभवन भेज दिया गया है.

सरयू राय की भाजपा में वापसी के द्वार खुले!

रघुवर दास की विदाई से उनके खेमे में निराशा है. रघुवर के कंधे के सहारे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में टिकट की उम्मीद लगाये नेताओं की टेंशन बढ़ गई है. उधर भाजपा के दूसरे खेमों में खुशी का माहौल है. रघुवर के जाने से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा गुट के नेताओं में एक बार फिर उम्मीद जगी है. जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय और उनके समर्थकों के चेहरे भी खिल गये हैं. प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के गुट के भी नेताओं और कार्यकर्ताओं के चेहरे में चमक आ गई है. रघुवर दास के ओडिशा जाने के बाद कोल्हान प्रमंडल में भाजपा में बड़ा बदलाव होने की संभावना दिख रही है. कहा जा रहा है कि जल्द ही सरयू राय की भाजपा में वापसी हो सकती है.

रघुवर को ओडिशा भेजकर कोल्हान में डैमेज कंट्रोल करने की तैयारी

भाजपा के एक कार्यकर्ता ने बताया कि 2019 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की हार और कोल्हान प्रमंडल में भाजपा का सूपड़ा साफ होने के लिए रघुवर दास को जिम्मेवार माना जा रहा था. चुनाव के बाद कोल्हान में तीन गुटों में बंटे भाजपा का अंदरूनी कलह सतह पर आ चुका था. चुनाव हारने के बाद भी रघुवर दास जमशेदपुर में अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए हाथ-पैर मार रहे थे. उधर सरयू राय अंदर ही अंदर संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच अपनी पैठ बना रहे थे. कई ऐसे मौके आये जब रघुवर भाजपा कार्यकर्ताओं से दूर होते दिखे और सरयू ने कार्यकर्ताओं के दुख-सुख में शामिल होकर भाजपा कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग के बीच अपना प्रभाव बना लिया. इस दौरान सरयू गुट के भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व से कई बार रघुवर के खिलाफ शिकायत भी की. पार्टी में सरयू की लोकप्रियता और रघुवर के खिलाफ बढ़ते आक्रोश को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व ने रघुवर को ओडिशा भेजकर डैमेज कंट्रोल करने का फैसला लिया है.

रघुवर को ओडिशा भेजने में बाबूलाल की भूमिका !

पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि 2019 में रघुवर दास की वजह से पार्टी को हुए नुकसान को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें झारखंड से दूर करने का फैसला लिया है. पार्टी को यह लगता है कि गैर आदिवासी सीएम बनाने और रघुवर सरकार के समय लिये गये फैसलों की वजह से भाजपा सत्ता से बाहर हुई है. इस वजह से भाजपा आगामी चुनावों में प्रदेश में उनकी कोई भूमिका नहीं चाहती है. भाजपा ने आदिवासी वोटरों को साधने के लिए बाबूलाल मरांडी को प्रदेश भाजपा की कमान दे दी है. पार्टी के अंदर यह भी चर्चा है कि रघुवर को ओडिशा भेजने के पीछे बाबूलाल मरांडी की बड़ी भूमिका है. रघुवर बड़े कद के नेता हैं. पार्टी उन्हें एकदम से दरकिनार नहीं कर सकती. अगर वे झारखंड में रहते तो लोकसभा या विधानसभा का टिकट उन्हें देना पड़ता है. इसलिए पूरा सियासी समीकरण देखते हुए बाबूलाल मरांडी की अनुशंसा पर उन्हें झारखंड से विदा किया गया है.

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