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गुर्जर आंदोलन की आड़ में सचिन पॉयलट और गहलोत के बीच सह मात का खेल

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03-OCT-2020

हरियाणा के गुरुग्राम के रीठौज गांव में गुर्जर समुदाय पंचायत होती रही है . इसमें हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के गुर्जर समाज के लोग शामिल रहे हैं और उन्हों ने सचिन पॉयलट को ही अपना नेता मन है। अब देखना है की ऊँट किस करवट बैठता है. गहलोत आंदोलन के पीछे प्रयत्न कर रहे हैं कोई नया गुर्जरों का नेता बने। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शह-मात का खेल जारी था।

अब यह भी देखना दिलचस्प रहेगा , गहलोत किस प्रकार से गुर्जर आंदोलन समाप्त कर गुर्जरों को आने पक्ष में कर पाते हैं तथा सचिन पॉयलट अपने आपको किस प्रकार गुर्जरो का एकमात्र राजनितिक नेता स्थापित कर पाते हैं. यदि सच्ची पॉयलट सफल होते हैं तो निश्चित ही गहलोत की कोंग्रेसी सरकार का जाना निश्चित है। विकल्प क्या होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शह-मात का खेल जुलाई 2020 में जारी था। राजस्थान में सचिन पायलट को गुर्जर समुदाय का बड़ा नेता माना जाता है. प्रदेश में करीब 6 फीसदी गुर्जर समुदाय की आबादी है और 2018 में आठ विधायक गुर्जर समुदाय से चुनकर आए थे. इनमें सात कांग्रेस और एक बसपा से जीत दर्ज की थी जबकि बीजेपी से कोई भी नहीं जीत सका था.

हालांकि, बसपा से जीत दर्ज करने वाले जोगिंदर आवाना बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए.

ऐसे में सचिन पायलट ने 18 विधायकों के साथ गहलोत सरकार के खिलाफ बागवत का बिगुल फूंका तो महज दो गुर्जर समुदाय के विधायक ही साथ आए बाकी ने उन पर भरोसा नहीं जाताया था.

पहली बार राज्य सरकार 2008 में गुर्जरों को आरक्षण देने के लिए विधेयक लाई थी. जिसमें कुल आरक्षण 68 प्रतिशत हो गया था. इस विधेयक के अनुसार ईबीसी को 14, 5 प्रतिशत एसबीसी, 21 प्रतिशत ओबीसी, 16प्रतिशत एससी, 12 प्रतिशत एसटी को आरक्षण देने का प्रावधान रखा गया था. लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए रोक लगाया कि उसमें आरक्षण प्रतिशत तय सीमा को पार कर रहा है.

वहीं, 2008 में कोर्ट के स्टे के बाद राज्य सरकार 2012 में भी इसका नोटिफिकेशन लाई थी. जिसमें गुर्जर समेत एसबीसी की पांचों जातियों को 5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था. लेकिन इसे भी कोर्ट में चैलेंज किया गया और कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. जबकि 2015 में भी राज्य सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण देने के लिए विधेयक लाई थी. लेकिन कोर्ट ने ओबीसी कमीशन की रिपोर्ट को सही नहीं माना और आरक्षण को खारिज कर दिया.

इसके बाद 2018 में राजस्थान सरकार गुर्जर आरक्षण के लिए विधेयक लेकर आई थी. विधेयक सदन में पास भी हो गया. लेकिन कुछ दिनों बाद ही हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. जिसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई, लेकिन वहां भी कोर्ट ने आरक्षण 50 प्रतिशत ज्यादा होने पर इसके लागू होने पर रोक लगा दी. कोर्ट की रोक के बाद गुर्जरो को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार ने मोर बैकवर्ड क्लास बनाया, जिसमें उनके लिए 1त्न आरक्षण का प्रावधान किया गया.

अब राजस्थान में नई सरकार के आते ही गुर्जरों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. इससे पहले भी वसुंधरा सरकार के आखिरी में गुर्जरों ने आंदोलन की धमकी दी थी, लेकिन जब तक गुर्जर आंदोलन करते तब तक राज्य में आचार संहिता लग चुकी थी. आरक्षण को लेकर गुर्जरों ने एनएच-8 किया जाम, कहा-मांगें पूरी नहीं होने पर उग्र होगा आंदोलन – गुर्जर समाज की ओर से अजमेर के मांगलियावास में आयोजित की गई.

गुर्जर आरक्षण महापंचायत में जिले भर के प्रमुख गुर्जर नेता जुटे और तय किया गया कि यह आंदोलन कर्नल बैंसला के नेतृत्व में संचालित किया जाएगा. इस बैठक में मौजूद गुर्जर समाज के लोगो की सहमति के बाद बनी कमेटी के आव्हान पर गुर्जर ने मांगलियावास से गुजर रहे नेशनल हाइवे संख्या आठ को जाम कर दिया.

इस अवसर पर गुर्जर समाज द्वारा स्थानीय प्रशासन को एक ज्ञापन भी सौंपा गया, जिसमें प्रदेश सरकार को 48  घंटे का अल्टीमेटम देते हुए सभी मांगों को पूरा करने की मांग की गई है.  अजमेर के गुर्जर समाज ने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि तय समय सीमा में उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो अजमेर में भी उग्र गुर्जर आरक्षण आंदोलन देखने को मिलेगा.