Editorial :- मेकिंग इण्डिया VS ब्रेकिंग इण्डिया – Lok Shakti

Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

Editorial :- मेकिंग इण्डिया VS ब्रेकिंग इण्डिया

पीएम मोदी ने नारा दिया है मेक इन इंडिया का। जनता चाहती है चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य कोई पार्टी सभी को मेक इन इंडिया की तरफ कदम बढ़ाने चाहिये।
समयसमय पर समाचार समाचार विश£ेषण  पढऩे के उपरांत ऐसा प्रतीत होता है कि कांगे्रस जो गठबंधन बनाने का प्रयास कर रही है और जिस प्रकार के वह देश विरोधी कार्यकलाप कर रही है उससे तो ऐसा लगता है कि कांगे्रस के कदम ब्रेकिंग इण्डिया की तरफ बढ़ रहे हैं।
शहरी नक्सलवादियों के और केजरीवाल जैसे अनार्किस्टो के विचारों के आधार पर कांग्रेस पार्टी  ब्रेकिंग इंडिया वाली कांग्रेस बन चुकी है।
कांगे्रस लोगों को नोटा के जरिए जनता को प्रजातंत्र के विरूद्ध ही नहीं बल्कि देश विरोधी लक्ष्य की ओर मोडऩे का दुस्साहस कर रही है।
इसी कारण नोटा की परिभाषा भाजपा ने अलग प्रकार से प्रस्तुत की है : नमो वन टाईम अगेन।
यदि कांगे्रस या अन्य उसी के समान परिवारवादी पार्टियां प्रजातंत्र पर विश्वास करती हैं और राष्ट्र हितैषी का दावा ठोकती हैं तो वे भी कह सकते हैें राहुल/माया/अखिलेश/ममता/नायडू/फारूख वन टाईम अगेन।
फारूख की पार्टी तो लोकसभा की एकदो सीटों तक ही सीमित हो सकती है बावजूद इसके  यहॉ पर फारूख अब्दुल्ला का नाम पीएम के लिये मैंने ऊपर क्यों लिखा है। अभी तेलंगाना में जो चुनाव हो रहे हैं उसमें टीआरएस ने ओवैसी की पार्टी से समझौता किया है।
असुददीन ओवैसी के छोटे भाई ने कल परसों ही अपने भाषण में तेलंगाना मेें कहा था कि कर्नाटक में कुछ सीटें जीतने वाली जेडीएस के कुमारस्वामी मुख्य बन सकते हैं तो ओवैसी क्यों नही बन सकते तेलंगाना के मुख्यमंत्री।
अतएव दिन में सपने देखने का सबको अधिकार है यह तो ठीक है परंतु परिस्थिति ऐसी भी जाती है कभीकभी जैसे कुछ लोकसभा के सीटों के मालिक देवगोड़ा, गुजरात, चंद्रशेखर आदि प्रधानमंत्री बन गये थे।
ब्रेकिंग इंडिया को हकीकत में बदलने का दुस्साहस करने की दृष्टि से कांगे्रस के षडयंत्र में फंस कर गुजरात में पाटीदारों के रिजर्वेशन की आवाज उठी। अन्य प्रांतों में जाट गुजर के आरक्षण की मांग उठी। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग उठी और अब आज का समाचार है मुस्लिम आरक्षण की भी मांग करते हुए कुछ लोग सड़क पर उतरे हैं।
यह सब बे्रकिंग इंडिया मुहिम लोगों ने सीखी है कांग्रेस से। कांग्रेस ने कुछ प्रांतो में मुस्लिम आरक्षण का सुगर कोटेड जहर देने का प्रयास किया था।
परिवारवादी पार्टियां क्या प्रजातंत्र की घोतक और देश की एकता के मॉडल हैं?
>> रजवाड़े खत्म हुए और प्रिविपर्स भी खत्म हुआ पर क्या उसके सब्सिट्यूट बनकर कांगे्रस जैसी परिवारवादी पार्टियां कानूनी खानापूर्ति करके  प्रजातंत्र का मखौल उड़ाने जन्म नहीं ले लिये हैं।
राजेरजवाड़े चले गये। परंतु उनकी जगह में ये परिवारवादी पार्टियां प्रजातंत्र का कानूनी जामा पहनकर गयी हंै। इसी प्रकार से अब नकली ँढोंगी साधुओं की भी जनेऊधारी, अंडाखाऊ ब्राम्हणों की भी बाढ़ गयी है।
>> अर्बन नक्सली और उनके पैरवीकार तथा हितैषी प्रजातंत्र के रक्षक हंै या विनाशक?
