प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उप्र का प्रभार सौंपने से सर्द हवाओं के बावजूद सूबे की सियासी तपिश बढ़ गई। अब तक सपा-बसपा गठबंधन से सीधी लड़ाई मान रही भाजपा, प्रियंका के जरिए त्रिकोणीय समीकरण की संभावना तलाशने में जुट गई है।
तीनों मिलकर लड़ते तो भारी पड़ते
– 2014 के चुनाव में भाजपा ने उप्र की 80 में 71 और सहयोगी अपना दल ने दो सीटें जीतीं थीं। तब भाजपा को 42.63 प्रतिशत वोट मिले थे। एक भी सीट न पाने वाली बसपा को 19.77 और पांच सीट जीतने वाली सपा को 22.35 प्रतिशत मत मिले।
दो सीट जीतने के बावजूद कांग्रेस को सिर्फ 7.53 प्रतिशत मत मिले। भाजपा को मिले 42.63 प्रतिशत मत के मुकाबले इन तीनों दलों का वोट 49.65 प्रतिशत था।
– अगर सपा-बसपा और कांग्रेस मिलकर लड़ते तो भाजपा पर भारी पड़ते। कांग्रेस अगर प्रियंका का दांव न चलती तो सपा-बसपा के लिए सीधे मुकाबले की जमीन तैयार हो जाती। लेकिन इस प्रयोग ने प्रदेश का माहौल बदल दिया है।
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