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पानी के कारण सोयाबीन से हुए दूर, पानी से ही धान की 10 गुना पैदावार

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कभी सोयाबीन खरीफ की मुख्य फसल हुआ करती थी लेकिन किसानों का इस फसल से धीरे-धीरे इस तरह मोह भंग हुआ कि इसका रकबा घटकर 70 हजार हेक्टेयर में रह गया। इसकी जगह ले ली धान ने। नर्मदा के किनारे वाले गांवों में धान खरीफ की मुख्य फसल हो गई है। इसकी वजह है पर्याप्त पानी के साथ भूमि एवं वातावरण अनुरूप होना। वर्ष 2020-21 में 1 लाख 65 हजार हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है। किसान कुल धान के रकबे में से 70 फीसदी में बासमती की पैदावार कर रहे हैं। बासमती धान का स्वाद और इसकी सुगंध अब देशभर में पहुंच रही है। बासमती धान के उत्पादन में जिला प्रदेश में प्रथम है। जिले में धान की उन्नत किस्में जैसे पूसा 1637, पूसा 1718, पूसा 1728, सिल्की, पूसा 1121, जेआर 206, पूसा सुगंधा 4 इत्यादि किस्मों को उगाया जा रहा है जो कि रोग प्रतिरोधी किस्में हैं। प्रति एकड़ लगभग 25 से 30 क्विंटल पैदावार होती है। सामान्य धान की तुलना में बासमती से किसानों को प्रति हेक्टेयर अधिक आमदनी प्राप्त होती है। इधर, अपग्रेड तरीके से रोपाई और पानी की उपलब्धता के कारण प्रॉडक्टिविटी रेट भी जबर्दस्त बढ़ा है। वर्ष 2011 में साढ़े 31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था जो 2015 में 44 क्विंटल पहुंच गया। पिछले साल 2019 में धान की भी उत्पादकता 50 क्विंटल पर पहुंच गई। जिले में हर साल रकबा बढ़ रहा है। 25 हजार हेक्टेयर में बोवनी 2010 में की गई थी जो अब 1.61 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है। उत्पादन 8.06 लाख मीट्रिक टन हुआ। सोयाबीन के प्रति रुझान घट रहा है। हाल ही में तेज बारिश में सोयाबीन को भारी नुकसान पहुंचा।

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