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Editorial :- माया की माया : आज जोगी के साथ तो कल भाजपा के साथ भी जा सकती है

मायावती की माया बसपा के २० प्रतिशत उत्तरप्रदेश में और प्रतिशत से लेकर १० प्रतिशत तक अन्य कुछ प्रांतों में जिनमें छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश भी हैं जहॉ अभी विधानसभा के चुनाव होने हैं।
मायावती की माया इतनी है कि उसके उक्त कमीटेड वोट वह जिस पार्टी को चाहे ट्रांसफर कर सकती है।
आज मायावती की बसपा से जोगी की पार्टी का समझौता हो चुका है। राजस्थान और मध्यप्रदेश में वह अकेले भी लड़ सकती है या सपा तथा वामपंथी पार्टियों से भी समझौता कर सकती है। ऊंट किस करवट बैठेगा कहा नहीं जा सकता।
आज वह छत्तीसगढ़ में जोगी के साथ है तो कल २०१९ में लोकसभा चुनाव के समय या उसके बाद भाजपा के साथ भी हो सकती है। इस संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।
पहले भी उत्तरप्रदेश में भाजपा के साथ समझौता कर मायाव
रही और जब भाजपा की पारी आई तो वह उससे दूर जा छिटकी। इस प्रकार की मायावती की माया है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर राजनीतिक चूक कर बैठे. छत्तीसगढ़ में बसपा ने कांग्रेस की बजाय अजीत जोगी के साथ गठबंधन करके चुनाव में उतरने का फैसला किया है. राहुल के लिए इसे बड़ा राजनीतिक झटका माना जा रहा है. इससे पहले भी कांग्रेस कई राजनीतिक चूक कर बैठी है, जिसका फायदा बीजेपी ने उठाया था.
ये पहली बार नहीं है कि राहुल सहयोगी दलों को साधने में फेल साबित हुए हैं बल्कि इससे पहले कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, त्रिपुरा जैसे राज्यों में गच्चा खा चुके हैं.
 
एक दशक से भी अधिक समय से राजनीति में सक्रिय राहुल गांधी छत्रपों के साथसाथ अपनी ही पार्टी के कई नेताओं को भी अपने साथ जोड़कर नहीं रख पाए. राहुल की इसी चूक का फायदा बीजेपी ने उठाया. बीजेपी कांग्रेस के नाराज नेताओं को अपने पाले में लाकर यूपी और पूर्वोत्तर के कई राज्यों की सत्ता को फतह करने में कामयाब रही.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे 2019 के लोकसभा चुनाव पर पडऩा स्वाभाविक है. इसके मद्देनजर कांग्रेस नेता बसपा के साथ गठबंधन के लिए लालायित थे. छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और मध्य प्रदेश के अध्यक्ष कमलनाथ बसपा के साथ गठबंधन करने की इच्छा कई बार सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं
कांग्रेस नेता भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में बसपा से गठबंधन होने के चलते करीब दो दर्जन सीटों पर नुकसान पार्टी को हो सकता है. इसी तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को करीब 50 विधानसभा सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा सकता है. पिछले चुनाव में बसपा को 4 सीटों के साथ करीब 7 फीसदी वोट मिले थे और 80 सीटें ऐसी थी, जहां बसपा को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. अब दलितअदिवासी बहुल सीटों में जोगीमाया की जोड़ी कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है।
मायावती के इस कदम के बाद दलितों का वोट कांग्रेस के हाथ से फिसल सकता है. बसपा लोकसभा चुनाव में भी ऐसे ही तेवर यूपी में भी दिखा सकती है. हरियाणा में बसपा पहले ही इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन कर चुकी है. ऐसे में कांग्रेस के पास भी वहां कोई साथी नहीं बचा है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से पहली बार चूक नहीं हुई है. इससे पहले कर्नाटक में भी जेडीएस के साथ गठबंधन कर पाने में असफल रहे थे. इसी का नतीजा था कि बीजेपी वहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि बाद में त्रिशंकु विधानसभा के हालात होने के बाद बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसी कारण कांग्रेस के पास जेडीएस से ज्यादा सीटें होने के बाद सीएम की कुर्सी छोडऩी पड़ी थी.
त्रिपुरा में कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लडऩे का खामियाजा उसे भुगतना पड़ा. कांग्रेस का वोटबैंक बीजेपी में शिफ्ट हो गया और उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई. हालांकि लेफ्ट को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.
कांग्रेस को सहयोगी दलों को साधने का नुकसान झारखंड में उठाना पड़ा था. 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर चुनाव लडऩे बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा।
हिमंता बिस्वा के जरिए बीजेपी ने असम ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर में अपनी राजनीति को मजबूत किया है.  
मोदी के खिलाफ राहुल गांधी का विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति पर लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं. 2019 में मोदी के खिलाफ अभी तक विपक्ष के गठबंधन का स्वरूप तय नहीं हो सका है. जबकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और नरेंद्र मोदी दोबारा से सत्ता में वापसी के लिए रैली दर रैली कर रहे हैं.
सूत्र बताते हैं कि 62 वर्षीय मायावती यूपी के अपने मजबूत गढ़ में राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही हैं. पिछले तीन दशकों से देश में दलित पावर का केंद्र रही बीएसपी को अब वहां अन्य दलित नेताओं से चुनौती मिल रही है. इनमे सबसे उभरता नाम चंद्रशेखर का है. सहारनपुर में दलितसवर्णों संघर्ष के बाद सुर्खियों में आए चंद्रशेखर हाल ही में जेल से बाहर आए हैं. उनकी भीम आर्मी सेना को युवा दलितों का समर्थन है. इस भीम आर्मी सेना का ही परिणाम है कि आम तौर पर सिर्फ चुनावी सभाओं में जनता के बीच जाने वाली बसपा सुप्रीमो सहारनपुर में पीडि़तों से मिलने पहुंची.
भीम आर्मी सेना पर आरोप
चंद्रशेखर के रिहा होने के बाद मायावती उन पर आरोप लगा रही हैं कि भीम आर्मी सेना और भाजपा के बीच छिपा हुआ करार है. चंद्रशेखर इन आरोपों से इनकार कर रहे हैं. लेकिन जिस तरह से मायावती की तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं वह नई राजनीतिक चुनौती समझने के लिए काफी है. मायावती 2019 की संभावनाओं को देखते हुए अपने सारे विकल्प खुले रखना चाहती हैं.
भाजपा के साथ भी जा सकती है
एक चर्चा यह भी है कि कांग्रेस का साथ नहीं देकर अप्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी को मदद कर रही बसपा 2019 के चुनाव में सीधे तौर पर एनडीए का सहयोगी दल भी बन सकती है. दरअसल बसपा 2014 के बाद से ही बुरे दौर में है. मोदीशाह के तूफान ने यूपी से बीएसपी का पूरा सफाया कर दिया. लोकसभा की एक भी सीट मायावती के पास नहीं है. विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ 19 सीटें जीतकर बसपा ने अपनी राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा जैसे तैसे बचाया है.
सशक्त भूमिका
मायावती सत्ता की राजनीति के करीब रहने और फैसले लेने के लिए जानी जाती हैं. कर्नाटक चुनाव में जिस तरह जेडीएस को समर्थन देकर मायावती ने अपने वोट ट्रांसफर करवाए. वो ऐसी ही सशक्त भूमिका अब केंद्र की राजनीति में भी चाहती हैं.