इनदिनों. राजनीतिक जानकारों के सामने बड़ा सवाल है कि जम्मू-कश्मीर में पहले काहे भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार बनाई? और फिर बनाई तो अब अलग क्यों हो गए?
कई जवाब हैं, लेकिन इस जवाब में दम नजर आता है कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा का पहला मकसद पूरा हो गया है- जम्मू-कश्मीर के सियासी हालात एवं भूगोल को देखना और समझना? और यदि अब भी साथ रहते तो आतंकवाद के खिलाफ देश को सख्त कार्रवाई नहीं दिखा पाते जिसका भरोसा 2014 में जनता को दिया था और केन्द्र में भाजपा ने सत्ता पाई थी! अब आगे क्या?
खबर है कि… जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पुराने सहयोगी दल भाजपा को चेतावनी दी है कि अगर उसने पीडीपी को तोड़कर जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार बनाने की कोशिश की तो कश्मीर में सुरक्षा से जुड़े हालात उन दिनों जैसे हो जाएंगे जब यासीन मलिक और सलाहुद्दीन दुनिया के सामने आए थे!
इस चेतावनी के क्या अर्थ-भावार्थ हैं?
महबूबा की चेतावनी का इशारा भाजपा को है कि जम्मू-कश्मीर में जोड़-तोड़ से सरकार बनाई तो प्रदेश के पहले से बिगड़े हालात और बिगड़े रूप में सामने आएंगे!
यही नहीं, महबूबा अपनी पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को भी चेता रही हैं कि वे भी गलत दिशा में जा कर संकट को न्यौता दे रहे हैं?
दरअसल, पत्रकार और शांति समर्थक शुजात बुखारी की मौत, जम्मू-कश्मीर की हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट का आना जैसी खबरें बाहरी ताकतों के फिर से सक्रिय होने की ओर इशारा कर रही हैं, जाहिर है… इस वक्त जम्मू-कश्मीर को लेकर सभी दलों को मिलकर गंभीरता से सोचने की जरूरत है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर दलहित का नहीं, देशहित का प्रश्र है?
राज्यपाल एनएन वोहरा ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग नहीं किया है जबकि नब्बे के दशक में तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने तत्कालीन सीएम डॉक्टर फारुक अब्दुल्ला के त्यागपत्र के बाद विधानसभा को भंग कर दिया था, परिणाम? अगली सरकार बनने में छह साल का समय तो लगा ही, भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए!
जम्मू-कश्मीर को लेकर जो प्रेस रिपोर्ट्स आ रही हैं उनकी माने तो पीडीपी में असंतुष्ट एमएलए की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो तकरीबन 28 हो गई है? यह संख्या दलबदल विरोधी कानून से बचने के लिए पर्याप्त है! भाजपा को सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के दो सदस्यों का भी समर्थन प्राप्त है?
अर्थात… भाजपा के पास नई सरकार बनाने के लिए पर्याप्त आधार है, परन्तु मुख्यमंत्री कौन का सवाल सुलझने पर ही आगे की बात बन सकती है?
दरअसल, इन वर्षों में जो हालात बने हैं उनके मद्देनजर पीडीपी के कई नेताओं को भरोसा नहीं है कि वे अगली बार जीत पाएंगे, लिहाजा वर्तमान सियासी समीकरण में ही लाभ की संभावनाएं तलाश रहे हैं!
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में यदि नई सरकार बनी तो इसकी जोड़-तोड़ अमरनाथ यात्रा के बाद अगस्त के अंत में या सितंबर के पहले सप्ताह में शक्ल लेगी?
लेकिन… यदि जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए तो सियासी तस्वीर बदल जाएगी, भाजपा बड़ी पार्टी तो रहेगी लेकिन सरकार किसी और की बन सकती है, अलबत्ता नई सरकार की कामयाबी केन्द्र सरकार के साथ उसके संबंधों प ज्यादा निर्भर रहेगी!
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