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मारवाड़ में दांव पर वसुंधरा की प्रतिष्‍ठा, इन दिग्‍गजों की भी कड़ी परीक्षा

मारवाड़ के थार मरुस्‍थल में भी 2013 के चुनाव में भाजपा की फसल लहलहा उठी थी। तब इस अंचल के सात जिलों की 43 सीटों में 39 भाजपा के कब्‍जे में आई और महारानी वसुंधरा राजे की ताजपोशी का सबसे बड़ा सबब बनी। इस बार के महासंग्राम में ‘महारानी’ को पिछला रिकार्ड हासिल कर पाना यहां के लाल चट्टानों को हाथ से तोड़ने जैसा है। कांग्रेस महासचिव और पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत का गढ़ होने के बावजूद कांग्रेस के लिए भी यह डगर आसान नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई को हाल में उभरी राष्‍ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत वाहिनी के अलावा बसपा व आप ने भी त्रिकोणीय और चतुष्‍कोणीय बना दिया है। ऊपर से भाजपा और कांग्रेस के बागियों की मोर्चेबंदी से भी दिग्‍गजों के पसीन छूट रहे हैं।
जोधपुर संभाग के जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर, सिरोही और जोधपुर जिले की कुल 33 तथा नागौर जिले की दस सीटों का दायरा ही मारवाड़ का भूगोल है। कभी यह कांग्रेस का गढ़ रहा लेकिन, पिछली बार वसुंधरा राजे की सक्रियता ने यहां की सियासी बाजी पलट दी और सरदारपुरा से चुनाव जीतने के बावजूद अशोक गहलोत की कमर टूट गई। तब गहलोत के अलावा कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली। नागौर जिले के खींवसर क्षेत्र में हनुमान बेनीवाल निर्दल चुनाव जीते जो इस बार राष्‍ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर राजस्‍थान की 68 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार लड़ा रहे हैं।जाहिर है कि लड़खड़ाई कांग्रेस यहां अपने अस्तित्‍व के लिए जूझ रही है जबकि भाजपा के लिए अपना रिकार्ड तोड़ पाना बड़ी चुनौती है। वजह, भाजपा सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री घनश्‍याम तिवाड़ी की पार्टी भारत वाहिनी भी मैदान में है। बसपा के उम्‍मीदवार तो करीब हर सीट पर हैं और उनकी मौजूदगी विशेष रूप से अनुसूचित जाति के मतों में सेंधमारी की वजह बन रही है। यकीनन, मारवाड़ अपने सियासी पुरोधाओं का इम्तिहान ले रहा है। बागियों, असंतुष्टों और भितरघातियों की जमात इस इम्तिहान को और कठिन बना रही है। मारवाड़ की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां न तो माफिया कल्‍चर आया और न ही बंदूक का जोर। जर, जोरू और जमीन के किसी अपराध में पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा या पूर्व विधायक मलखान सिंह की तरह कोई नेता फंसा तो जनता ने उसे सबक भी सिखा दिया। इसे लालाओं की नगरी और शेयर मार्केट की धुरी कहा जाता है। इसलिए सियासी दांव-पेंच में परदे के पीछे से कारोबारियों का खेल सबसे अनोखा होता है। इस बार भी कारोबारियों पर नजरें टिकी हैं।