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Editorial: GC क्लॉज़ ग्रहण के शिकार लौहपुरूष, प्रणब दा और अब गुलामनबी…

02 September 2020

  महात्मा गांधी ने अपने वीटो पॉवर का उपयोग कर नेहरू को पीएम के लिये चुना, सरदार पटेल-मौलाना आजाद को नहीं?

२७ अगस्त २०२० के लोकशक्ति में इसकी विस्तार से चर्चा की गई है। उक्त अंक में ही हमने यह स्पष्ट किया है कि

इस संदर्भ में सरदार पटेल ने महात्मा गांधी के वीटो के सामने जो आत्मसमर्पण किया था उस पर भी सवाल उठाये जा सकते हंै ।

वह किसके प्रति अधिक वफ ादार थे? एक व्यक्ति को, एक संगठन को या अपनी मातृभूमि को? जब उन्हें यह विश्वास हो गया कि नेहरू इतने आवश्यक मार्गदर्शन देने के लिए उपयुक्त नहीं थे कि एक नवसृजित देश इतना वांछित था, तो उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू के पक्ष में एक बार भी आपत्ति क्यों नहीं की?

महात्मा गांधी के वीटो के बाद और भारत के स्वतंत्र होने के बाद त्रष्ट क्लॉज़ ग्रहण के शिकार लौहपुरूष, प्रणब दा और अब गुलामनबी…

 अमेरिका का त्रष्ट ग्रैंड फादर क्लॉज़ कहता था कि आप अमेरिका में तभी मतदान कर सकते हैं जब आपके दादा ग्रैंड फ ादर ने मतदान किया हो। चूंकि अमेरिका में अधिकांश अश्वेतों के दादा ग्रैंड फादर गुलाम रहे कभी मतदान किये नहीं थे, इसलिए प्रभावी रूप से इसका मतलब था कि अश्वेत वोट नहीं दे सकते।

भारत में, त्रष्ट गांधी क्लॉज़ का मतलब  

यदि आप सत्तारूढ़ गांधी के कबीले से जुड़े हैं तो आप स्वत: ही कांग्रेस पार्टी और भारत पर शासन करने के योग्य हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी व्यक्तिगत उपलब्धियाँ क्या हैं, आपकी विशेषताएँ क्या हैं, आपके विचार क्या हैं, आपकी दृष्टि क्या है । यह सब मायने रखता है कि आप किसी तरह नेहरू-गांधी के कबीले से जुड़े हैं और स्वचालित रूप से आप कांग्रेस पार्टी और भारतीयों के एक शासक हैं।

नेहरू, इंदिरा , राजीव , सोनिया फिर राहुल और फिर घूम फि रकर सोनिया और फिर अब राहुल की चर्चा :

जैसा कि लोकतंत्र का मतलब है, लोगों द्वारा और लोगों के लिए उसी तरह से  कांग्रेस के लिए गांधी परिवार का मतलब है, गांधी परिवार और गांधी परिवार के लिए।

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भारत रत्न प्रणब मुखर्जी अब हमारे बीच में नही हैं। उनकी यादें ही हमारे पास में हैं। आज का यह संपादकीय श्रद्धांजली के रूप में प्रणब दा को समर्पित है।

प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण द टर्बुलेंट इयर्स में1980 के दशक और 1990 की शुरुआत में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के एक अंदरूनी सूत्र के खाते को साझा किया। उन्होंने  अपने उक्त संस्मरण में मेरी दृष्टि से एक जो महत्वपूर्ण बात लिखी है वह यह है :

इस सवाल पर लौटने के लिए कि राजीव गांधी ने मुझे (प्रणव) मंत्रिमंडल से क्यों हटाया और मुझे पार्टी से निष्कासित कर दिया, मैं केवल इतना कह सकता हूं कि उन्होंने गलतियाँ कीं और मैंने ऐसा किया। उन्होंने दूसरों को प्रभावित करने दिया और मेरे खिलाफ उनके पूर्वजों की बात सुनी। मैंने अपनी निराशा को अपने धैर्य से आगे बढऩे दिया।

हालांकि, यह सच है कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है। राजीव की कुछ करीबी दोस्तों और सलाहकारों पर अत्यधिक निर्भरता के लिए आलोचना की गई है, जिन्होंने एक तथाकथित “बबलॉग” सरकार स्थापित की थी। उनमें से कुछ भाग्य चाहने वाले निकले।

कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार से मैंने ऊपर इसी संपादकीय में लौह पुरूष वल्लभ भाई पटेल के बारे में कहा है कि महात्मा गांधी के प्रति उनका पूर्णत: समर्पण जिस प्रकार से देश के लिये घातक हुआ उसी प्रकार से प्रणव दा का भी इंदिरा गांधी के मृत्यु के उपरांत राजीव गांधी के प्रति अर्थात गांधी परिवार के प्रति पूूर्णत: समर्पण देश के लिये घातक सिद्ध हुआ।

प्रणव मुखर्जी ने स्वयं ही अपने संस्मरण में लिखा है कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता बावजूद इसके व्यक्ति विशेष या परिवार विशेष या डायनेस्टी विशेष के प्रति पूर्णत: समर्पण का भाव हर हमेशा के लिये उचित ही होगा यह नहीं कहा जा सकता।

१९८४ में इंदिरा गांधी की मृत्यु के उपरांत उनके पास प्रधानमंत्री बनने के अवसर अधिक थे। इसका निष्कर्ष हम उनके संस्मरण पुस्तक द टर्बुलेंट इयर्स  के अध्ययन के उपरांत निकाल सकते हैं।

१९९१ में प्रणब दा के पास पीएम बनने का अवसर आया। 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई उस समय गांधी परिवार ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी पीवी नरसिम्हाराव को दी और प्रणब मुखर्जी को किनारे कर दिया। इसके बाद तीसरी बार जब 2004 में मौका आया तो सोनिया गांधी ने डॉक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना।

१९९१ और २००४ दोनों ही अवसरों पर प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनने से इसलिये वंचित रह गये थे क्योंकि नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह दोनों ही गांधी डायनेस्टी के प्रमुखों की दृष्टि में प्रधानमंत्री बनने के लिये इसलिये उपयुक्त थे क्योंकि वे दोनों ही प्रणब मुखर्जी की तुलना में बहुत अधिक कमजोर थे।  यही कारण है कि प्रणब मुखर्जी कभी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने हालांकि वे भारत के राष्ट्रपति बने और 2019 में नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्नÓ से विभूषित किया।

पंडित नेहरू की जिद्द के कारण वल्लभभाई पटेल को गृहमंत्री रहते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाना पड़ा परंतु बाद में वे संघ के प्रति आकर्षित हुए और यही कारण था कि उन्होंने संघ पर से प्रतिबंध भी हटा दिया था।

इसी प्रकार से प्रणब मुखर्जी भी कांग्रेस में रहते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रति भले ही आकर्षित न रहे हों परंतु राष्ट्रपति बने रहते समय उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विशेषताओं और देश में उसकी आवश्यक्ता को अनुभव किया।

वर्ष 2018 में जब प्रणब मुखर्जी को क्रस्स् के वार्षिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर नागपुर आने का न्योता दिया गया तो बड़ी चर्चा हुई। सियासी तूफान उठा, लेकिन प्रणब मुखर्जी नागपुर गए। उन्होंने राष्ट्र हित के मुद्दे पर अपनी बात कही और संघ प्रमुख की बात सुनी। अर्थव्यवस्था को कैसे मजबूत किया जाए, गरीबों के उत्थान के लिए सरकार क्या-क्या कर सकती है, इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाई।