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खतरे में झारखंड का बचपन, कोरोना संकट के दौर में उपेक्षित 40 फीसदी आबादी

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झारखंड-बिहार (Jharkhand-Bihar) समेत देश के अलग-अलग कोने में जब लोग शुक्रवार (20 नवंबर, 2020) को स्वच्छता और प्रकृति का महापर्व छठ (Chhath puja 2020) मना रहे होंगे, बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ (Unicef) इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस डे 2020 (International Children’s Day 2020) मना रहा होगा. चाचा नेहरू के जन्म दिन पर 14 नवंबर को हर साल भारत में बाल दिवस मनता है. यूनिसेफ 20 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस मनाता है. बच्चों के अधिकारों की बात करने वाली इंटरनेशनल संस्था सेव द चिल्ड्रेन ने कहा है कि कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) के दौर में झारखंड की 40 फीसदी आबादी खतरे में है.

जी हां. वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर गौर करेंगे, तो पायेंगे कि झारखंड में 40 फीसदी आबादी बच्चों की है. सेव द चिल्ड्रेन के पूर्वी भारत के प्रोग्राम मैनेजमेंट के डिप्टी डायरेक्टर चित्तप्रिय साधु और कैंपेन एंड कम्युनिकेशन मैनेजर सुमी हल्दर की रिपोर्ट बताती है कि किस तरह से बच्चों के मुद्दों को भारत, खासकर झारखंड में दरकिनार किया जाता रहा है. चित्तप्रिय और सुमी ने कोरोना वायरस महामारी के दौर में झारखंड के बच्चों की स्थिति और उनके हालात बयां किये हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बच्चों और उनके अधिकारों को राजनीति में कभी कोई महत्व नहीं दिया गया. कोविड-19 महामारी के दौर में वर्ष 2020 की पहली तिमाही में बच्चों के तमाम अधिकारों का हनन हुआ है. एक ओर सरकार कोरोना वायरस से पूरी मजबूती से नहीं लड़ पा रही है, तो दूसरी ओर बच्चों के अधिकारों की भी रक्षा नहीं कर पा रही है. स्वास्थ्य का क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, खेल-कूद में उनकी भागीदारी का मामला हो या कुछ और, बच्चे इन सबसे दूर हो गये हैं.

झारखंड की इस 40 फीसदी आबादी की शिक्षा, सेहत, पोषण, टीकाकरण और उनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने मजबूत कदम उठाये हों, जमीन पर ऐसा कुछ नहीं दिख रहा. हालांकि, भारत वर्ष 1992 से यूएन-चाइल्ड राइट्स कन्वेंशन (यूएनसीआरसी) का सदस्य देश है और अपने देश में यूएनसीआरसी के प्रावधानों के तहत बाल अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. कोरोना काल में यदि आप झारखंड के बच्चों की स्थिति पर नजर डालेंगे, तो पायेंगे कि इस राज्य में कोविड-19 की वजह से जो सामाजिक और आर्थिक हालात उत्पन्न हुए हैं, उसने बच्चों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है.

कोरोना महामारी ने गरीबी में जी रहे बच्चों के जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. महज एक समस्या इनके जीवन में कई समस्याओं का कारण बन जाती है. कोरोना की वजह से राज्य के सभी स्कूल बंद हैं. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का एकमात्र जरिया है ऑनलाइन क्लास. राज्य सरकार ने कुछ व्यवस्था की है, ताकि पिछड़े बच्चे रेगुलर क्लास कर सकें, लेकिन इनमें से अधिकतर बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं है. इंटरनेट कनेक्शन की समस्या है. इनमें से अधिकांश बच्चे क्लास कर ही नहीं पा रहे. फलस्वरूप उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है.

झारखंड सरकार ने अगस्त, 2020 में स्कूल खोलने को लेकर एक ऑनलाइन सर्वेक्षण करवाया था. इसमें 31.7 फीसदी अभिभावकों ने कहा था कि स्कूल तभी खोले जायें, जब कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हो जाये. करीब 48 फीसदी अभिभावकों ने सिलेबस में 50 फीसदी की कटौती करने की बात कही थी, तो 25 फीसदी लोगों ने सितंबर में स्कूल खोलने की वकालत की थी. जिस तरह से कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और यह कम्युनिटी स्प्रेड के स्तर पर आ गया है, स्कूल खोलना अभी दूर की कौड़ी है.

ऐसे में सवाल उठता है कि करीब 9 महीने से स्कूल से दूर रह रहे बच्चे अपने घर में किस हालात में हैं? सभी जानते हैं कि झारखंड में सबसे ज्यादा मानव तस्करी होती है. मानव तस्करों के लिए झारखंड को एक तरह से स्वर्ग कहा जाता है. सितंबर, 2020 में वर्ष 2019 की जो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट जारी हुई थी, उसमें बताया गया था कि राज्य में मानव तस्करी के 373 मामले सामने आये थे. इनमें से 314 नाबालिग लड़कियां थीं. ये गरीब परिवार से थीं और इन्हें तरह-तरह का लालच देकर किसी न किसी दलदल में धकेल दिया गया था.

कोविड-19 महामारी के दौर में जब अच्छे-अच्छों की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी है और रेल सेवाएं धीरे-धीरे बहाल होने लगी हैं, बच्चों की तस्करी की आशंका बढ़ गयी है. मानव तस्कर गरीबी में जी रहे लोगों को अपना निशाना बनाने की फिराक में हैं. मौका मिलते ही वे बच्चों को ले उड़ेंगे. इसलिए जरूरी है कि बच्चों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाये.

वैश्विक महामारी ने गरीबी में जी रहे परिवारों के बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. लॉकडाउन की वजह से महानगरों में बेरोजगार हुए लोग अपने घरों को लौट आये. बहुत से लोग पैदल ही अपने गांवों को लौटे. ऐसे लोगों के बच्चों के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ा. झारखंड सरकार ने इन प्रवासी श्रमिकों की स्किल मैपिंग करके मनरेगा जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से इन्हें जोड़ने की घोषणा की. सरकार के इस प्रयास की तारीफ होनी चाहिए. करीब 5 लाख ऐसे प्रवासी श्रमिकों को अपने ही राज्य में रोजगार देने के लिए तीन नयी योजनाओं की शुरुआत की गयी, जिससे इस वित्त वर्ष में 8 करोड़ मानव दिवस का सृजन हुआ.

चित्तप्रिय और सुमी की रिपोर्ट बताती है कि एक जगह से काम छोड़कर आये प्रवासी श्रमिक नयी जगह पर अपने काम में मशगूल हो गये, तो उनके बच्चे उपेक्षित रह गये. युवावस्था की दहलीज पर खड़े बच्चों के साथ-साथ नवजात शिशुओं और नन्हे बच्चों का जीवन भी प्रभावित हुआ है. छोटे बच्चों की पढ़ाई तो बाधित हुई ही है, उनके टीकाकरण का रूटीन भी गड़बड़ा गया है. लोग राशन भी घर नहीं ला पा रहे हैं. ऐसे राज्य में, जहां करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषित हों (वजन कम), आने वाले दिनों में समस्या और बढ़ सकती है.