>> वोट डालने के लिये प्रोत्साहित करने की अपेक्षा नोटा का प्रचार करना क्या प्रजातंत्र को मजबूत करने का प्रयास है?
>> सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है ३५ए के संबंधित परंतु फिर भी फारूख अब्दुल्ला कांग्रेस की शह पर महबुबा मुफ्ती से हाथ मिलाकर भारत सरकार से ब्लैकमेलिंग करते हुए कश्मीर में हो रहे चुनाव की तथा आने वाले लोकसभा चुनाव के बहिस्कार की धमकी दे रहे हैं यही कार्य यही देश विरोधी हरकत अलगाववादी पाक फंडेड हुर्रियत करती रही है और नक्सल आंदोलन भी इसी मुहिम को चला रहा है।
>> चुनाव आयोग पर अविश्वास तथा हारने पर  खराब और जीतने पर अच्छा है इवीएम से चुनाव कराना। यह किस प्रकार की राजनीति है?
>> डॉ अंबेडकर के बनाए संविधान को हमने स्वीकार किया जिससे भारत में एकता बनी रहे और प्रजातांत्रिक प्रणालियां कायम रहे परंतु क्या अपने ६० वर्षों के शासनकाल में कांग्रेस ने देश की एकता को खंडित करने और देश की प्रजांतात्रिक प्रणालियों पर एक बार नहीं सौ बार छूरा नहीं घोंपा?
>> सेक्युलर शब्दों को कांग्रेस ने अपने शासनकाल में संविधान में जोड़ तो दिया परंतु उसकी परिभाषा जानबुझकर नहीं दी गई। यही कारण है कि आज ओवैसी , हुर्रियत, फारूख, जनेऊधारी तथाकथित हिन्दुओं को आतंकवादी कहने वाले गोहत्यारी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी सेक्युलर हैं और राष्ट्रवादी ताकतें सांप्रदायिक।
आज जो फतवा जारी करने वाले मौलवी सेक्युलर हैं इसी प्रकार से गुजरात विधानसभा चुनाव के समय और कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय इसाई धर्म प्रचारकों के फतवे कि राष्ट्रवादी पार्टियों को वोट देकर गैरराष्ट्रवादी पर्टियों को वोट दें वे सब आज सेक्युलर बन गये हैं।
>> वोट बैंक पॉलिटिक्स के चलते इंदिरा गाँधी ने भिंडरावाले में खालिस्तानी भावना को पनपाया और फिर जब पानी सर के ऊपर से बहने लगा तो स्वर्णमंदिर में सेना चढ़वा दी।
फिर उनकी हत्या हुई
हत्या के बाद 1984 में सिक्खों का कतलेआम करवाया गया। ..बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती हिलती है ये किसने कहा था? ..अभी के मध्यप्रदेश में कांग्रेस की नैय्या के नाविक कमल नाथ पर आरोप लगते रहे हैं कि वे भी अपने मित्र राजीव गाँधी से मित्रता जताने के लिये सबूत देने लिये उस षडयंत्र में शामिल थे।इसीलिए जब उन्हें पंजाब विधान सभा चुनाव के समय कांग्रेस का चुनाव प्रभारी बनाया गया तो वहां उनका विरोध होने से उन्हें उस जिम्मेदारी से हटाया गया था।  
दलितों को  आरक्षण  के  नाम  पर  किसने  उकसाया ? रोहित वेमुला मुद्दे को हिंसात्मक रूप किसने दिया?
अब ठीक वे ही ताकतें कांग्रेस के नेतृत्व में सवर्ण आंदोलन को जिन प्रांतो में अभी विधानसभा चुनाव होने हैं राजस्थान और मध्यप्रदेश में और बिहार में हिंसात्मक रूप किसने दिया, क्यों दिया? यह सब वोट पॉलिटिक्स नहीं तो क्या है?
दलित शब्द संविधान में कहीं पर भी नहीं है। महाराष्ट्र तथा अन्य प्रांतो की हाईकोर्ट ने तथा मोदी सरकार की तरफ से पीएमओ ने भी सभी प्रातों की सरकार को दलित शब्द का प्रयोग करने की सलाह दी बावजूद इसके  तथाकथित सेक्युलर मीडिया और वोटबैंक पॉलिटिशियंस दलित शब्द का दुरपयोग भारत की एकता को भंग करने के लिये क्यों कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट को इस पर स्वमेव संज्ञान लेना चाहिये।