झारखंड में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को नौकरी देने से जुड़ा खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने संदेश के साथ वापस कर दिया है। राजभवन ने सरकार से इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। संभावना है कि विधानसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पुनर्विचार के लिए लाया जा सकता है।
05 Dec 2023
रांची: राज्य में स्थानीयता नीति के निर्धारण के लिए 1932 के खतियान की बाध्यता संबंधित विधेयक को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने संदेश के साथ वापस कर दिया है। सोमवार को राजभवन से यह आदेश विधानसभा सचिवालय पहुंचा। राजभवन ने इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह राज्य सरकार से किया है। अब गेंद सरकार के पाले में है।
विधानसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर पुनर्विचार
उल्लेख है कि पूर्व में बगैर किसी संदेश के विधेयक वापस किए जाने पर आपत्ति जताई गई थी। आग्रह किया गया था कि संदेश के साथ विधेयक लौटाया जाए ताकि उसमें अपेक्षित सुधार किया जा सके। राजभवन ने विधेयक के प्रविधानों को देखते हुए अटार्नी जनरल से सुझाव मांगा था। संभावना है कि विधानसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पुनर्विचार के लिए लाया जा सकता है। जानकारी के अनुसार राज्यपाल ने स्थानीयता के निर्धारण संबंधित विधेयक को लौटाते हुए कुछ बिंदुओं को प्रतिकूल बताया है। पूर्व में प्रेषित विधेयक संविधान की अनुच्छेद छह (ए) और अनुच्छेद 162 का उल्लंघन करता है। इसकी वजह से विधेयक अमान्य किया जा सकता है। इसमें कुछ बिंदुओं पर विधानसभा से पुनर्विचार करने के लिए कहा गया है।
लौटाए गए विधेयक में इस बात का है जिक्र
लौटाए गए विधेयक में उल्लेख है कि राज्य सरकार की तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां केवल स्थानीय व्यक्तियों के लिए आरक्षित करने के स्थान पर सिर्फ चतुर्थ श्रेणी में ऐसा करने पर विचार किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने 11 नवंबर 2022 को विधानसभा का विशेष सत्र आहूत कर इससे संबंधित विधेयक पारित किया था। इस पर सभी दलों की सहमति थी। बाद में इसे स्वीकृति के लिए राजभवन भेजा गया। तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने इस विधेयक को कानूनी सलाह का सुझाव देते हुए वापस कर दिया था। इसके बाद राज्य सरकार ने बीते 27 जुलाई को राजभवन को पत्र लिखकर आग्रह किया कि राजभवन से लौटाए जाने वाले विधेयकों के साथ भेजा जाने वाला राज्यपाल का संदेश दिया जाए। स्थानीय व्यक्तियों की झारखंड परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों को परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभ प्रदान करने के लिए विधेयक 2022 भीड़ हिंसा और माब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021 और पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 27 प्रतिशत करने संबंधी विधेयक को फिर से विधानसभा के पटल पर रखने की योजना है।
अब आगे क्या
राज्यपाल के सुझाव पर राज्य सरकार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इसपर चर्चा करा सकती है। इसमें सुधार से संबंधित विषय लिए जाएंगे। इसके बाद राज्य सरकार इस विधेयक को पुनः पारित कराकर स्वीकृति के लिए राजभवन भेज सकती है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा आरंभ से स्थानीयता नीति के निर्धारण के लिए 1932 के खतियान की बाध्यता का पक्षधर है।
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