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मध्य प्रदेश के ये शिक्षक बच्चों की पढ़ाई के लिए दुर्गम पहाड़ी पर बसे

अतिथि शिक्षक गोरेलाल बारस्कर अपना घर-गांव छोड़ बीते 13 वर्षों से दुर्गम पहाड़ी पर मौजूद गांव में डटे हैं, ताकि यहां के बच्चों को शिक्षा दे सकें। 4000 फुट की खड़ी चढ़ाई वाली इस पहाड़ी पर रोज-रोज चढ़ना-उतरना कठिन काम है। इसीलिए जब गांव में स्कूल खोलने की बात आई, तो कोई शिक्षक यहां पढ़ाने के लिए तैयार न हुआ। तब गोरेलाल आगे आए। तब यहां एक स्थानीय संस्था के प्रयास से स्कूल शुरू हुआ था। लेकिन स्कूल के लिए न तो भवन था और न ही शिक्षक को देने के लिए वेतन।

बड़ी सी झोपड़ी में स्कूल शुरू हुआ और गोरेलाल ने पूरे पांच साल तक इसी झोपड़ी में गुजर कर बिना वेतन लिए गांव के बच्चों को पढ़ाया। अब स्कूल को सरकार से मान्यता मिल गई है और गोरेलाल को अतिथि शिक्षक के रूप में। लेकिन स्कूल अब भी झोपड़ी में ही लग रहा है और गोरेलाल अब भी इसी गांव में ही रहते हैं।

उनका कहना है कि शिक्षा का ध्येय बहुत व्यापक है। यह मनुष्य को अच्छा नागरिक तो बनाती ही है, साथ ही राष्ट्र की उन्नति में भी महती भूमिका निभाती है। इसीलिए वह अपने हिस्से का योगदान इस रूप में देश और समाज को दे रहे हैं। बैतूल, मप्र के घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के सालीवाड़ा गांव के रहने वाले गोरेलाल बीते 13 वर्षों में बहुत कम अवसरों पर अपने घर गए। वर्तमान में स्कूल बंद है तो बच्चों को घर-घर जाकर पढ़ा रहे हैं।