Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

शिवराज सिंह चौहान के लिए संजीवनी बन आई हैं मायावती

Default Featured Image

मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाक़े में कुल 34 विधानसभा सीटें हैं. बीजेपी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पिछले एक साल में इस इलाक़े की राजनीति में जो बदलाव आए हैं उससे सत्ताधारी बीजेपी के पांव तले से ज़मीन खिसकती दिख रही है.

इस इलाक़े के कोलारस और मुंगावली विधानसभा सीटों पर इसी साल हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. दोनों सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद अप्रैल महीने में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को लेकर जो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, उसका केंद्र भी यही इलाक़ा था.

इस इलाक़े के युवा दलित एक्टिविस्ट सुधीर कोले का कहना है कि हालात पूरी तरह से बदले हुए हैं. कोले का मानना है कि इस बार यहां कुछ भी एकतरफ़ा नहीं है. दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर है और कुछ सीटों पर बहुजन समाज पार्टी भी मज़बूती से लड़ रही है.

ग्वालियर-चंबल इलाक़े में दलितों की आबादी सबसे ज़्यादा है और सवर्णों में ठाकुर और ब्राह्मण बहुसंख्यक हैं. ग्वालियर के स्थानीय पत्रकार राजेश अचल कहते हैं कि इस बार चंबल का दंगल काफ़ी दिलचस्प हो गया है और इससे बीजेपी का परेशान होना स्वाभाविक है.

एससी-एसटी एक्ट को सुप्रीम कोर्ट से कथित तौर पर कमज़ोर किए जाने के ख़िलाफ़ दो अप्रैल को इस इलाक़े में भड़के विरोध-प्रदर्शन में सात लोग मारे गए थे. यह लड़ाई दलित बनाम सवर्ण बन गई थी.

इस विरोध-प्रदर्शन के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने अध्यादेश के ज़रिए एससी-एसटी एक्ट को मूल स्वरूप में ला दिया था. लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार का यह क़दम सवर्णों को रास नहीं आया. ग्वालियर-चंबल इलाक़े में इसे लेकर उपजी हिंसा का ज़ख़्म अब भी हरा है और इसका असर जातीय मेल-जोल पर बहुत गहरा पड़ा है.

सुधीर कोले कहते हैं कि दलित बीजेपी सरकार से नाराज़ हैं कि सरकार ने उन्हें असुरक्षित छोड़ दिया और सवर्ण नाराज़ हैं कि दलितों को ख़ुश करने के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बदल दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने दलितों और आदिवासियों के ख़िलाफ़ हिंसा या प्रताड़ना के मामले में शिकायत दर्ज होने के बाद बिना जांच के तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी. इसे लेकर विरोध प्रर्दशन शुरू हुए तो मोदी सरकार ने अध्यादेश के ज़रिए क़ानून को मूल स्वरूप में ला दिया था.

इस इलाक़े में दलितों में जाटव बहुसंख्यक हैं और इन्हें लगता है सरकार ने नाइंसाफ़ी की है. दो अप्रैल को इस इलाक़े में भड़की हिंसा में दीपक मित्तल नाम के एक दलित युवक की ग्वालियर के गल्लार कोठा में गोली लगने से मौत हो गई थी. इस इलाक़े के लोगों का कहना है कि जिन्होंने गोली मारी वो आज भी खुलेआम घूम रहे हैं. सुधीर कोले कहते हैं कि पर्याप्त सबूत होने के बावजूद न्याय नहीं मिला.

राजेश अचल कहते हैं कि इस बार मुक़ाबला तो पूरे प्रदेश में कांटे का है, लेकिन ग्वालियर और चंबल के इलाक़े में बीजेपी से सवर्ण और दलित एक साथ दोनों नाराज़ हैं. इस इलाक़े पर लोगों की ख़ास नज़र इसलिए भी है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी यही इलाक़ा है और उन्हें कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है. इसी इलाक़े में सिंधिया राजघराने के असर को भी रेखांकित किया जाता है.