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Editorial :- अंधानुकरण, अंधभक्ति या किसी व्यक्ति विशेष के प्रति पक्षपात देश के लिये किस प्रकार से घातक हो सकता है? यह डाक्टरेट करने वालों के लिये शोध का विषय होना चाहिये

7 October 2018

डॉक्टरेट करने वाले विद्यार्थियों के लिये कुछ विषय शोध के लिये महत्वपूर्ण हो सकते हैं।   अंधानुकरण, अंधभक्ति या किसी व्यक्ति विशेष के प्रति पक्षपात देश के लिये किस प्रकार से घातक हो सकता है? इसकी कुछ चर्चा इस संपादकीय में की गई है।
विश्व को महात्मा गांधी ने अहिंसा का मंत्र दिया। यह भी अधिकांश लोगों की धारणा है कि भारत को आजादी के पीछे भी अहिंसा का मंत्र है। यह भी कह सकते हैं कि १९४७ में भारत के दो टुकड़े होने का कारण भी तुष्टिकरण की नीति है।
महात्मा गांधी को भारत में कांग्रेस ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संस्थाएं अहिंसा के पुजारी की दृष्टि से महत्व देते हैं। महात्मा गांधी को भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में इसलिये मान्यता मिली हुई है कि उन्होंंने अहिंसा का मंत्र दिया। परंतु विचित्र बात यह है कि क्या ये देश अहिंसा के विरूद्ध आचरण नहीं करते?
महात्मा गांधी की प्रतिमाओं का अनावरण करने की होड़ भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी है चाहे वह आस्ट्रेलिया हो या लंदन। ऐसा लगता है कि विश्व में यह संदेश दिया जा रहा है कि भारत में महात्मा गांधी से बढ़कर कोई नहीं हुआ।
भारत में भी महात्मा गांधी को आदर देने की  इस प्रकार से विचित्र होड़ लगी कि कांग्रेस शासनकाल में उन्हें राष्ट्रपिता तक संबोधन प्रदान कर दिया गया। जबकि महात्मा गांधी भारत माता के एक पुत्र थे।
महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के चरित्र में  जमीन आसमान का अंतर था। महात्मा गांधी का चरित्र पाश्चात्य नहीं भारतीयता का प्रतीक रहा। पंडित नेहरू का चरित्र कैसा रहा इसकी तो उन्होंने खुद ही व्याख्या की है।
उन्होंने कहा था कि वे घटनावश हिन्दू परिवार में पैदा हुए, संस्कृति से मुस्लिम हैें और शिक्षा से अंगेे्रज।
यह चरित्र उनका सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिये रहा। उन्होंने अपने आपको हिन्दू जाहिर करने के लिये बहुसंख्यक हिन्दुओं को आकर्षित करने के लिये अपने नाम के आगे पंंडित लगाये रखा।वे कश्मीरी पंडित थे।
उन्हीं की नकल करते हुए अब मध्यप्रदेश चुनाव में सत्ताप्राप्ति के लिये फिरोज खान के पौत्र और क्रिस्चियन सोनिया गांधी के पुत्र पंडित राहुल गांधी कांग्रेस के पोस्टर में दिखने लगे। राम भक्त और शिव भक्त के बाद अब पंडित राहुल गांधी नर्मदा के पुजारी बनकर कांग्रेस के पोस्टर में मध्यप्रदेश में दिखने लगे।
पंडित नेहरू ने हिन्दुओं को आकर्षित करने की दृष्टि से अपने सिर पर टोपी भी लगाए रखी। इसी प्रकार का बहुरूपीयापन राहुल गांधी भी लोगों को भ्रमित करने के लिये कर रहे हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि महात्मा गांधी और पंडित नेहरू का चरित्र एक-दूसरे के विपरित था परंतु फिर भी महात्मा गांधी अंधानुकरण व पक्षपात पंडित नेहरू के प्रति करते रहे।
इसका एक उदाहरण यही है कि एक समय कांग्रेस का अध्यक्ष का जब चुनाव हो रहा था तब प्राय: सभी कांग्रेस कमेटी ने वल्लभ भाई पटेल का पक्ष लिया था। परंतु महात्मा गांधी ने दबाव डालकर कृपलानी को भी अपना नाम वापस लेने के लिये बाध्य किया।
क्या यह महात्मा गांधी ने देशहित के लिये किया? यह भी शोध का विषय होना चाहिये।
इस संपादकीय में मंै विशेष रूप से वल्लभ भाई पटेल की भी चर्चा करना आवश्यक समझता हूं।
महात्मा गांधी तो पूरे भारत में सभी कार्यकाल में कांग्रेस के शासनकाल में भी और अटल-मोदी के शासनकाल में भी सर्वमान्य रहे। परंतु वल्लभ भाई पटेल का विशेषरूप से और सुभाष चंद्र बोस तथा अन्य कांतिकारियों का भी समय-समय पर महत्व मोदी शासनकाल में दिया जा रहा है। यह उचित है।
इस संपादकीय में प्रश्र उठाया जा रहा है कि  वल्लभ भाई पटेल के साथ-साथ उनके बड़े भाई वि_ल भाई पटेल के योगदान को कांग्र्रेस और मोदी सरकार क्योंं महत्व नहीं दे रही है?
दूसरा प्रश्र एक और है। कांग्रेस दिन-रात भजते रही है कि नेहरू-गांधी परिवार ने जो बलिदान दिया है उतना किसी ने नहीं दिया।
कोई भी हत्या विशेषकर राजनीतिक हत्या किसी की भी हो वह बहुत ही दुखदायी है और देश विशेष के लिये अत्यधिक क्षति वाली होती है। इंदिरा गंाधी की हत्या होना भी इसी प्रकार की घटना है। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि भारत की सेना भारत के ही धर्मस्थल स्वर्ण मंदिर में भिंडरवाला के विरोध में भेजे जाने से हुई। हत्या इंदिरा गांधी के ही एक सिक्ख बॉडीगार्ड ने की।  राजीव गांधी की भी हत्या भारत की सेना को श्रीलंका में चल रहे लिटे के विरूद्ध भेजी गई थी। इसी कारण से उनकी भी हत्या हुई।
इसकी चर्चा दिन-रात होती है होनी भी चाहिये। परंतु आजाद हिंद फौज के २६ हजार शहीद सैनिक कौन थे? वे क्यों शहीद हुए?
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर के लिये शहीद हुए उनके खून से किसके हाथ रंगे हैं?
पंडित दीनदयाल उपाध्याय देश के सुनहरे भविष्य के लिये शहीद हुए।
इन सबकी चर्चा उसी प्रकार से क्यों नही होती? जबकि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के हत्यारों को तो सजा मिल भी गई है परंतु क्या मुखर्जी,दीनदयाल जी के हत्यारों को सजा मिली? इसी में हम एक और नाम भी जोड़ सकते हैं सुभाष चंद बोस का उनकी हत्या के पीछे किसका षडयंत्र रहा?