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वनों से आच्छादित बस्तर अंचल में भी कई स्थानों का जल पीने के लायक नहीं बचा है।

जल प्रदूषण बड़ी चुनौती बन गया है। खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से भूजल प्रदूषित हो गया है और स्थानीय निवासी कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। यहां भूजल को दूषित करने में खनिज विघटन की 25 प्रतिशत भूमिका है तो कृषि में जहरीले पदार्थों के उपयोग का 30 से 36 प्रतिशत योगदान है। प्राकृतिक तौर पर वर्षा जल के साथ गंदगी के मिश्रण से भी 40 से 45 प्रतिशत जल तक प्रदूषण होता है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय (रविवि) की रसायन एवं पर्यावरण अध्ययनशाला की ओर से भूजल के सतत विकास को लेकर किए गए अध्ययन में चौंकाने वाले यह तथ्य सामने आए हैं।

अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल एल्सेवियर में प्रकाशित अध्ययन में विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि लाभ की होड़ में आदिवासी किसानों तक प्रतिबंति घटिया कीटनाशक पहुंचाने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उत्पादन बढ़ाने के नाम पर जहर का प्रयोग नहीं होना चाहिए। सरकार और प्रशासन का ही यह दायित्व बनता है कि उस क्षेत्र में इस तरह की सामग्री नहीं पहुंचे।