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रायपुर में 13 सामाजिक कार्यकर्ताओं को 1 लाख का मुआवजा

साल 2016 के एक मामले में सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने छत्तीसगढ़ सरकार को 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विधिवेत्ताओं और शिक्षाविदों को एक- एक लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अक्टूबर 2016 के इस मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस ने सुकमा, बस्तर में आर्म्स एक्ट के तहत आईपीसी की विभिन्न धाराओं में छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ और आईपीए- यूएपीए के तहत सात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाद में, 15 नवंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार को आदेश दिया था कि वह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार न करे और एसआईटी गठित करके मामले की जांच कराए, लेकिन 2018 में नई सरकार बनने तक इस मामले की कोई जांच नहीं हुई। फरवरी 2019 में एफआईआर भी वापस ले ली गई। एनएचआरसी ने अपने फैसले में कहा- हम मानते हैं कि उनके खिलाफ दर्ज की गई ‘झूठी एफआईआर’ के कारण उन्हें मानसिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ा है और यह मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। छत्तीसगढ़ सरकार को उन्हें मुआवजा देना चाहिए। इसलिए, हम मुख्य सचिव के माध्यम से छत्तीसगढ़ सरकार को सलाह देते हैं और निर्देश देते हैं कि प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय परते, मंजू और मंगला राम कर्म को उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये दिए जाएं। इसी निर्देश में, आयोग ने तेलंगाना के अधिवक्ताओं के एक तथ्य खोजने वाले दल के सात सदस्यों के लिए मुआवजे का भी आदेश दिया है। दिल्ली के पटपड़गंज के निवासी डॉ वी सुरेश ने इस मामले के संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संपर्क किया था। आयोग ने इस साल 2 फरवरी को कार्यकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया और जुलाई में मुआवजे का आदेश दिया। कार्यकर्ताओं ने इस मुआवजे पर आश्चर्य व्यक्त किया है, लेकिन अब वे इस मामले में विवादास्पद भूमिका में आए पूर्व बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ “झूठे मामले” कायम करने को लेकर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। प्रो नंदनी सुंदर ने कहा कि अब हम यह उम्मीद करते हैं कि झूठी चार्जशीट दाखिल करने के लिए जिम्मेदार बस्तर के तत्कालीन आईजी एसआपी कल्लूरी के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाया जाए। कल्लूरी और उनके द्वारा बनाए गए एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) के नेतृत्व में सलवा जुडूम अभियान 2011 में ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली गांवों में आगजनी की गई थी। इसके साथ ही वहां स्वामी अग्निवेश की हत्या का षणयंत्र भी रचा गया था, जो नाकाम हो गया। सीबीआई की जांच में उन्हें इसके लिए दोषी भी पाया गया, लेकिन उसके बाद हमारे खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए। अदालत द्वारा हमें 2019 में आरोपों से बरी करने के बाद भी दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।