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किसानों को सोसायटियों से गेहूं में डाले जाने वाले एनपीके खाद के लिए परेशान होना पड़ रहा है।

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समस्याओं को दूर करने के किसान तमाम प्रयास कर लें, लेकिन समस्याएं किसानों का पीछा नहीं छोड़ती। सोयाबीन की फसल के दौरान वायरस ने खूब परेशान किया, तो इस बार गेहूं की बोवनी पर ही संकट के बादल नजर आ रहे हैं। दरअसल, किसानों को सोसायटियों से गेहूं में डाले जाने वाले एनपीके खाद के लिए परेशान होना पड़ रहा है। जिन किसानों ने बोवनी कर दी है, उन्हें परेशान होता देख कई किसानों ने फिलहाल बोवनी से हाथ पीछे खींच लिए हैं। विडंबना यह है कि सोसायटियों में फिलहाल डीएपी खाद भरपूर मात्रा में पड़ा हुआ है, लेकिन इसकी जरूरत नहीं पड़ रही है।

ग्राम फूलगांवड़ी के किसान विजय सावलेचा, महेश मुकाती, नरेंद्र पाटीदार आदि ने बताया कि गेहूं की फसल में एनपीके 12:32:16 का अपना विशेष महत्व होता है। इससे गेहूं के पौधे को अतिरिक्त खाद आदि देने की जरूरत सामान्य रूप से नहीं पड़ती है। वर्तमान में सोसायटियों और बाजार में यह खाद नहीं मिल रहा है। इस वजह से कई किसानों ने गेहूं की बोवनी का काम रोक दिया है। किसानों का कहना है कि बोवनी कर भी दे, लेकिन जब आवश्यकता पड़ने पर यह खाद नहीं मिलेगा, तो ऐसी दशा में क्या करेंगे।

किसान बताते हैं कि यदि अभी यूरिया खाद विकल्प के तौर पर गेहूं में डाल भी दी जाए, तो बाद में गेहूं के पौधे के बड़े होने पर उसमें पोटाश आदि अलग से डालना पड़ेगा। ऐसे में उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। गौरतलब है कि एनपीके खाद करीब 1120 रुपये की आती है, तो वहीं डीएपी यूरिया की बोरी 270 रुपये के आसपास मिलती है। वहीं पोटाश का एक बैग करीब 800 रुपये के आसपास पड़ता है, तो फाॅस्फोरस और नाइट्रोजन के लिए किसानों को अलग से मशक्कत करनी पड़ती है। जबकि एनपीके खाद में ये तीनों तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं।

किसान एनपीके खाद के सिलसिले में लगभग हर रोज सोसायटियों में पहुंच रहे हैं। गुरुवार को भी किसान सोसायटी पहुंचे थे, लेकिन उन्हें नकारात्मक जवाब ही मिला। यह कहा गया कि डीएपी पर्याप्त मात्रा में है। इसका उपयोग किया जा सकता है।