यूपीए शासनकाल में नामदारों के फोन कॉल पर हुए बैंक घोटाले से सबक लेते हुए अब एनडीए सरकार बैंकिंग सुधार की ओर।
उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार से इंदिरा गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में बैंकों के राष्ट्रीयकरणका अहम फ़ैसला किया था. उन्होंने 19 जुलाई, 1969 को 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. इन बैंकों पर अधिकतर बड़े औद्योगिक घरानों का कब्ज़ा था. इसके बादराष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर 1980 में हुआ जिसके तहत सात और बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया।
>>अरुण जेटली के मुताबिक सरकार ने बजट में ही ऐलान कर दिया था कि बैंकों का विलय उसका प्रमुख एजेंडा है और इस दिशा में पहला कदम उठा लिया गया है. देश की बैंकिंग व्यवस्था कमजोर होने की बात कहते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि नए कर्ज न दिए जाने की वजह से कॉरपोरेट सेक्टर के निवेश पर बुरा असर पड़ रहा था. अरुण जेटली ने कहा कि इस विलय से बैंक मजबूत होंगे और उनकी कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी.
>>वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया कि इन तीन बैंकों का विलय इनके किसी कर्मचारी के लिए यह बुरी खबर नहीं है. उन्होंने कहा, ‘किसी भी कर्मचारी को किसी प्रतिकूल स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा.Ó इससे पहले बीते साल केंद्र सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक और उसके पांच सहयोगी बैंकों का विलय कर दिया था.
>>अरुण जेटली ने आगे कहा कि बहुत ज्यादा कर्ज देने और फंसे हुए कर्ज (एनपीए) में विशाल बढ़ोतरी के चलते बैंकों की हालत खराब है. वित्तीय वर्ष 2017-18 में एनपीए का यह आंकड़ा 10 लाख करोड़ रु से ज्यादा हो गया है. वित्त मंत्री के मुताबिक स्थिति कितनी खराब है, इसका पता 2015 में ही चल पाया. उन्होंने इसके लिए पिछली यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उसने एनपीए के मुद्दे पर आंखें मूंदे रखीं.
एसबीआई की तरह विलय से तीनों बैंकों के कर्मचारियों की मौजूदा सेवा शर्तों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार की 21 बैंकों में बहुलांश हिस्सेदारी है। इन बैंकों की एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की बैंक परिसपंत्ति में दो तिहाई से अधिक हिस्सेदारी है।
हालांकि, इसके साथ इन सार्वजनिक बैंकों का फंसे कर्ज में भी बड़ी हिस्सेदारी है। इस डूबे कर्ज के कारण क्षेत्र प्रभावित है और वैश्विक बासेल–तीन पूंजी नियमों के अनुपालन के लिये अगले दो साल में करोड़ों रुपये चाहिए।
स्मृति ईरानी ने कुछ दिनों पूर्व कहा था कि ‘सोनिया की अगुवाई वाले क्क्र ने किया बैंकों का बुरा हालÓ
यहॉ यह उल्लेखनीय हैकि पीएम मोदी ने भी कुछ दिनों पूर्व डाक विभाग के भुगतान बैंक के शुंभारंभ के अवसर पर यहां आयोजित कार्यक्रम के दौरान यह बात कही. उन्होंने कहा कि चार–पांच साल पहले तक बैंकों की अधिकांश पूंजी केवल एक परिवार के करीबी धनी लोगों के लिए आरक्षित रहती थी. पीएम मोदी ने कहा कि आजादी के बाद से 2008 तक कुल 18 लाख करोड़ रुपये के रिण दिए गए थे लेकिन उसके बाद के 6 वर्षों में यह आंकड़ा 52 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
पीएम मोदी ने बगैर किसी का नाम लिए कहा, ‘नामदारों द्वारा किए फोन कॉल पर कर्ज दिए गए. उन्होंने कहा कि नामदारों की सफारिश पर बैंकों ने कारोबारियों को नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों रुपये उधार दिए.Ó
पीएम मोदी ने कहा था कि यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि कर्ज का पैसा नहीं किया जाएगा, बैंकों ने कुछ लोगों को एक परिवार के आदेश पर कर्ज दिए. जब कर्ज लेने वालों ने कर्ज की कश्तें अदा करने में चुक की तो बैंकों पर उस ऋण को पुनर्गठित करने का दबाव डाला गया. उन्होंने पिछली संप्रग सरकार पर गैर–निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) से जुड़ी जानकारी छिपाने का आरोप लगाया.
पीएम मोदी ने कहा कि 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद स्थिति का बड़े पैमाने पर विश्लेषण किया और बैंकों को बकाया कर्जों की वसूली सख्ती से करने को कहा.
यह सच है कि कांग्रेस ने अर्थव्यवस्था की राह में बारूदी सुरंग बिछा दी. हमारी सरकार ने एनपीए की सही तस्वीर पेश की और पूर्ववर्ती सरकार के घोटाले को सामने लाया गया. पिछले चार वर्षों के दौरान, 50 करोड़ रुपये से अधिक से सभी कर्जों की समीक्षा की गयी है और नियमों का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये कहा है.
’12 बड़े ऋण डिफॉल्टरों पर 1.75 करोड़ रुपये का बकाया है. अन्य 27 चूककर्ताओं पर एक लाख करोड़ रुपये बकाया है. हमने इन 12 बड़े डिफॉल्टरों में से एक को भी कभी कोई कर्ज नहीं दिया है।
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