Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

सुलोचिनी के संयुक्त परिवार के लिए पेयजल और अतिरिक्त आमदनी का जरिया बना कुंआ

Default Featured Image

गांव की मुख्य सड़क से दूर घर बनाकर रहने वाले एक आदिवासी परिवार के लिए दैनिक उपयोग का पानी और पेयजल की आपूर्ति दोनों एक बड़ी चुनौती बन गए थे। 17 लोगों के संयुक्त आदिवासी परिवार के पास पानी का कोई स्थायी साधन न होने से पेयजल की किल्लत तो थी ही, साथ ही निस्तार के लिए भी सुबह षाम दूर तक पानी लेने जाना मजबूरी थी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत वर्ष 2017 हमर गांव हमर योजना के तहत पहुंचे दल को समस्या बताकर उसका निदान पाने वाले इस परिवार को महात्मा गांधी नरेगा योजनांतर्गत मिले कुंए ने दोनो समस्याओं से निजात दिला दी। सुलोचिनी देवी का परिवार अब संयुक्त रूप से अपने दैनिक उपयोग के लिए कुंए का बारहमासी उपयोग कर रहा है  और अब यह परिवार अपने कुंए के आस-पास के खेतों में मेहनत कर रबी की फसल में खाली रहने वाली बाड़ी व खेतों में आलू प्याज टमाटर मूली जैसी सब्जी लगाकर हर साल 25 से 30 हजार रूपए की अतिरिक्त आमदनी भी कमाने लगा है।

सुलेाचिनी देवी अब काफी वृद्ध हैं उनके परिवार के बेटे सुखीराम ही खेती बाड़ी और घर की जिम्मेदारी सम्हालते हैं। सुखीराम ने बताया कि कुंए के बनने से बड़ा लाभ होने लगा। सबसे ज्यादा समस्या तो बरसात में पेयजल के लिए होती थी। वह अब कुंए के बन जाने से समाप्त हेा गई है। साथ ही पूरे परिवार के दैनिक उपयोग के लिए भरपूर पानी हमेषा उपलब्ध रहता है। धान की फसल के बाद हम कुछ नहीं कर पाते थे दूसरे के काम करने के लिए या फिर मनरेगा के तहत मजदूरी करने जाना ही एकमात्र विकल्प था। लेकिन कुंआ बन जाने से अब धान की फसल के ठीक बाद सरसांे आलू मटर जैसी कम पानी खपत वाली फसलें लगा लेते हैं। इसके साथ ही सब्जी की खेती करने से 25 से 30 हजार रूपए मिल जाते हैं। इस साल सुखीराम ने पहले ही मूली और लालभाजी की फसल लगा ली थी जिसे बेचकर वह 9 हजार रूपए कमा चुके हैं। साथ ही उनके दूसरे खेत में भी मूली की फसल तैयार हो रही है। मनरेगा के तहत कुंआ बन जाने से अब सुलोचिनी देवी का यह परिवार अब पेयजल और सिंचाई के छोटे से साधन के रूप में कुंए से अपनी दैनिक जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर हो गया है।