आज दुनियाभर में विश्व मृदा दिवस मनाया जा रहा है। बढ़ते प्रदूषण और खेती में रासायनिक उर्वरकों के लगातार बढ़ रहे इस्तेमाल से प्रदेश की मिट्टी की पैदावार भी लगातार खराब होती जा रही है। हालांकि, यह समस्या सिर्फ छत्तीसगढ़ या भारत की ही नहीं, बल्कि विश्व के बहुत से भागों में उपजाऊ मिट्टी बंजर हो रही है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों की मानें, तो अज्ञानता के कारण गांव के किसानों में अधिक पैदावार की लालच होने से ज्यादा रसायनिक खादों और कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है। इससे मिट्टी के जैविक गुणों में कमी आने लगी है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि फसल की उपजाऊ की क्षमता में गिरावट आ रही है।
लगभग आधे एकड़ में गौ-मूत्र से प्याज की खेती की पैदावार शुरू करने से लेकर केवीके में पांच एकड़ में जैविक और मिश्रित रासायनिक खेती की पहल की। इसका परिणाम काफी सकारात्मक मिला। मौजूदा समय में कई किसान जैविक खेती, केचुंआ खाद तैयार कर रहे हैं। ज्ञात हो कि किसानों और आम जनता को मिट्टी की सुरक्षा के लिए जागरूक करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में हर वर्ष पांच दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का फैसला लिया था। खेतों की मिट्टी के लिए जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास और सूक्ष्म तत्व (माइक्रोन्यूट्रेएंट्स) के अनुपात का गणित गड़बड़ा गया है। इससे मिट्टी की सेहत लगातार गिरती जा रही है। वहीं खराब होती मिट्टी को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की थी।
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