संविधान की भावना और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप देशभर में सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार होने चाहिए। यह याचिका भाजपा नेता तथा एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल की गई है। इसमें केंद्र को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वह धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान आधारित पूर्वाग्रहों के बिना तलाक संबंधी कानूनों की विसंगतियां दूर करने तथा सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाने की दिशा में कदम उठाए।
याचिका में कहा गया है कि कोर्ट तलाक के पक्षपातपूर्ण आधार को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 तथा 21 का उल्लंघन करार देकर सभी नागरिकों के लिए “तलाक के लिए समान आधार” की गाइडलाइंस बना सकता है।इसमें कहा गया है कि इसके अलावा, कोर्ट विधि आयोग को तलाक संबंधी कानूनों का अध्ययन करने तथा तीन महीने के भीतर अनुच्छेद 14, 15, 21 व 44 के अनुरूप और अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं अंतरराष्ट्रीय समझौतों को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों के लिए “तलाक के समान आधार” को लेकर सुझाव देने का निर्देश दे सकता है। याचिका में बताया गया है कि हिंदू, बौद्ध, सिख तथा जैन हिंदू विवाह कानून, 1955 के तहत तलाक लेते हैं, जबकि मुस्लिम, ईसाई तथा पारसी के अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं। वहीं, अलग-अलग धर्मों के पति-पत्नी विशेष विवाह अधिनियम, 1956 के तहत तलाक लेते हैं। यदि कोई जीवनसाथी विदेशी नागरिक हो तो उसे फॉरेन मैरिज एक्ट, 1969 के तहत तलाक लेना होता है। इस तरह तलाक के आधार धर्म और लिंग के आधार पर निष्पक्ष नहीं हैं।
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