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बिरसा कृषि विवि में एवोकाडो फ्रूट पर शुरू हुई शोध की पहल, किसानों की आय को मिलेगा बढ़ावा

रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में विदेशी फल एवोकाडो पर अनुसंधान की शुरुआत की गई है। झारखंड की आबोहवा के अनुकूल पाए जाने पर इसका लाभ प्रदेश के किसानों को मिल सकेगा। बीएयू कुलपति डाॅ. ओंकार नाथ सिंह के परामर्श पर उद्यान विभाग ने इस दिशा में पहल की है। विश्वविद्यालय परिसर स्थित टेक्नोलॉजी पार्क के तीसी फसल (दिव्या व प्रियम प्रभेद) प्रक्षेत्र के मेढ़ पर एवोकाडो के 15 पौधों को लगाया गया है।

इनका पौधरोपण रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. रमेश पांडे एवं बीएयू कुलपति डाॅ. ओंकार नाथ सिंह ने किया। पौधारोपण में विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों में डाॅ. एमएस यादव, डाॅ. अब्दुल वदूद, डाॅ. डीके शाही, डाॅ. जगरनाथ उरांव, प्रो डीके रूसिया एवं डाॅ. बधनू उरांव ने भी भाग लिया। बीएयू कुलपति डाॅ. ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि इसकी खेती में पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती।

इस बहुउपयोगी गुणों से युक्त फल के सेवन का देश में प्रचलन काफी बढ़ गया है। कई राज्यों में इसकी खेती को बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है। इसकी संभावना के आकलन के लिए बीएयू ने शोध की पहल की है। इसकी खेती को बढ़ावा मिलने से प्रदेश में किसानों को बेहतर आमदनी, ग्रामीण स्तर पर रोजगार व पोषण सुरक्षा तथा निर्यात की संभावना को बल मिलेगा।

एवोकाडो फाइबर, ओमेगा -3 फैटी एसिड, विटामिन ए, सी, ई और पोटेशियम से भरपूर पोषक युक्त फल है। इसमें केले से भी अधिक पोटेशियम मौजूद होता है। यह तनाव से लड़ने में मददगार है। विटामिन बी की प्रचुरता से यह एक बेहतरीन भोजन बनता है। एवोकाडो दक्षिण मध्य मैक्सिको में ज्यादा पाया जाता है। विश्व आपूर्ति का करीब 34 प्रतिशत उत्पादन मेक्सिको द्वारा किया जाता है। अमेरिका में लोकप्रिय इस फल की खेती भारत के हिमाचल प्रदेश एवं सिक्किम में भी प्रचलित हो रही है। भारतीय बाजार में यह 400-1000 रुपये प्रति किलो बिकता है।

एवोकाडो की खेती में 60 फीसद से अधिक नमी सहित 20-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। प्रतिवर्ष 1000 सेमी के लगभग वर्षा की जरूरत होती है। खेती के लिए बढ़िया जल धारण क्षमता वाली लैटेराइट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसका वुडस्टॉक केरल व तमिलनाडु से लिया जाता है एवं नर्सरी में तैयार कर इसे लगाया जाता है। इस फल को बीज या कलम द्वारा बोया जा सकता है। कलम वाले पौधे से 4 वर्षों में तथा बीज से बोआई में 5 वर्षों के बाद फल मिलने लगता है।

एक पौधे को अपनी अधिकतम उपज देने में आठ साल लगते हैं। आरयू के कुलपति डॉ. रमेश पांडे ने बताया कि एवोकाडो (पर्सिया एमेरिकाना) वास्तव में व्यावसायिक रूप से मूल्यवान फल है। इसे रुचिरा, मक्खनफल, एवोकाडो पियर या एलीगेटर पियर के नाम से जाना जाता है। कुछ सालों से भारत के व्यंजनों में इसका इस्तेमाल होने लगा है। इसका उपयोग स्वादिष्ट शेक, पकवान और डेज्जर्ट आदि में भी लोग कर रहे हैं।

बीएयू के उद्यान विभाग के अध्यक्ष डॉ केके झा बताते हैं कि एवोकाडो की खेती सिक्किम एवं हिमाचल प्रदेश राज्यों के 800 से 1600 मीटर की ऊंचाई पर सफलतापूर्वक की जा रही है। तमिलनाडु राज्य के पहाड़ी ढलानों, महाराष्ट्र में कूर्ग, केरल और कर्नाटक के सीमित क्षेत्रों में इसकी व्यावसायिक खेती की शुरुआत की गई है। तमिलनाडु और केरल इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। एवोकाडो के कलम वाले पौधे को कोलकाता से मंगा कर यहां वृक्षारोपण किया गया है। इसकी खेती में सफलता मिलने पर किसानों को तीन गुना लाभ मिल सकेगा।