विपक्ष स्वयं तो भ्रमित है ही परंतु वह अपनी इस चाल द्वारा जनता को भी भ्रमित करने का षडयंत्र कर रहा है।
सत्ता प्राप्ति की लालसा से, पीएम मोदी के प्रति नफरत से या यूं कहिये कि मजबूरियों से विपक्ष भ्रमित होकर जनता को भ्रमित करने का षडयंत्र कर रहा है।
६० वर्षों से सता सुख भोगने के उपरांत अब सत्ता से बाहर होने के कारण कांग्रेस की तड़पन देखते ही बन रहा है। येन–केन–प्रकारेण सत्ता प्राप्ति की यही लालसा अन्य विपक्षी पार्टियों और उनके नेताओं में भी है।
जनेऊधारी ब्राम्हण का रूप धारण राहुल गांधी कर चुके हैं।
अब हिन्दुत्ववादी शिवसेना मुस्लिम आरक्षण की पक्षधर हो गई है। एनआरसी के मुद्दे पर भी विपक्ष भ्रमित है, जबकि भाजपा प्रारंभ से ही उसकी पक्षधर रही है।
कल जिस प्रकार से विजय माल्या ने कहा था कि Óमेरी पूरी संपत्ति ले लो और मुझे छोड़ दोÓ उसी तर्ज पर आज ममता ने कहा Ó नहीं बनना है पीएम सिर्फ मोदी को हटाना मकसद ।
भले ही लोकसभा में राहुल गांधी ने मोदी से ये कहा कि आ मुझसे गले लग जा और इसी का अनुकरण कांग्रेस के अन्य नेता भी करने लगे। परंतु इस आ गले लग जा के पीछे पीएम मोदी से नफरत की भावना ही थी। इसी नफरत से ग्रसित होकर राहुल गांधी ने अपने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के सपने को भी चकनाचूर करते हुए कहा कि उन्हें माया–ममता का पीएम पद का उम्मीदवार होना मंजूर है।
कुछ मजबूरिया भी है जिसके कारण से आज विपक्ष भ्रमित है। प्राय: सभी विपक्ष के नेता चाहे व सोनिया राहुल हों, ममता–माया–मुलायम हों, केजरीवाल हों या और कोई सभी भ्रष्टाचार में फंसे हुए हैं और जांच एजेंसियों के घेरे में हैं। अनेक नेता जिनमें प्रमुख सोनिया, राहुल गांधी, पी चिदंबरम और शशि थरूर भी हैं वे जमानत पर घूम रहे हैं।
लालू यादव तो जेल में विराजमान हैं। अब उक्त नेताओं को यह डर सता रहा है कि कहीं २०१९ में भी लोकसभा चुनाव जीतकर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गये तो उनका भी हाल लालू यादव जैसा न हो जाये।
इसी प्रकार से एनआरसी मुद्दे पर भी विपक्ष स्वयं तो भ्रमित है ही और जनता को भी भ्रमित करना चाहती है।
विपक्षी पार्टियों को लगता है कि मुस्लिम तुष्टिकरण भी एक महत्वपूर्ण अस्त्र सत्ता में आने का है। इसी कारण अब शिवसेना भी मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करने लगी है।
मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ–साथ हिन्दू तुष्टिकरण के लिये राहुल गांधी जनेऊधारी ब्राम्हण का रूप धारण कर लिये हैं और मंदिर–मंदिर के द्वार खटखटा रहे हैं। पर यह बहुरूपीया पन वे छिपा नहीं पा रहे हैं इसीलिये वे गुपचुप तरीके से मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी मुलाकात किये। परंतु यह सराहनीय है कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी उनको यही सलाह दी की वे सिर्फ मुस्लिमों की ही नहीं पूरे देश की सोचें।
वोट बैंक पॉलिटिक्स से ग्रसित होकर ही ममता बैनर्जी ने एनआरसी मुद्दे पर गृहयुद्ध हो जायेगा यह डर पैदा करने का प्रयत्न किया। इस डर से संभव है कि एनआरसी में जिन ४० लाख लोगों का नाम नहीं है वे आसाम के अलावा अन्य प्रांतों में विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार और दिल्ली की ओर कूंच करें। यही मनसा गृहयुद्ध का ढिढ़ोरा पीटने के पीछे है। ममता बैनर्जी की इसी गृहयुद्ध के खिलाफ अदालत में मुकदमा भी दायर हो चुका है।
ममता बैनर्जी, लालू यादव के सुपुत्र और केजरीवाल उक्त ४० लाख लोगों का अपने–अपने प्रांतों में स्वागत करने को तैय्यार हैं। एनआरसी के मुद्दे पर कांग्रेस और ममता बैनर्जी कितने भ्रमित हैं इसकी चर्चा संक्षिप्त में यहॉ करना आवश्यक है।
ममता बैनर्जी ने २००५ में संसद में बंगलादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर स्तीफा तक दे दिया था भले ही वह मंजूर नहीं हुआ और इसी मुद्दे पर उन्होंने लोकसभा स्पीकर पर कागज के टुकड़े फेंककर विरोध भी प्रकट किया था क्योंकि उस समय पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार थी। अब यही ममता बैनर्जी बंगलादेशी घुसपैठियों का पक्ष ले रही है।
एनआरसी पर अरूण जेटली ने भी अपने ब्लाग में राहुल को इंदिरा,राजीव का हवाला देकर यह बताने का प्रयास किया है कि एनआरसी तो उन्हीं की देन है परंतु इसको कार्यरूप में परिणित भाजपा कर रही है।
विपक्ष एनआरसी मुद्दे पर इतना भ्रमित है कि आज तस्लीमा नसरीन ने भी ममता बैनर्जी के तथा अन्य विपक्षी पार्टियों के दोहरे चरित्र को उजागर कर दिया है। इसका विस्तृत विवरण इसी संपादकीय के नीचे दिया गया है।
जनता को भ्रमित करने का विपक्ष द्वारा प्रयास किये जाने का एक कारण और है। विपक्ष सोचता है कि येन–केन–प्रकारेण नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये कांग्रेस के नेताओं ने पाकिस्तान और चीन तक दौड़–धूप की है।
विपक्ष हताश हो चुका है। इस हताशा के कारण उसे प्रजातंत्र और संसदीय प्रणाली पर विश्वास नहीं रहा है। इसी कारण कल भी और आज भी उपराष्ट्रपति वैकेया नायडू को यह कहना पड़ा कि संसद में व्यवधान डालने की एक साजिश हो रही है।
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