रायपुर में 11 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाने वाला एक मात्र उत्सव इस बार फीका है। शहर में बनने वाले करीब 150 पूजा पंडाल इस बार नजर नहीं आएंगे। कोरोना का असर गणेशोत्सव के बाजार के साथ इससे जुड़े आयोजनों पर पड़ा है। शनिवार को गणेश चतुर्थी के दिन सुबह से ही बाजार की आधी प्रतिमाएं बिक जाया करती थीं। मगर दोपहर तक दुकानदार ग्राहकों के इंतजार में रहे। घरों में भी हर साल आयोजन करने वाले लोग भी इस बार प्रतिमाएं कम ही स्थापित कर रहे हैं। पहला मौका है जब शहर में एक भी बड़ा गणपति पंडाल नहीं मनाया गया है। लगभग शहर के हर घर में मनाया जाने वाले इस उत्सव में कोरोना संकट की वजह से लोगों में उत्साह कम है। सदर बाजार में प्रतिमाओं की दुकान लगाने वाले अनिल प्रजापति ने बताया कि पिछले दो दिनों में जो उम्मीद थी उससे बेहद कम प्रतिमाएं बिकीं। कीमतों पर भी असर पड़ा है बीते साल 1 हजार रुपए में बिकने वाली प्रतिमाओं को अब 600 रुपए तक बेच रहें हैं। पूरे बाजार में गणेश चतुर्थी के दिन दोपहर तक 80 प्रतिशत प्रतिमाएं बिक जाती थीं, इस बार इसी तादाद में मूर्तियां बची हुई हैं। देश में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की। मराठा राजाओं की सत्ता की वजह से इसका व्यापक असर रायपुर पर भी पड़ा। नहर पारा समिति के रोहित रॉय ने बताया कि गोलबाजार, गुढ़ियारी, मालवीय रोड, सदरबाजार, बूढ़ापारा, पुरानी बस्ती इलाकों में आजादी के पहले से ही सार्वजनिक गणेश पंडाल बनाए जाते रहे हैं। इस बार इनमें से किसी भी जगह पर सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हो रहे। प्रशासन ने कोरोना की वजह से सख्त नियम बना रखे हैं। गलियों मेंं बेहद छोटे पंडाल बनाकर कुछ जगहों पर पूजा की जाएगी
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