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सिक्के बने बाजार की सबसे बड़ी समस्या, कहीं दुकानदार तो कहीं ग्राहक लेने से कर रहे इन्‍कार

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त्यौहारों के मौसम में बाजार में रौनक बढ़ने से दुकानदारों और व्यापारियों को बड़ी राहत मिली है। ग्राहकों के बाजार में आने से कैश का फ्लो बढ़ गया है। मगर अब व्यापारियों व दुकानदारों के लिए सिक्का सबसे बड़ी समस्या बन गए हैं। हाल यह है कि सामानों की खरीद के समय एक तरफ जहां व्यापारी सिक्के लेने से साफ इन्‍कार कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ ग्राहक भी खुदरा पैसे लेने से मना कर दे रहे हैं।

इससे लेनदेन का कार्य प्रभावित हो रहा है। व्यापारियों का कहना है कि उनके पास सिक्कों का अंबार लग गया है। अगर बैंक में सिक्के जमा करने जाओ तो बैंक वाले भी इतनी मात्रा में सिक्का लेने से मना कर रहे हैं। हमने कोशिश की कि बैंक धीरे-धीरे करके भी कुछ सिक्के ले लें, मगर बैंक के अधिकारी साफ मना कर रहे हैं। ऐसे में हम भी कितना सिक्का जमा करें। मजबूरी में ग्राहकों से सिक्का लेने से मना करना पड़ रहा है।

अपर बाजार में माल न देने की वजह से थोक व्यापारी और खुदरा विक्रेताओं में आए दिन झगड़े हो रहे हैं। वहीं कुछ थोक विक्रेताओं ने एक हजार के माल में 100 रुपये का ज्यादा का सिक्का न लेना तय कर दिया है। इससे खुदरा विक्रेताओं की समस्या बढ़ गयी है। अपर बाजार में माल लेने आए अरगोड़ा के खुदरा विक्रेता बताते हैं कि उनका राशन का दुकान है। अब माल के पेमेंट में सिक्के ज्यादा थे।

इसलिए व्यापारी ने माल देने से साफ मना कर दिया। अगर बैंक अपने जारी किए सिक्के नहीं ले सकता तो उसे बंद कर देना चाहिए। इससे व्यापारियों का शोषण बढ़ा है। वहीं अपर बाजार में प्लास्टिक का सामान बेचने वाले रवि बताते हैं कि रातू के ग्रामीण इलाके में वह साइकिल पर प्लास्टिक का माल बेचते हैं। इसकी कीमत पांच से लेकर दस रुपये तक होती है। ऐसे में सिक्कों का जमा होना लाजमी है। मगर अब व्यापारी सिक्के लेने से मना कर रहे हैं तो माल कैसे मिलेगा।

रांची की थोक मंडियों में सिक्के को नोट में बदलने वाला एक पूरा गिरोह भी सक्रिय है। यह गिरोह बाजार में सिक्का लेकर आए परेशान व्यापारी की पहचान करता है। इसके बाद उसे भरोसे में लेकर सिक्के के बदले नोट दिलाने की बात करता है। इसके लिए गिरोह का सदस्य सैकड़े में 10 रुपये तक का कमीशन लेता है। मजबूरी में व्यापारियों को सिक्का के बदले नोट करवाना पड़ता है। बताया जाता है कि इस गिरोह के तार बंगाल तक जुड़े हुए हैं। यहां इन सिक्कों को गलाकर स्टील का अन्य सामान बनाया जाता है। वहीं कुछ गिरोह के सदस्य बैंकों में अपनी ऊंची जानपहचान की बदौलत पैसे जमा करवाकर शुद्ध 10 प्रतिशत का मुनाफा कमा लेते हैं।