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राम मंदिर राष्ट्रीय एकता का प्रतिक

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06/August/2020 Thursday

संपादकीय : प्रेमेन्द्र

आडवाणी-जोशी के सारथी रहे मोदी तारीख  ५ को कृष्ण की भूमिका में : इसकी विस्तृत चर्चा  २ अगस्त २०२० लोकशक्ति के संपादकीय में हम कर चुके हैं।

भाजपा के मुख्य एजेंडे के दो महत्वपूर्ण वादे रहे हैं : १. धारा ३७० को रद्द करना और दूसरा अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर का निर्माण।

मोदी सरकार ने भाजपा के उक्त दोनों वादों को ऐतिहासिक तारीख ५ को पूरा कर दिया है। अगस्त ५ २०१९- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले की घोषणा की थी।

आज ५ अगस्त २०२० को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने हनुमान जी का दर्शन कर उनसे आदेश लेकर रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ करने हेतु भूमिपूजन किया।

भूमिपूजन के उपरांत शुरू हुआ श्रीराम मंदिर निर्माण कार्य।

पंजाब केसरी में एक समाचार का शीर्षक है :  भूमिपूजन कर pm ने न सिर्फ मंदिर की बल्कि हिन्दू राष्ट्र की भी आधारशिला रखी है: ओवैसी।

अयोध्या में राममंदिर भूमिपूजन को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जो उक्त टिप्पणी की है उसकी समीक्षा इस संपादकीय में हम कर रहे हैं।

ओवैसी और उस प्रकार के विचार रखने वाले  अन्य नेताओं को १९९५ में सुप्रीम कोर्ट के दिये गये फैसले का अध्ययन करना चाहिये।

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने दिसंबर 1995 में फैसला दिया था कि चुनाव में हिंदुत्व का इस्तेमाल गलत नहीं है क्योंकि हिंदुत्व धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है. जस्टिस जेएस वर्मा की अगुआई वाली बेंच ने यह फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था, ‘हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों के जीवन पद्धति की ओर इशारा करता है. इसे सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता, जो अपनी आस्था की वजह से हिंदू धर्म को मानते हैं.Ó सुप्रीम कोर्ट का यह आर्डर इस लींक द्वारा पढ़ा जा सकता है  –http://13.234.238.174/23499/

इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि संविधान की मूलप्रति में भगवान राम सीता का चित्र रहा है।

 >> २१ जुलाई २०२० के लोकशक्ति के संपादकीय में हमने सेक्युलरिज्म शब्द की चर्चा करते हुए यह स्पष्ट कर चुके हैं कि संविधान की मूल प्रति में अगर आप देखें तो हमारे पास तीन शब्द नहीं हैं। वे समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता हैं। इन शब्दों को 42 वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा हमारे संविधान की आत्मा को हथौड़ा देने के लिए परिभाषित किए बिना डाला गया है । पं. नेहरू द्वारा कला 370 के समावेश के बारे में भी यही कहा जा सकता है।

आश्चर्य इस बात का है कि धर्म निरपेक्ष अर्थात सेक्युलरिज्म शब्द को संविधान में संशोधन कर जोड़ तो दिया गया कांग्रेस शासनकाल में परंतु उसकी परिभाषा जानबुझकर नहीं दी गई। यही कारण है कि कांग्रेस हिन्दुओं के विरूद्ध वोटबैंक पॉलिटिक्स का नाटक खेलकर सेक्युलरिज्म के नाम पर अपनी वोटबैंक पॉलिटिक्स की रोटी सेंकती रही है। इसी प्रकार से दलित शब्द न ही संविधान में है और न ही उसकी व्याख्या है। बावजूद इसका दुरपयोग तुष्टिकरण की राजनीति करने के लिये कांग्रेस करती रही है और कर रही है।

हमारे देश में कई शब्द ऐसे हैं, जिनका अंग्रेजीकरण नहीं हो सकता. वहीं कुछ अंग्रेजी के शब्द ऐसे हैं, जिन्हें हम हिन्दी में ठीक तरह से अनुवादित नहीं कर सकते. अंग्रेजी का सेक्युलर शब्द है, जिसका अनुवाद धर्मनिरपेक्ष के तौर पर किया जाता है. लेकिन धर्म या पंथनिरपेक्षता, यह सेक्युलर शब्द का हिन्दी पर्याय नहीं हो सकता. सेक्युलर शब्द की अवधारणा विदेशी है, इसलिए इस शब्द का सोच-समझ कर प्रयोग करना चाहिए. ठीक उसी तरह से धर्म के लिए अंग्रेजी भाषा में रिलिजन शब्द का प्रयोग किया जाता है. लेकिन रिलिजन और धर्म, दोनों अलग-अलग शब्द हैं. देश की संसद के अहम हिस्से के रूप में स्थापित लोकसभा में ‘धर्म चक्र प्रवर्तनायÓ का प्रयोग किया गया है. इस का चयन संविधान निर्माताओं ने किया है. धर्म चक्र का उपासना पद्धति से कोई संबंध नहीं है.

संविधान निर्माताओं की नजर में धर्म की अवधारणा व्यापक थी. इसलिए धर्म को रिलीजन कहना ठीक नहीं होगा. मीडिया में अक्सर उपयोग होने वाला राष्ट्रवाद शब्द भी पश्चिमी देशों से आया है. यूरोप और पश्चिम के देशों का राष्ट्रवाद और भारत का राष्ट्रीयत्व दोनों पूर्णत: भिन्न हैं. लेकिन फिर भी हम राष्ट्रवाद शब्द का प्रयोग करते हैं. ऐसे गलत शब्द के प्रयोग से हमें बचना चाहिए.

अपना भारत देश पंथ निरपेक्ष है धर्म निरपेक्ष नहीं : अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा, इस देश को सेक्युलरिज्म के एंगल से नहीं देखना चाहिए. संयोग से हमारा देश पंथ निरपेक्ष है, धर्म निरपेक्ष नहीं है. संविधान में जो संशोधन हुआ है वह पंथ निरपेक्षता का है.प्रधानमंत्री किसी एक पार्टी का नहीं होता, पूरे देश का प्रधानमंत्री होता है.

राममंदिर भूमिपूजन के उपरांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत  जी ने अपने संबोधन में महत्वपूर्ण बात कही है कि   राम मंदिर के शिलान्यास के बाद भागवत ने कहा कि हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखने वाले लोग हैं और यह एक नए भारत की शुरुआत है। पुरुषार्थ का भाव हमारे रग-रग में है और भगवान राम का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि सब राम के हैं और सबमें राम हैं। यह सभी भारतवासियों के लिए है। इसमें कोई अपवाद नहीं है।

पहले मन मंदिर पूरा होना चाहिए

भागवत ने कहा कि हमारे हृदय में भी राम का बसेरा होना चाहिए इसलिए सभी द्वेष, विकार, भेदों को तिलांजलि देकर संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाला मनुष्य बनना चाहिए।

उक्त अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भाषण के कुछ अंश भी इसी संदर्भ में इस संपादकीय के नीचे अलग से दिये गये हैं।

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने बहुत ही महत्वपूर्ण टिप्पणी की है :राम मंदिर सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रीय एकता और वसुधैव कुटुंबकम के प्रतीक के रूप में स्थापित होगा. माननीय न्यायालय के फैसले, आम सहमति और जन भावना के अनुरूप यह कार्य आज परिणति रूप ले रहा है।