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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश थे कि सिर्फ 3 लाख 58 हजार दावों का रिव्यू करना है,

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वनाधिकार पट्‌टों के जिस मुद्दे पर तीन सरकारों के कार्यकाल से कवायद चल रही है, उसमें अब नई बात सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश थे कि सिर्फ 3 लाख 58 हजार दावों का रिव्यू करना है, जबकि 27 अगस्त तक फॉरेस्ट की जमीन पर अधिकार जताने वाले 42 हजार नए दावेदारों ने आवेदन कर दिए हैं। हर दावे में औसतन डेढ़ से दो हैक्टेयर जमीन पर हक दिखाया गया है। यानी 60 से 80 हजार हैक्टेयर जमीन के लिए नए दावे सामने हैं। ये आवेदन आदिम जाति विभाग के वनमित्र पोर्टल पर आए हैं। दावा करने वालों ने दलील रखी है कि उनका आवेदन निरस्त हुआ है, इसलिए वे आवेदन कर रहे हैं। इस बीच नए आवेदन को रोकने की बजाए आदिम जाति विभाग के संचालक शैलबाला मार्टिन ने 25 अगस्त को नया निर्देश जारी कर दिया कि गूगल इमेज (सैटेलाइट चित्र) के कारण किसी भी वन अधिकार पट्‌टे के दावे को निरस्त न किया जाए। इसे सिर्फ सपोर्टिंग डाॅक्यूमेंट माना जाए। स्थानीय लोग या ग्राम सभा यदि कहे कि कब्जा 2013 के पहले का है तो उसे मान्य किया जाए।

आदिम जाति विभाग के इस निर्देश पर वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (कार्य आयोजना एवं लैंड रिकॉर्ड) बीबी सिंह ने कड़ी आपत्ति की। बीबी सिंह ने कहा कि केंद्रीय जनजातिय कार्य मंत्रालय के हवाले से की गई व्याख्या सही नहीं है। वन अधिकार अधिनियम 12(ए) 2 में लिखा है कि उपखंड व जिला स्तरीय समिति वनाधिकार पट्‌टों के दावों के निर्धारण में गूगल इमेज का उपयोग करें। दरअसल 2005 से 2012 तक के गूगल इमेज से साफ पता चल जाता है कि 2013 में पेश दावों की असलियत क्या है। बीबी सिंह ने गुजरात हाईकोर्ट में एक्शन रिसर्च इन कम्यूनिटी हैल्थ एंड डेवलपमेंट वर्सेस गुजरात राज्य का भी हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि गूगल इमेज को दावों के निराकरण में उपयोग करें। बताया जा रहा है कि अब यह मामला शासन स्तर पर पहुंच गया है। इसमें वन महकमे ने यह कहा है कि आदिम जाति विभाग को कहा जाए कि वह वनमित्र पोर्टल बंद करे।