5 October 2018
मोदी फोबिया से ग्रस्त बुद्धिजीवी तथा राजनीतिज्ञ इस प्रकार से आपा खो बैठे हैं कि उन्हें स्वयं समझ में नहीं आ रहा है कि वे किधर जा रहे हैं, उनके कार्यकलापों से देश का हित हो रहा है या अहित। जिस प्रकार से मदमस्त पागल हाथी सुधबुध खोकर निर्दोष लोगों को कुचलने लग जाता है वही गतिविधि उक्त राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियो की है।
स्वार्थ से वशीभूत होकर जिस प्रकार से ड्रैगन व पाक पुतीन की भारत यात्रा से और उनके साथ पीएम मोदी की सरकार द्वारा किये जा रहे रक्षा सौदों से बौखलाये हुए हैं उसी प्रकार से राफेल सौदे को मुद़दा बनाने को बेचैन हैं मोदी फोबिया से ग्रस्त कुछ स्वार्थी बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञ।
आश्चर्य तो इस बात का है कि मोदी फोबिया से ही ग्रस्त होकर अटल जी के कथित नवरत्न अरूण शौरी और यशवंत सिन्हा भी उसी भारत भूषण का हाथ पकड़ लिये हैं जो कश्मीर की आजादी/ वहॉ पर इस मुद्दे पर मतगणना का समर्थक है। आज का ही समाचार है कि वे राफेल सौदे को लेकर सीबीआई से मिलने वाले हैं।
इस संपादकीय में मैं रोहिंग्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने तथा कथित बुद्धिजीवियों को जो आईना दिखाया है और बताया है देश की जिम्मेदारी उसकी ही चर्चा करूंगा।
भारत से वापस म्यांमार भेजे जा रहे 7 रोहिंग्या घुसपैठियों को रोकने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। केंद्र सरकार के ये कहने पर कि म्यांमार इन रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस लेने के लिए तैयार है, सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सुनवाई को तैयार ही नहीं हुई। आपको बता दें कि प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। इसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सख्त लहजे में कहा कि हमें अपनी जिम्मेदारी पता है और किसी को इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं। दरअसल ये 7 रोहिंग्या 2012 में भारत में घुसे थे और इन्हें फॉरेन ऐक्ट के तहत दोषी पाया गया था।
हालांकि याचिका खारिज होने के बाद प्रशांत भूषण बौखला गए और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को नसीहत देने की कोशिश की और कहा कि रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने के लिए अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। इसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उन्हें आईना दिखाते हुए कहा कि हम हम जीवन के अधिकार के संबंध में अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से अवगत हैं और किसी को इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं।
गौरतलब है कि वामपंथी ब्रिगेड चाहता है कि किसी भी तरह से रोहिंग्या घुसपैठिये भारत में रहें। उनकी मंशा है कि इन घुसपैठियों को देश की नागरिकता भी दे दी जाए और भारत के मूल नागरिकों की हकमारी की जाए। हालांकि मोदी सरकार ने बार-बार यह साफ किया है कि जो रोहिंग्या अवैध तरीके से भारत में घुस आए हैं, उन्हें हर हाल में वापस भेजा जाएगा।
भारत सरकार का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं। इसके पीछे सरकार के कई ऐसे दावे हैं जिनको खारिज नहीं किया जा सकता।
अलकायदा से कनेक्शन : रोहिंग्या के आतंकियों से जुड़े तार
दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और मेवात में आतंकियों से जुड़े रोहिंग्या पकड़े गए हैं। रेडिकल यानि कट्टर इस्लाम से इनका निकट संबंध माना जाता है। रोहिंग्या को आतंक का प्रशिक्षण देने वाला अलकायदा का आतंकी भी दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था।
सरकार का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई बड़े आतंकी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं। वैश्विक समस्या बन चुके आईएसआईएस के रोहिंग्या से संबंध होने की आशंका निराधार नहीं है।
बौद्धगया में हुई आतंकी घटना में जो गिरफ्तारियां हुई हैं उससे पता चलता है कि वे रोहिंग्या मुसलमान थे और उनका ईरादा दलाई लामा की हत्या करना था।
इन रोहिंग्याओं को पाकिस्तान दे रहा है समर्थन। रोहिंग्या म्यांमार में आतंक फैलाने के दोषी
ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान मूलत: बांग्लादेश के रहने वाले हैं और ये अनाधिकृत रूप से म्यांमार में रह रहे थे। 1962 से 2011 के सैनिक शासन के दौरान तो रोहिंग्या पर सरकार का अंकुश रहा, लोकतंत्र का बदलाव आते रोहिंग्या मुसलमान आतंक फैलाने में जुट गए। जाहिर है जब म्यांमार रोहिंग्या को अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मानकर इनको खदेडऩे का काम कर रही है तो रोहिंग्या शरणार्थी किसी और देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा क्यों नहीं बनेंगे?
50 से अधिक मुस्लिम देशों का इंकार
दूसरी सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि रोहिंग्या शरणार्थी मुस्लिम बहुल हैं, लेकिन मुस्लिम बहुल रोहिंग्या शरणार्थियों को 50 से ज्यादा मुस्लिम देशों ने शरण देने से मना कर दिया है।
भारत में कुछ संगठन कर रहे हैं समर्थन :
देश में कुछ ऐसे भी संगठन हैं जो सरकार पर रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने का दबाव बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ्रढ्ढरूढ्ढरू के चीफ असदुद्दीन ओवैसी, नेशनल कॉफ्रेंस के उमर अब्दुला और कई अन्य क्षेत्रीय दल रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की मांग कर रहे हैं। कुछ एनजीओ रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
यहॉ यह उल्लेखनीय है कि रोहिंग्या भारत में वोट बैंक का जरिया बन चुका है।
इस परिपे्रश्य में आज का सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रशांत भूषण की याचिका को खारिज करना एक ऐसा संदेश है जिससे देश की जनता को देश विरोधी ताकतों से सचेत रहने में मदद मिलेगी।
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