छत्तीसगढ़ सोसायटी अधिनियम 1973 में यह प्रावधान है कि यदि कोई संस्था तीन साल तक पंजीयक फर्म एवं सोसायटी को जानकारी नहीं भेजती तो नोटिस के बाद उसका पंजीयन रद्द किया जा सकता है। वार्षिक शुल्क पहले 400 रुपए था जिसे बढ़ाकर दो हजार रुपए किया गया है। इधर, नोटिस के बाद डिफाल्टर होने के डर से एनजीओ में हड़कंप है। शिक्षा, खेल, नवयुवक मंडल, महिला मंडल, वेलफेयर सोसायटियां, स्व-सहायता समूह, जीवन दीप समितियां, रोगी कल्याण समितियां, धार्मिक समितियां, जनकल्याण समितियां, और सरकार द्वारा अधिसूचित कुछ समितियों को भी नोटिस दी गई है। इधर, अब नए समितियों के रूप में गोठान समितियों का भी पंजीयन किया जा रहा है। जो सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में शामिल हो रही हैं।
प्रदेश में करीब तीन हजार एनजीओ ब्लैक लिस्टेड होंगे। इन्हें सरकार ने नोटिस भेज दी है। बरसों से उनकी मनमानी पर रोक लगाने सरकार ने कड़ा कदम उठाने का फैसला किया है। इससे पहले मोदी 2.0 ने भी इन एनजीओ पर कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इन संस्थाओं ने तीन साल से अधिक समय से अपनी वार्षिक रिपोर्ट व आय-व्यय का लेखा-जोखा जमा नहीं किया है। इसके बावजूद वे अनुदान के रूप में लाखों रुपए शासन से लेते हैं।
इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला बाल विकास विभाग व कृषि के लिए काम करने वाले एनजीओ ज्यादा हैं। भास्कर की पड़ताल में यह सामने आया है कि कई केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं के काम लेकर मालामाल हो रहे हैं। ये एनजीओ व समितियां सरकार से तो लाखों रुपए का अनुदान ले रही हैं, लेकिन हर साल अपनी फीस दो हजार रुपए जमा नहीं करातीं। न ही अपनी संस्थाओं के कामकाज की जानकारी देती हैं।
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