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Editorial :- थोथा चना बाजे घना

29 December 2018

थोथा चना बाजे घनाÓ का आशय यह है कि जब चने में सार तत्व समाप्त हो जाता है तब बहुत बजने लगता है। यही स्थिति यही स्थिति राहुल गांधी और विपक्ष की है।

जिस व्यक्ति में ज्ञान की जितनी कमी होती है  , वह उतना ही अधिक दिखावा करता है। वह ज्यादा दिखावा करके अपनी कमी को छिपाने का प्रयास करता है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति थोड़ी बहुत अंगे्रजी पढ़कर स्वंय अंगे्रजी का प्रकांड विद्वान दिखाने की कोशिश करे।

जब किसी व्यक्ति में विद्वता होती है। तो वह उसे दिखाता नहीं फिरता, अपितु उसका व्यवहार उसे दर्शा देता है। इस प्रकार का दिखावा करने वालों से बचकर रहना चाहिए। थोथे चने के स्वभाव के व्यक्ति छिछोरे होते हैं। उनसे कभी किसी गंभीर बात की आशा नहीं की जा सकती।

हम आज की ही स्थिति को लें। बिना किसी ठोस प्रमाण के राफेल मुद़दे को उछालकर आज संसद में व्यवधान डाला गया। लगातार इस प्रकार  के प्रयास होते रहे हैं।

राफेल मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी चुका है। उससे इस मुद़दे पर मोदी सरकार की क्लीन चीट मिल चुकी है। आश्चर्य तो इस बात का है कि राफेल मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट और एयरफोर्स की आवश्यक्ता के संदर्भ में जब एयर मार्शल चीफ ने स्पष्टीकरण दिया तो कांग्रेस ने उन्हें भी झूठा कहकर अपमानित किया।

ठीक इसके विपरीत अगस्ता वेस्टलैंड का मुद्दा है। इस डील में बिचौलिये क्रिस्चियन मिशेल का प्रत्यार्पण बहुत प्रयत्न के उपरांत दुबई से हुआ है।

यूएई की राजकुमारी दुबई से भागकर चली गई थी। वह एक नाव में सवार थीँ। भारत के समुद्दी तटरक्षक ने उस नाव को पकड़कर राजकुमारी को  दु़बई वापस पहुंचा दिया। इस प्रयास के कारण दुबई से क्रिस्चियन मिशेल का प्रत्यार्पण संभव हुआ।

अगस्ता वेस्टलैंड में जो नोट प्राप्त हुए हैं उसमें एपी का मतलब अहमद पटेल और एफएएम फैमिली का संकेत गांधी फैमिली से सीबीआई को  क्रिस्चियन मिशेल द्वारा बताया गया है?

क्रिस्चियन मिशेल को बचाने के लिये कांग्रेस और कांग्रेस के वकील नेता क्यों प्रयत्नशील हैं यह समझा जा सकता है।

राफेल मुद्दे को उछालकर क्या अगस्ता वेस्ट लैंड मुद्दे को क्या ढंका जा सकता है?

महाभारत में शिखंडी की बहुत चर्चा है।

इसी प्रकार से यह भी पढऩे में आया है कि कई बार गाय को भी दुश्मन सेना अपने आगे खड़ी कर देती थी जिससे की हिन्दू सैनिक आक्रमण कर सकें।

इसी प्रकार से ये कहा जा रहा है कि मनमोहन सिंह भी एक मोहरे के रूप में यूपीए शासनकाल में प्रधानमंत्री पद पर बने रहे।

एक्सिडेंटल प्रधानमंत्री कहकर भी उन्हें पुकारा जाता है। यह उपाधि उन्हें उन्हींं के मीडिया सलाहकार ने अपनी किताब में दी है। इसी पर फिल्म भी बनी है जिसका की टे्रलर दिखाया गया है।

मनमोहन सिंह तो अब दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे नहींं। राहुल गांधी यदि देश का नेतृत्व करना चाहते हैँं तो उनकी छवि थोथा चना बाजे घना की बन चुकी है उसे उन्हें मिटाने का प्रयत्न करना चाहिये।