Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

संचार उपकरणों की निगरानी का मुद्दा: जेटली बोले-‘राई के बिना ही पहाड़ बना रही कांग्रेस’

Default Featured Image

कंप्यूटर एवं अन्य संचार उपकरणों को केन्द्रीय एजेंसियों की निगरानी के दायरे में लाने के आदेश का कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के राज्यसभा में भारी विरोध किया. इस विरोध पर सदन के नेता अरुण जेटली ने स्पष्ट किया कि सरकार ने इस मामले में कुछ भी नया नहीं किया है और इन एजेंसियों को संप्रग सरकार के कार्यकाल में ऐसी ही जिम्मेदारी दी गई थी. जेटली ने कांग्रेस पर देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया. जेटली ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस इस मुद्दे पर राई के बिना ही पहाड़ बना रही है.

उच्च सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद एवं कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा द्वारा यह मुद्दा उठाए जाने पर अरुण जेटली ने कहा कि बेहतर होता कि विपक्ष इस मुद्दे को उठाने से पहले पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता. उन्होंने कहा, ”विपक्ष के नेता जो भी विषय उठाते हैं, उसका एक मूल्य होता है, वह काफी मूल्यवान होता है.

उन्होंने कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा की इस बात को सिरे से गलत बताया कि इस आदेश के तहत हर कंप्यूटर एवं टेलीफोन की निगरानी की जाएगी. उन्होंने कहा कि आज से करीब 100-150 साल पहले एक कानून बना था, टेलीग्राफ अधिनियम. यह कानून पिछली कई सरकारों के कार्यकाल में चलता रहा. जहां जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले आते हैं इस कानून के तहत कुछ एजेंसियों को निगरानी रखने का अधिकार रहा है. इसके लिए एजेंसियां अधिसूचित होती हैं.

उन्होंने कहा कि इस बीच काफी प्रगति हुई. कंप्यूटर आदि आए. आतंकवादी कंप्यूटर आदि के माध्यम से भी काम कर सकते हैं. वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि 18 साल पहले आईटी कानून आया. संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जो पाबंदियां लगाई गई हैं, उन्हें आईटी कानून की धारा 69 में पूरी तरह शामिल कर लिया गया. इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा आदि शामिल हैं.

अरुण जेटली ने कहा कि जब कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा आदि के साथ खिलवाड़ कर रहा होगा तो इन एजेंसियों को अधिकार दिया गया है वे उस व्यक्ति की निगरानी कर सकती हैं.
जेटली ने कहा, ”आईटी कानून के तहत यह अधिकार एजेंसियों को ठीक वैसे ही दिया गया है जैसे टेलीग्राफ कानून में है. उसके नियम जब आनंद शर्मा जी सरकार में थे तब बनाए गये कि किन एजेंसियों को इसके लिए अधिकृत किया जाए. 2009 में इसके नियम बने. एजेंसियां वही हैं… आईबी, रॉ, डीआरआई आदि.”
उन्होंने स्पष्ट किया कि निगरानी का काम कोई भी व्यक्ति नहीं कर सकता. किसी भी व्यक्ति या कंप्यूटर की निगरानी नहीं की जा सकती है. यदि आतंकवादी गतिविधि, कानून व्यवस्था, देश की अखंडता से जब जुड़ा मामला हो तो अधिसूचित एजेंसियां संबंधित व्यक्ति के उपकरणों की निगरानी कर सकती हैं.

वित्त मंत्री ने कहा कि इन एजेंसियों के बारे में वही आदेश बार बार जारी किया जाता है जो 2009 में बना था. उन्होंने कहा कि 20 दिसंबर को भी वही आदेश जारी किया गया. उन्होंने कहा कि इसमें लोगों की निजता के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘श्रीमान आनंद शर्मा, आप वहां पहाड़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जहां राई भी नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है.

इससे पहले यह मुद्दा उठाते हुए नेता प्रतिपक्ष आजाद ने कहा कि सरकार ने इस आदेश के माध्यम से देश में अघोषित आपातकाल लगा दिया है.”

कांग्रेस के उपनेता शर्मा ने कहा कि इस आदेश के माध्यम से लोगों की निजता के मूलभूत अधिकार पर हमला किया गया है. उल्लेखनीय है कि गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक आदेश में खुफिया ब्यूरो, मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, रॉ, ‘डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली के पुलिस आयुक्त को देश में चलने वाले सभी कंप्यूटरों की निगरानी करने का अधिकार दिया गया है.