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मरवाही का मैदान मार ताकतवर हुए भूपेश, यहां पहचान खो चुका अजीत जोगी का परिवार

छत्तीसगढ़ की मरवाही विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त जीत कई संदेश साथ लेकर आई है। पहला तो यह कि मरवाही सीट अब अजीत जोगी परिवार का गढ़ कहलाने की हैसियत खो चुकी है। दूसरा यह कि भूपेश सरकार के दो साल के कामकाज को भारतीय जनता पार्टी कोई मुद्दा नहीं बना पाई। शायद यही वजह रही कि मरवाही में भाजपा का चुनाव प्रचार कभी आक्रामक दिखा ही नहीं। मरवाही के नतीजे का तीसरा और और सबसे बड़ा संदेश यह है कि इसने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनीतिक हैसियत को रायपुर से लेकर दिल्ली तक और मजबूत किया है। यदि गैर-राजग दलों के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो कम से कम हिंदी भाषी राज्यों में इस समय भूपेश सबसे ताकतवर नेता के तौर पर उभरे हैं। इस जीत के साथ ही भूपेश की न सिर्फ दिल्ली में पूछ-परख बढ़ेगी, बल्कि कांग्रेस के केंद्रीय संगठन में भी उनका रुतबा बढ़ेगा।

आदिवासी बहुल मरवाही सीट पिछले करीब 20 वर्षो से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पास रही। मुख्यमंत्री रहते हुए जोगी ने मरवाही जैसी छोटी-सी जगह के लिए वाकई बड़े-बड़े काम भी किए। इस तरह धीरे-धीरे मरवाही और जोगी एक दूसरे के पर्याय बनते चले गए। यहां तक कि इस सीट को जोगी की जागीर भी कहा जाने लगा। ऐसे में उनके निधन से रिक्त हुई इस सीट पर जैसे ही उपचुनाव की घोषणा हुई, जोगी परिवार सीधे मैदान में उतर पड़ा। परिवार को उम्मीद थी कि क्षेत्र में अजीत के प्रति सहानुभूति का लाभ उसे मिल सकता है। अजीत जोगी की अंतिम यात्र या फिर श्रद्धांजलि सभा में जुटी भीड़ ने इस उम्मीद को और परवान चढ़ाया। बाद में अजीत की पत्नी रेणु और पुत्र अमित क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री की तस्वीर के साथ घूम-घूमकर सहानुभूति बटोरने की कोशिशों में भी लगे। आखिरकार अमित ने अपने पिता की बनाई जकांछ यानी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से अपनी दावेदारी ठोक दी।