प्रयागराज,28 जनवरी (वार्ता) पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित हो रही सरस्वती के संगम को अनेकता में एकता का समागम कहना अतिशियोक्त नहीं होगा।
संगम के माघ मेला में विभिन्न भाषा,वेश भूषा एवं आचार व्यवहार के बावजूद बड़े प्रेम से के साथ एक दूसरे के साथ अलग अलग तीर्थपुरोहितों के शिविर में निवास करते हैं। संगम की वीस्तीर्ण रेती पर अनोखी दुनियां बसी हुई हो। यहाँ भले ही कोई किसी को नहीं भी जानता और न ही किसी का कोई पहनावा मिलता है, फिर भी सभी एक.दूसरे के साथ मिलजुलकर रहते हैं। इसे लघु भारत भी कह सकते हैं।
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